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कुमाऊँ के पारम्परिक बर्तन भाग-2 में पढ़ें लकड़ी के बने बर्तन

(ब) लकड़ी के बने बर्तन मानव काष्ठ का प्रयोग प्राचीन काल से करता आया है, ऐसा इतिहासकार बताते हैं। लकड़ी की प्रकृति नाशवान होने के कारण काष्ठ प्रयोग के प्राचीन साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। अतः अपने बड़े बुजुर्गों से जो भी ज्ञात हो पाया उसी आधार पर पुरातन काल से आज तक प्रयोग में लाये गये काष्ठ बर्तन इस प्रकार हैं। कच्यालः -रिंगाल व बॉस के रेशों से बना यह जालिकावत गोल बर्तन प्राचीन समय में जंगल से सूखी पत्तियों को समेट कर लाने हेतु प्रयुक्त किया जाता था। वर्तमान में न तो कच्याल बनाये जाते हैं न इनका प्रयोग किया जाता है। कुट्टीः - मसाले कूटने का यह बर्तन लकड़ी के चौकोर टुकड़े में एक गोल छेद युक्त होता है तथा साथ में एक कूटने के लिए लकड़ी का मूसल भी होता है। इसमें अदरक, गरम मसाला, इलायची आदि कूटे जाते हैं। चकली, चकई (चकला) एवं बेलनः यह लकड़ी के बने होते हैं। चकले पर आटे की लोई रखकर रोटी बेली जाती है। सामान्यतः पुराने समय में रोटिया हाथ (में लोई रखकर) से, बिना चकले के उपयोग के ही बनाई जाती थी। छपीः - लकड़ी का बना यह बर्तन उपर की ओर से चौडा व गोल एवं नीचे की ओर से संकरा होता है। इसका उपयोग अनाज क...