संदेश

पौरव राजवंश राजस्व व्यवस्था एवं नगर

     पौरव राजवंश राजस्व व्यवस्था एवं नगर राजस्व व्यवस्था- भू-राजस्व उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। इस काल में भूमि का मापन तीन ईकाईयों में निर्धारित थी जो कि गुप्तकालीन भूमि मापन ईकाईयों से प्रभावित थी। ये मापन ईकाईयां द्रोणवाप, कुल्यवाप तथा खारिवाप थी जिनमें वाप का अर्थ बीज होता हैः- 1. द्रोणवाप- एक द्रोणवाप 32 सेर अथवा 16 नाली के बराबर था। 2. कुल्यवाप- एक कुल्यवाल 8 द्रोण अथवा 256 सेर के बराबर था। 3. खारिवाप- एक खारिवाप 20 द्रोण अथवा 640 सेर के बराबर था। इस काल में केदार (सिंचित क्षेत्र) तथा सारी (गैर सिंचित) क्षेत्र को कहते थे। डाॅ0 के0के0 थपलियाल के अनुसार ताम्रपत्र में श्री व परमभट्टारक महाराज की उपाधि अंकित की गई है।  पौरव वंश के समकालीन नगर-तालेश्वर अभिलेखों में पुर, पुरी आदि का प्रयोग स्थान नामों को इंगित करते है। प्रमुख ज्ञात नगर निम्नवत् हैं- 1. ब्रह्मपुर - तालेश्वर ताम्रपत्र में इसे इन्द्र की नगरी तथा नगरों में श्रेष्ठ के रूप में उल्लिखित किया गया है। तालेश्वर ताम्रपत्र इसी जगह से निर्गत किया गया है। वराहमिहिर ने मार्कण्डेय पुराण एवं चीनी यात्री व...

उत्तराखण्ड में जनपदवार प्रमुख वेटलैण्ड क्षेत्र एवं झीलें/ताल

इस टाॅपिक से 2 टाॅपिक क्लियर होंगे। एक तो आद्रभूमि दूसरा विभिन्न जनपदों में स्थित झीलें अथवा तालें। अल्मोड़ा- भालू डैम, राम झील, तड़ाग ताल, सरिया ताल, ग्वालदम ताल। चम्पावत - श्यामला ताल, शारदा बैराज, बनबसा देहरादून - आसन बैराज, आसन (कुन्जा), आसन (ळडटछ), नकरान्दा स्वैम्प, डाकपत्थर बैराज, वीरभद्र बैराज हरिद्वार- झिलमिल ताल, बाण गंगा, भीमगोड़ा बैराज नैनीताल - भीमताल, खुर्पाताल, सातताल, गरुड़ताल, नौकुचियाताल, नैनीताल, भरत ताल, सरियाताल, हनुमान ताल, कमल ताल, नल-दमयन्ती ताल, सुखताल, काठ गोदावरी बैराज, कोसी बैराज पौड़ी- ताराकुण्ड रुद्रप्रयाग - देवरिया ताल, चैराबाड़ी ताल, बासुकी ताल, पैया कुण्ड टिहरी- टिहरी डैम, कोटेश्वर डैम, मियाली ताल, मसूरी ताल, कुश कल्याण ताल, लिंगम ताल, शास्त्रु ताल, माटी ताल, लैम्ब ताल उधमसिंह नगर- तुमड़िया डैम, बौर डैम, हरिपुरा डैम, नानक सागर, धौरा डैम, बगुल डैम उत्तरकाशी- नचिकेता ताल, भराधसर, काणासर, गुगुई काणासर, सरी ताल, बकरी ताल, कामा ताल, मनेरा ताल, र्यूनसरा ताल, मालधुरा ताल, बाली कुण्ड, सप्तऋषि कुण्ड-1 एवं 2, डोडी ताल, खेड़ा ताल पश्चिमी व पूर्वी, सात ताल, खेदई ताल।...

उत्तराखण्ड की 15 महत्वपूर्ण नहरें

चित्र
1. ऊपरी गंगा नहर - राज्य की सबसे पुरानी नहर जिसका निर्माण 1842 से 1854 के मध्य किया गया था। इस नहर को हरिद्वार के समीप गंगा के दाहिनी ओर से निकाला गया है जो हरिद्वार से कानपुर तक है। 1983 में इसका आधुनिकीकरण किया गया। इस नहर के निर्माण का मुख्य उद्देश्य 1834 में गंगा-यमुना दोआब में फैला भीषण दुर्भिक्ष को कम किया जाना था। 1836 में पी0बी0 काटले ने इस नहर को स्वीकृत किया।  2. निचली गंगा नहर - नरोरा बांध से सेंगर नदी व सेरसा नदी और मैनपुरी जिले के शिकोहाबाद को पार कर आगे बढ़ती है। इसे गंगा नहर की भागनीपुर शाखा कहा जाता है। इसे 1880 में खोला गया। गंगनहर की प्रमुख चार शाखायें देवबंद, अनूपशहर, माट तथा हाथरस के रूप में हैं। इसके निर्माता काटले का आधुनिक भगीरथ के नाम से जाना जाता है। गंगानहर बनने के बाद इसने डाटकाली मंदिर का भी निर्माण करवाया था। हालांकि डाटकाली मंदिर पूर्व में गोरखों द्वारा निर्मित था, जो अलग है।  3. पूर्वी गंगा नहर - भीगगोड़ा से निकली यह नहर चंदोक, नगीना, नजीबाबाद, नहटो, अलवापुर पांच शाखाओं में विभक्त है। इससे हरिद्वार, बिजनौर तथा मुरादाबाद जिलों में सिंचाई होती ...

