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कुमाऊँ का अर्ल ऑफ वार्विक हरकदेव जोशी

कुमाऊँ के इतिहास में कुमांऊ का चाणक्य आदि कई नामों से से प्रसिद्ध हरकदेव अथवा हर्षदेव जोशी को एंड्रू विलियम हियरसे एवं फ्रेजर  ने अर्ल ऑफ वार्विक कहा है। जानते है वार्विक और अर्ल ऑफ वार्विक का इतिहास और फिर हरकदेव जोशी को:-  वार्विक - यह इंग्लैंड का एक कॉउंटी नगर है। यहाँ से नवपाषाण युगीन सभ्यता का प्रमाण भी मिलता है। यहाँ 1088 में रियासत बनी। 1694 में लगी भीषण आग से लगभग आधा शहर ध्वस्त हो गया था। अर्ल ऑफ वार्विक - वार्विक के पहले अर्ल हेनरी डी ब्यूमोंट थे। यहाँ का 16वें अर्ल बने रिचर्ड नेविल बना। जिसे यह रियासत विवाह के बाद मिली थी। इसका समयकाल 23 जुलाई, 1449 से 14 अप्रैल, 1471 तक था। इसके समय ब्रिटिश गृहयुद्ध में गुलाबों का प्रसिद्ध युद्ध हुआ जिसमें इसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसी को किंगमेकर कहा जाता है। 16वें अर्ल ऑफ वार्विक के नाम पर ही हियरसे ने हरकदेव जोशी को अर्ल ऑफ वार्विक की संज्ञा दी थी। हरकदेव जोशी के पिताजी का नाम शिव देव जोशी था इनको कुमांऊ का बैरम खां कहा जाता है।  शिव देव जोशी ने कुमांऊ के इतिहास में रोहिला को युद्ध में पराजित किया था, यह कल्याण चंद पंचम ...
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1. लाला बदरी शाह मैमोरियल हाउस अल्मोड़ा में है। (यहाँ स्वामी विवेकानंद ठहरे थे.) 2. नंदा देवी का आरोहण नामक पुस्तक के रचनाकार टी. जी. लोगस्टॉफ़ एवं एच. डब्ल्यू. टिलमैन 3. अंजनी देवी मंदिर चंडी देवी हरिद्वार में है। 4. उत्तराखण्ड नगर एवं ग्राम नियोजन तथा विकास अधिनियम 1973 का है। 5. उत्तराखण्ड की उड़न परी नाम से शिवानी गुसाईं जानी जाती है।

सेना का जनरल बकरा 'बैजू'

आज़ादी से पहले की बात है जब गढ़वाल राइफल्स का ट्रेनिंग कैम्प लैंसडौन था। उस समय लैंसडौन नगर में एक बकरा जो निडर विचरण करता हुआ नजर आ जाता था वो ऐसा वैसा बकरा नहीं था बल्कि सेना का जनरल था जिसका नाम था जनरल बैजू। बात 1919 के एंग्लो-अफगान युद्ध में मोर्चे पर रॉयल अंग्रेजी सेना का हिस्सा रही गढ़वाल राइफल की एक टुकड़ी की है जब वह अफगानिस्तान के चित्राल क्षेत्र में भटक गए थे। यह सैन्य टुकड़ी दिन भर शत्रुओं के कारण झाड़ी में रही तथा रात को बाहर निकलती थी। एक रात थके-भटके भूखे सिपाही अपना मार्ग ढूंढ रहे थे तभी सामने झाड़ी हिलते हुई प्रतीत हुई, उन्हें लगा शत्रुओं ने घेर लिया है और भटकी हुई टुकड़ी ने अपने बचे-कुचे अस्त्र सम्भाल कर चौकन्ने हो गए। थोड़ी देर में झाड़ी से एक भीमकाय बकरा बाहर निकला तब सैनिकों की जान में जान आई। वह बकरा निर्भय सैनिकों को निहार रहा था। लम्बी दाड़ी वाले उस बकरे ने सिपाहियों से डरे बिना उनके नजदीक आने का इंतज़ार किया और फिर धीरे-धीरे उल्टे पाँव ही चलते हुए सिपाहियों को रास्ता दिखाने लगा। काफी दूर जाने पर बकरा एक चौड़े खेत में रुक गया, सैनिकों ने उसे घेर रखा था कि बकरे ने बिना डरे ...

