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पूर्व में उत्तराखण्ड में प्रचलित विवाह सम्बन्धी प्रथाएं-

1. अट्टा-सट्टा विवाह- थारू जनजाति में प्रचलित इस प्रथा को आंट-सांट या ग्वरसांट भी कहा जाता है। इसमें दो परिवार एक-दूसरे से बेटी की अदला-बदली कर अपने-अपने परिवार में बहुएं बनाते है।  2. सरौल या डोली विवाह- इसमें वर के बिना वरपक्ष के कुछ लाग कन्यामूल्य देकर कन्या को डोली में बिठाकर वर के घर ले आते थे। सरौल शब्द का अर्थ होता है स्थानान्तरण। सम्भवतः प्रवास पर गये व्यक्ति एवं अयोग्य वरों हेतु इस प्रकार की विवाह परम्परा प्रचलन में आई होगी। यदि किसी कारणवश यदि विवाह के बाद दुल्हे की मृत्यु हो जाती थी तब ब्याहता के पास पूरे अधिका  र होते थे कि वह दूसरा विवाह कर ले। इस प्रकार के विवाह को टका विवाह कहा जाता था।  3. दामतारो विवाह- कुछ गरीब परिवारों के लोग कन्या का दाम लेकर उसका विवाह करते थे। वर पक्ष कन्यापक्ष को उसका दाम देकर विवाह कर वधु ले जाता था, इसलिए इसे दामतारो कहा जाता था। इस प्रकार के विवाह का प्रचलन मुख्यतः दूसरा, तीसरा अथवा प्रौढ़ विवाह के रूप में था।  4. टेकुवा विवाह- किसी विधवा/तलाकशुदा स्त्री द्वारा पति के रूप में परपुरूष को अपने घर में रखा जात...

साहित्यकार गोविन्द बल्लभ पंत

साहित्यकार गोविंद बल्लभ पन्त का जन्म 1898 में हुआ। श्री पंत जी की प्रथम रचना छात्रावस्था में कहानी के रूप में वाराणसी से निकलने वाले पत्र आज में जुलाई , 1922 को प्रकाशित हुई। ज्ञातव्य हो कि 1920 में वे मेरठ में एक नाटक कम्पनी ‘ व्याकुल भारत ’ के सदस्य बन गये थे , वहीं से लेखन की ओर रूख किया असंख्य कहानियां सरस्वती , संगम , धर्मयुग , आज , हिन्दुस्तान जैसे तत्कालीन पत्र - पत्रिकाओं में समय - समय पर प्रकाशित होती रही। वर्ष 1924 में एकादशी तथा 1931 में संध्यादीप नामक शीर्षक से दो कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए। तीस से अधिक निम्न उपन्यासों की उन्होनें रचना की थी इन्हें 1960 से पहले तथा बाद के दो भागों में विभक्त कर प्रस्तुत किया जा रहा हैः - 1960 से पूर्व के उपन्यास - प्रतिमा , मदारी , जूनिया , तारिका , अनुरागिनी , एक सूत्र , अमिताभ , नूरजहा , चक्रकान्त , मुक्ति के बन्धन , प्रगति की राह , यामिनी , नौजवान , जलसमाधि , फारगेट मी नाट , पर्णा , मैत्रेण , तारों के सपने , कागज...

श्री मौलाराम तोमर

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श्री मौलाराम तोमर गढ़वाली चित्र शैली के प्रमुख आचार्य , कुशल राजनीतिज्ञ ,   कवि ,   इतिहासकार मौलाराम का उत्तराखण्ड के इतिहास में अद्वितीय ,   अविश्वमरणीय योगदान है। इनको सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का श्रेय बैरिस्टर मुकुन्दीलाल को जाता है। 1908 में जब मुकुन्दीलाल बनारस हिन्दु कॅालेज (यह भी जान लें कि 1916 में स्थापित बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय की नींव 1904 में पड़ गई थी।) के छात्र थे ,   वहां उनके गुरू डॅा 0 आनन्द के 0 कुमारस्वामी से मिलने के बाद उनके प्रोत्साहन से ही श्री मुकुन्दीलाल ने कला के क्षेत्र में सामग्री एकत्र करना प्रारम्भ किया। 1909 में इन्होनें कुछ चित्र डॅा 0 कुमारस्वामी को दिखाये जिनमें से छः चित्र उन्होनें खरीद लिया , जो वर्तमान में बोस्टन संग्रहालय में है। 1910 में श्री मुकुन्दीलाल ने प्रयाग प्रदर्शनी में मौलाराम के कुछ चित्र लगाये जिनकी तरफ सबका ध्यान आकर्षित हुआ। वर्ष 1910 में ही सर्वप्रथम मुकुन्दीलाल ने कलकत्ते से प्रकाशित होने वाली पत्रिका माडर्न रिव्यू के दो अंकों में मौलाराम पर लेख प्रकाशित करवाया।      ...

अल्मोड़ा की हिप्पी हिल सनकी चोटी तथा हिप्पी आन्दोलन का इतिहास

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      का षय ( कश्यप पर्वत ) पर स्थित कसार देवी गुफा मंदिर जो देवी कात्यायनी रूप में पूजित है के आस - पास हिन्दू संस्कृति एवं प्राकृतिक छटा हेतु प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह प्रसिद्ध है हिप्पी आन्दोलन एवं सनकी चोटी के रूप में -       क्रैंक रिज या सनकी रिज - यह चुम्बकीय क्षेत्र है , जिसे Van Alen Belt   भी कहा जाता है। कसार देवी के आस - पास नारायण तिवाड़ी देवाल से दीनापानी तक। क्षेत्र में सनकी मनोवैज्ञानिक तिमोथी लेरी अचानक पहाड़ी पर दौड़ते नजर आते थे। जिसके कारण इस क्षेत्र का नाम क्रैंक रिज पड़ा क्रैंक का अर्थ सनक से ही लगाया जाता है। ( ज्ञातव्य हो कि रिज का हिन्दी अर्थ चोटी होता है , मुख्यतः रिज शब्द समुद्र के भीतर की चोटियों हेतु प्रयोग किया जाता है। ) हिप्पी   हिल - 1960-70 के दशक में इस क्षेत्र में भी हिप्पी आन्दोलन चला था। इस क्षेत्र में हिप्पी विचारधारा के लोगों के बसने के कारण इस क्षेत्र को ह...