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न्यौता परम्परा में सौंफ-सुपारी

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भारतीय संस्कृति में 'न्यौता' देने की परम्परा न केवल सामाजिक संबंधों को प्रगाढ़ करने का माध्यम रही है, बल्कि यह विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप भी विकसित होती रही है। उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों में न्यौते की परम्परा का एक अत्यंत रोचक और विशिष्ट रूप देखने को मिलता है, जिसमें 'सौंफ' और 'सुपारी' देना एक अनिवार्य प्रथा रही है। आवागमन की कठिनाइयाँ और न्यौते की विशेष व्यवस्था-  उत्तराखंड के दुर्गम पर्वतीय गाँवों में आवागमन सदैव एक कठिन कार्य रहा है। एक गाँव से दूसरे गाँव तक पहुँचने के लिए घने जंगलों, तीखी चढ़ाइयों और गहरी उतराइयों से होकर गुजरना पड़ता था। आज के समय में जबकि मोबाइल और व्हाट्सएप्प जैसे संचार के साधन उपलब्ध हैं, तब भी न्यौते की पारम्परिक विधियाँ यहाँ अपना महत्त्व बनाए हुए हैं। परन्तु पूर्व में, जब कोई त्वरित संपर्क का साधन नहीं था, तब न्यौते को पहुँचाना अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी और श्रमसाध्य कार्य होता था। सौंफ और सुपारी का प्रतीकात्मक महत्त्व- न्यौते के साथ सौंफ और सुपारी देना एक गहरी सांस्कृतिक परम्परा है। सौंफ को यहाँ शुभता, शी...

कुमाऊं में विवाह संस्कार

पुरातन काल से ही भारतीय हिन्दू समाज में विवाह को जीवन का एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। विवाह स्त्री-पुरुष का मिलन मात्र नहीं अपितु एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जहां से मानव वंश को आगे बढ़ाने, पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति करने और जीवन के विविध आयामों से जुड़ने की शुरुआत होती है। कुमाऊं अंचल में प्रचलित वैवाहिक प्रथा के सन्दर्भ में यदि हम बात करें, तो हम पाते हैं कि यहां सामाजिक वर्ण-व्यवस्था के अनुरुप वैवाहिक सम्बन्ध और विवाह पद्धतियां प्रचलित रही हैं और सामान्य अन्तर और विविधता के साथ कमोवेश आज भी चलन में हैं। यदि 1920 से पूर्व और उसके समकालीन समय की बात की जाय तो तत्कालीन कुमांऊ अंचल में परम्परागत तौर पर तीन तरह के वैवाहिक सम्बन्ध प्रचलित थे (पन्नालाल, आई.सी.एस, 1920, सरकारी अभिलेख)। जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है। (क) विवाह संस्कार वाली पत्नी लोगों के समक्ष जब किसी महिला को पत्नी बनाने के लिए अनुष्ठान, संस्कार तथा स्थानीय रीति-रिवाज के साथ विवाह किया जाता है उसे विवाह संस्कार द्वारा मान्य पत्नी का दर्जा दिया जाता है। कुमाऊं अंचल में इस तरह का वैवाहिक सम्बन्ध सर्वाधिक प्रचलन में ...