राज्य के विविध दिवस

1. राज्य जल दिवस- 25 मई 2. हरियाली दिवस- 5 जुलाई 3. वृक्षोरोपण दिवस- 25 जुलाई  (श्रीदेव सुमन की स्मृति में) 4. राज्य में प्रेरणा दिवस- 12 अगस्त  (नरेन्द्र नेगी जन्मदिवस) 5. कुमाऊंनी भाषा दिवस- 1 सितम्बर (2018 से शुरु) 6. गढ़वाली भाषा दिवस- 2 सितम्बर (2018 से शुरु) 7. हिमालय दिवस - 9 सितम्बर (2014 से शुरु)          8. उत्तराखण्ड गौरव दिवस -10 सितम्बर (गोविन्दबल्लभ पंत जन्मदिवस) 9. जागर संरक्षण दिवस- 17 सितम्बर (प्रीतम भरतवाण जन्मदिवस) 10.उत्तराखण्ड साहित्य दिवस- 19 सितम्बर ( हरिदत्त भट्ट पुण्यतिथि) 11. लोक संस्कृति दिवस- 24 दिसम्बर (इन्द्रमणि बड़ौनी जन्मदिवस) 12. राज्य में मत्स्य दिवस- 10 जुलाई उत्तराखण्ड ज्ञानकोष जनपद दर्पण से उद्धरित

थारू जनजाति Part-1

थारू जनजाति की विशेषता – थारू जनजाति को सन 1967 में भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था. थारू जनजाति के अंतर्गत 7 उपसमूह आते हैं राणा(थारू),बुक्सा, गडौरा, गिरनामा, जुगिया दुगौरा, सौसा, एवं पसिया. इन जनजातीय समुदायों के 12 गाँव उधमसिंह नगर जिले में हैं. थारू जनजाति के लोग स्वयं को थार भूमि का मूल निवासी मानते हैं. थारू जनजातीय लोगों ने उधमसिंह नगर जिले में अपने राजाओं के नाम से 12 गांवों को बसाया था. जिनमें से प्रमुख हैं सिसौदिया राजा के नाम से सिसौना गाँव, रतन सिंह के नाम से रतनपुर इसी प्रकार से पूरनपुर, प्रतापपुर, वीरपुर आदि गाँव इन जनजातीय लोगों ने बसाए. आजादी से पूर्व जनसमाज में थारु के स्थान पर और सन 1950-55 तक इनके लिए थरूआ शब्द का प्रयोग होता था। स्वयं थारू भी अपने लिए थरूआ और थरूनिया शब्द का प्रयोग करते थे। इन पंक्तियों का लेखक स्वयं इस क्षेत्र में 1950 से लगातार रह रहा है और इस जनजाति के जो भारतीय क्षेत्र में रहती है, के बहुत सन्निकट रहा है। चूंकि नेपाल भी सीमावर्ती क्षेत्र है, इसलिए उस क्षेत्र के थारूओं से भी निकट का परिचय स्वाभाविक है। इस लिए किसी अन्...

सीमांत की अनोखी बैशाखी जो बिच्छू घास लगाकर आयोजित होती है।

      ले गुड़ खा, साल भर सांप-कीड़े नहीं दिखेंगे कहकर सुबह ही ईजा देशान(बिस्तर) में गुड़ दे दिया करती थी, और मैं बड़ी उत्सुक्तावस गुड़ खाते हुए उठता था कि आज कहाँ धमाका होने वाला है. ध...

फोर्ट मोयरा तथा लाउडन फोर्ट के सम्बंध में।

पिथौरागढ़ के लाउडन फोर्ट तथा अल्मोड़ा के फोर्ट मोयरा के नामकरण के सम्बन्ध में। सर्वप्रथम अपनी पूर्व पोस्ट के लिए खेद प्रकट करता हूँ   और अवगत कराना चाहता हूँ कि वो तथ्य आंशिक रूप से सत्य थे   जो पिथौरागढ़ किले के नामकरण पर पूर्व में लिखे गये थे।            1815  में गोरखों को पराजित कर अंग्रेजी शासन की नींव उत्तराखण्ड में रख दी गई। आंग्ल-ब्रिटिश युद्ध 1814-1816 के मध्य चला तथा इस युद्ध के समय भारत के गवर्नर जनरल फ्रैंसिस रॉडन हेस्टिंग्स था जो इस पद पर 1813 से 1823  तक रहा। हेस्टिंग्स  द्वितीय अर्ल  ऑफ     मोयरा   (Earl Of Moira)  था। अतः हेस्टिंग्स को प्रसन्न करने के लिए ही अल्मोड़ा के लाल मण्डी किले का नाम फोर्ट मोयरा रखा गया। जबकि हेस्टिंग्स की पत्नी फ्लोरा म्यूर कैम्पबेल  काउन्टेस  ऑफ   लाउडन   (Earl Of Loudoun) थी। क्योंकि पांचवे अर्ल ऑफ   लाउडन aकी एकमात्र सन्तान फ्लोरा थी अतः उसे लाउडन की काउंटेस बनाया गया। इस कारण लॉर्ड ...