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अप्रैल, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उत्तराखंड के प्रमुख मेले (छूटे हुए)

पिछली कई पोस्टों से मैंने मेले मन्दिर लगभग क्लियर कर लिए थे किंतु कुछ नए नाम सुनने को मिलेंगे इसलिए इस पोस्ट में सिर्फ हटकर शामिल किए गए मेले है। 1. रामबाग का मेला- दिनेशपुर, उद्यमसिंह नगर में 2. चौपखिया मेला- पिथौरागढ़ 3. नैथाना का मेला- गेवाड़ घाटी, रानीखेत 4. अग्नेरी देवी मेला- चौखुटिया, रानीखेत 5. मनीला देवी मेला- रानीखेत 6. गिरी का मेला- गोदीबगड़, रानीखेत 7. कठबद्दी मेला- गढ़वाल के ग्वाड़,कोठगी & बहेती गांवों में।       ★ गांव की नाकेबंदी कर काठ का बद्दी बनाया जाता है, बद्दी वादी जाति के व्यक्ति का प्रतीक होता है।       ★ मुख्य विशेषता कि इस मेले में प्रसाद के रूप में रस्से के रेशे बाटें जाते है। 8. जांति मेला। पांडुकेश्वर, चमोली (घण्ड्याल पूजा)        ★ लोहे की जांति(तिखती) को गर्म लाल करके हाथों में उठाने के कारण इसका नाम जांति पड़ा। 9. विसौद मेला- उत्तरकाशी 10. मुंडनेश्वर मेला- असवालस्यु पट्टी, गढ़वाल में। 11. कालिंका मेला- वीरोंखाल 12. पोखु महाराज मेला- मोरी, उत्तरकाशी 13. बोखनाग- राड़ीघाटी के बोखपर्वत पर उत्तरकाशी 14. मोल्ताड़ी मेला- पुरोला, उत्तरकाशी 15. थान का

ग्राम स्वराज अभियान

प्रारम्भ- 14 अप्रैल, 2018 को पिथौरागढ़ से शुरू किया गया। लक्ष्य- 05 मई, 2018 तक ग्राम स्वराज अभियान संचालित किया जायेगा। अन्य बिंदु- इस अभियान के दौरान 18 अप्रैल को स्वच्छ भारत दिवस, 20 अप्रैल को उज्ज्वला दिवस, 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायत राज दिवस, 28 अप्रैल को ग्राम स्वराज दिवस, 30 अप्रैल को आयुष्मान भारत दिवस, 02 मई को किसान कल्याण दिवस, 05 मई को आजीविका दिवस, इनके अतिरिक्त- 14 अप्रैल को सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाया जायेगा। ज्ञातव्य हो कि देश की पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल, 2018 को ‘राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान’ का शुभारंभ किया। राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के रामनगर में प्रधानमंत्री ने इस अभियान की शुरूआत की। उद्देश्य- ‘राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान’ का उद्देश्य ‘ सशक्त पंचायत सशक्त भारत ’ बनाना है। केन्द्र सरकार की इस योजना से पंचायतें आत्मनिर्भर एवं वित्तीय रूप से मजबूत होने के साथ-साथ और कारगर होंगी।

उत्तराखण्ड का इतिहास

उत्तराखण्ड का इतिहास-ः मैंने ये अनुभव किया है कि उत्तराखण्ड का इतिहास श्रोतों के अभाव में अभ्यर्थियों के लिए एक बहुत ही बड़ी समस्या बन के उभरता है। जहां तक इतिहास जानने की बात करें तो इतिहास का सामान्यतः अध्ययन तीन भागों में बांट के किया जाता है तथा उसके विभिन्न श्रोत होते है- क्रमशः- भाग व श्रोत 1.प्रागैतिहासिक काल 2.आद्यऐतिहासिक काल 3.ऐतिहासिक काल उत्तराखण्ड इतिहास के प्रमुख श्रोत- (क). साहित्यिक श्रोत-ः साहित्यिक श्रोतों में उत्तराखण्ड का आद्यऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है। ▷उत्तराखण्ड का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद में ‘देवभूमि या मनीषियों की भूमि‘ नाम से मिलता है। ▷ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मण में ‘कुरूओं की भूमि या उत्तरकुरू‘ नाम से उल्लेखित है। ▷ स्कंदपुराण में माया क्षेत्र (हरिद्वार) से हिमालय तक के क्षेत्र को ‘‘केदारखण्ड‘‘ तथा नन्दादेवी से कालागिरी पहाड़ी (चम्पावत) तक के क्षेत्र को ‘‘मानसखण्ड‘‘ नाम से जाना जाता है। ▷पालीभाषा के बौद्धग्रन्थों में उत्तराखण्ड को ‘‘हिमवंत‘‘ कहा गया है। ▷उत्तराखण्ड में प्रचलित लोक-साहित्य में लोकगाथा