वन रैंक वन पैंशन योजना
वन रैंक वन पेंशन स्वीकृत पेंशन किसी नियोक्ता का उसके कर्मचारियों के प्रति दायित्व है। यह दायित्व किसी कर्मचारी की पूर्व में प्रदान की गई सेवाओं के लिए होता है। पूर्व कर्मचारियों के पेंशन का कोई भी संबंध उसी नियोक्ता के भविष्य के नए कर्मचारियों द्वारा प्राप्त वेतन, भत्तों अथवा पेंशन से नहीं होता है। प्रत्येक नियम-विनियम की एक ‘कट ऑफ डेट’ होती है। उदाहरण के लिए यदि कोई कृत्य किसी पूर्व कानून के तहत अपराध घोषित हो किंतु बाद के कानून में उसे आपराधिक कृत्य न माना गया हो तो कोई व्यक्ति पूर्व में किए गए कृत्य (पूर्व कानून के अनुसार अपराध) हेतु नए कानून के अनुसार अपराध मुक्त करने की याचना नहीं कर सकता है। चूंकि पेंशन का आधार भी कर्मचारी की पूर्व में की गई सेवाएं एवं उस दौरान प्राप्त वेतन व भत्तों को बनाया जाता है। इसीलिए वन रैंक वन पेंशन के सिद्धांत को इस हेतु गठित 9 समितियों ने खारिज किया था तथा सर्वोच्च न्यायालय के 2 निर्णयों में इससे असहमति जताई गई थी। यहां पर देश के लिए जान न्योछावर करने वाले सैनिकों का मामला थोड़ा अलग है। सैन्य कर्मियों की सेवा अवधि नागरिक सेवा के कर्मचारियों की तुलना मे