बाबा मोहन उत्तराखंडी लघु जीवन परिचय
हमने जिस शिद्दत से एक लौ जलाई थी। सोचा था हम रहे न रहे, लेकिन ये जलती रही... ये पंक्ति बाबा मोहन उत्तराखंडी के संघर्षों को बयां करती है। राज्य निर्माण के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी ने वर्ष 1997 से आमरण अनशन से संघर्ष शुरू किया। 13 बार उन्होंने आमरण अनशन कर उन्होंने पहाड़ को एक करने में भी अहम भूमिका निभाई। वहीं शासन/प्रशासन (केंद्र व यूपी सरकारों) को उत्तराखंड निर्माण के बार-बार सोचने पर मजबूर किया। सरकारी नौकरी के साथ घर, परिवार को छोड़कर उन्होंने पहाड़ में आंदोलन की एक नई रूपरेखा रची। नवंबर 2000 को उत्तराखंड देश के नक्शे में नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, लेकिन गैरसैंण राजधानी का सपना साकार होना अब भी शेष था। उन्होंने अपना आखिरी आमरण अनश न वेणीताल स्थित "टोपरी उडयार" में 2 जुलाई 2004 को शुरू किया। 37वें दिन 8 अगस्त को उन्हें कर्णप्रयाग तहसील प्रशासन द्वारा जबरन उठाकर सीएचसी में भर्ती किया गया, जहां उन्होंने रात्रि को दम तोड़ दिया था। जीवन परिचय बाबा मोहन उत्तराखंडी का जन्म वर्ष 1948 में हुआ। पौड़ी जिले के एकेश्वर ब्लाक के बठोल