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उत्तराखण्ड की लोक भाषा-मझ कुमैय्यां

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देवभूमि उत्तराखण्ड की लोकभाषाओं को कहने के लिए तो अनेक बोली भाषाओं में विभक्त किया है। लेकिन मूल रूप से ये सभी भाषा बोलियाँ उन्ही गढ़वाली और कुमाऊँनी भाषाओं की बोलियाँ हैं, जिन्हें जार्ज ग्रियर्सन ने भाषा विभेद तैयार करने के लिए अलग-अलग भाषाओं का नाम दिया। परन्तु ये दोनों भाषाएं मूल रूप से शौरसेनी अपभ्रंश से उत्पन्न हुई हैं। यह शौरसेनी अपभ्रंश भाषा भी उसी प्राकृत की पुत्री है, जिसका जन्म पाली से हुआ था। इस तरह पाली संस्कृत की पुत्री और संस्कृत वैदिक भाषा की पुत्री है। भाषा के इस विकास में कुमाउँनी और गढ़वाली दोनों ही भाषा का गोत्र और वंश एक ही है। इनकी एक ही प्रकृति और प्रवृत्ति है। एक जैसी बोलियाँ, एक जैसा वाक्य विन्यास और एक जैसी सहायक क्रियाएं फिर भी अंग्रेजों ने इन्हें क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग दो भाषाओं में विभाजित कर दिया। इन्ही दोनों संस्कृत पुत्रियों की एक बोली है। मझ कुमैय्यां या मांझ कुमैय्यां। इस बोली का बोलने का क्षेत्र है, गढ़वाल और कुमाऊँ का सीमावर्ती दुसान क्षेत्र, यह मूल रूप से गढ़वाली की बोली है लेकिन इसे कुमाऊँ में भी बोला जाता है। इसलिए इस मझ कुमैय्यां क...