जनगणना में विभिन्न जिलों की स्थिति परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण

 सर्वाधिक जनसंख्या वाले 4 जनपद  स्थान  जनपद का नाम जनसंख्या  1. हरिद्वार                1890422 2. देहरादून 1696694 3. उधम सिंह नगर 1648902 4. नैनीताल        954605 न्यूनतम जनसंख्या वाले 4 जनपद  स्थान  जनपद का नाम जनसंख्या  1. रुद्रप्रयाग 242285 2. चम्पावत 259648 3. बागेश्वर 259898 4. उत्तरकाशी         330086 सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाले 4 जनपद  स्थान  जनपद का नाम जनसंख्या घनत्व  1. हरिद्वार 801 2. ऊधम सिंह नगर 649 3. देहरादून  549 4. देहारादून            225 न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाले 4 जनपद  स्थान   जनपद का नाम जनसंख्या घनत्व  1. उत्तरकाशी 41 2. चमोली    49 3. पिथौरागढ़              68 4. बागेश्वर              116 सर्वाधिक...

चम्पावत जिले के प्रमुख मंदिर एवं तीर्थ स्थल

चित्र
बाराही मंदिर - देवीधुरा , पाटी तहसील में। रक्षाबंधन को असाड़ी कौतिक का आयोजन होता है , जिसे बग्वाल मेला कहा जाता है।    हरेश्वर मंदिर - मौन-पोखरी नामक स्थान पर न्याय प्राप्ति हेतु प्रसिद्ध शिव को समर्पित मंदिर। झुमाधुरी का मंदिर - पाटन-पाटनी गांव में   क्रांतेश्वर महादेव - कुर्म पर्वत शिखर पर स्थित शिव को समर्पित मंदिर , इसे कानदेव भी कहा जाता है। भागेश्वर महोदव - खेतीखान मार्ग पर   रमकादित्य मंदिर - रमक गांव , पाटी में स्थित है , साठी का मेला प्रसिद्ध है। अखिल तारिणी मंदिर - लोहाघाट के निकट , दिगालीचैड़ में है। कांकर - शारदा नदी के तट पर टनकपुर में। इसे ब्रह्मा की तपस्थली माना जाता है। हिंगला देवी मंदिर - ललुवापानी के निकट , कानदेव पर्वत पर है।   घटोत्कच (घटकु) मंदिर - गिड्या नदी के पार फुंगर गांव के समीप स्थित है।           घटकू की बीड़ी नाम से इस मंदिर में एक सुरंग है। लोकमान्यता है कि सूखा या अतिवृष्टि होने पर धर्मशिला नामक स्थान से जल लाकर इसमें वहां मौजूद घड़े से 5 बार पानी डाले जाने पर यदि बीड़ी भर...

सोहम द हिमालयन संग्रहालय मसूरी

चित्र
सोहम विरासत और कला केंद्र मसूरी में एक हिमालयी संग्रहालय है। इसे सोहम द हिमालयन संग्रहालय मसूरी कहा जाता है। इस संग्रहालय में लगभग 4000 वस्तुओं को संरक्षित किया गया है। इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान श्री समीर शुक्ला और उनकी पत्नी कविता शुक्ला रहा है। यहाँ इतिहास के अतिरिक्त उत्तराखंड की संस्कृति का भी संग्रह किया गया है। यहाँ ऐपण, रंगोली, कलाकृतियां, पुराने चित्रों का संग्रह इत्यादि चीजें दर्शनीय है।   ”सोहम म्यूज़ियम के लिए रिर्सच और डाटा कलेक्शन का काम 1997 में शुरु हो चुका था लेकिन इसकी औपचारिक शुरुआत 2014 में हुई”। 

रानीखेत परीक्षा के दृष्टिगत सभी तथ्य

चित्र
रानीखेत            1869 में आधुनिक रानीखेत (छावनी) की स्थापना हुई। कत्यूरी राजा सुधारदेव की रानी पद्मिनी का रमणीय स्थल जिसके नाम पर रानीखेत का नामकरण हुआ। भौगौलिक आधार पर ताड़ीखेत एवं चैबटिया दो हिल स्टेशनों के रुप में बंटा है। तीड़ीखेत जलप्रपात भी प्रसिद्ध है। रानीखेत का प्राचीन नाम झूलादेव था। कुमाऊं रेजीमेंट का मुख्यालय व संग्रहालय(1970) है।  इसे पर्यटकों की नगरी के नाम से जाना जाता है। जानकारी हो कि इसे प्रारम्भ में शिमला की जगह भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया जाना तय किया गया था पर यह सम्भव न हो सका। रानीखेत में जरूरी बाजार है जो इसका ये विचित्र नाम ब्रिटिशकाल में मिला।   स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 के अनुसार रानीखेत दिल्ली और अल्मोड़ा छावनियों के बाद भारत की तीसरी सबसे स्वच्छ छावनी है। रानीखेत जिला आंदोलन                     भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही अल्मोड़ा जिले को बांटकर अलग रानीखेत जिला बनाने की मांग उठती रही है। 1960 के दशक से ही रानीखेत जिले के लिए आंदोलन शुरू ...