वन रैंक वन पैंशन योजना

वन रैंक वन पेंशन स्वीकृत

पेंशन किसी नियोक्ता का उसके कर्मचारियों के प्रति दायित्व है। यह दायित्व किसी कर्मचारी की पूर्व में प्रदान की गई सेवाओं के लिए होता है। पूर्व कर्मचारियों के पेंशन का कोई भी संबंध उसी नियोक्ता के भविष्य के नए कर्मचारियों द्वारा प्राप्त वेतन, भत्तों अथवा पेंशन से नहीं होता है। प्रत्येक नियम-विनियम की एक ‘कट ऑफ डेट’ होती है। उदाहरण के लिए यदि कोई कृत्य किसी पूर्व कानून के तहत अपराध घोषित हो किंतु बाद के कानून में उसे आपराधिक कृत्य न माना गया हो तो कोई व्यक्ति पूर्व में किए गए कृत्य (पूर्व कानून के अनुसार अपराध) हेतु नए कानून के अनुसार अपराध मुक्त करने की याचना नहीं कर सकता है। चूंकि पेंशन का आधार भी कर्मचारी की पूर्व में की गई सेवाएं एवं उस दौरान प्राप्त वेतन व भत्तों को बनाया जाता है। इसीलिए वन रैंक वन पेंशन के सिद्धांत को इस हेतु गठित 9 समितियों ने खारिज किया था तथा सर्वोच्च न्यायालय के 2 निर्णयों में इससे असहमति जताई गई थी।
यहां पर देश के लिए जान न्योछावर करने वाले सैनिकों का मामला थोड़ा अलग है। सैन्य कर्मियों की सेवा अवधि नागरिक सेवा के कर्मचारियों की तुलना में कम होती है। सिविल सेवकों की सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष होती है किंतु 85 प्रतिशत सैनिक 35 से 37 वर्ष की उम्र में ही अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त (Compulsorily Retired) कर दिए जाते हैं। 12 से 13 प्रतिशत सैनिक 40 से 54 वर्ष की आयु तक सेवानिवृत्त हो जाते हैं। आयु की स्वर्णिम अवधि सैन्य सेवा में ही व्यतीत हो जाने के कारण अन्यत्र सेवा प्राप्ति की संभावनाएं भी अल्प हो जाती हैं। एक और बात यह कि सैन्य अभियानों में घायल हो जाने के कारण भी बहुत से सैनिक पुनः सेवायोजित होने में अक्षम होते हैं। एक सैन्य कर्मी की सेना में दी गई सेवाओं से उसका भविष्य भी प्रभावित होता है। यही वन रैंक वन पेंशन के सिद्धांत को मजबूती प्रदान करता है।
सितंबर, 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार एवं मेजर जनरल एस.पी.एस. वैंस एवं अन्य के वाद में यह निर्णय दिया कि कोई भी वरिष्ठ सैन्य कर्मी उसी पद से सेवानिवृत्त अपने कनिष्ठ से कम पेंशन नहीं प्राप्त करेगा। इसी निर्णय के संबंध में याचित न्यायलीय अवमानना पर इस वर्ष (2015) 17 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह सेवानिवृत्त सशस्त्र बल कर्मियों पर वन रैंक वन पेंशन का सिद्धांत लागू करें। सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा को वह वादा भी याद दिलाया जिसे उसने 2014 के लोक सभा चुनावों के दौरान किया था। न्यायालय के आदेश के बाद भी देरी होते देख पूर्व सैनिकों ने नई दिल्ली के जंतर मंतर पर 15 जून, 2015 से भूख हड़ताल शुरू कर दी। सैनिकों का संघर्ष रंग लाया और अंततः 5 सितंबर, 2015 को सरकार ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ लागू करने की घोषणा कर दी।

5 सितंबर, 2015 को रक्षा मंत्री श्री मनोहर पर्रिकर ने पूर्व सैनिकों के लिए ‘वन रैंक वन पेंशन’ की घोषणा की।
अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि भारत सरकार अपने रक्षाबलों तथा पूर्व सैनिकों के पराक्रम, देशभक्ति तथा त्याग के लिए उनका सम्मान करती है।

वन रैंक वन पेंशन समान पद पर समान अवधि तक कार्य करने वाले सेवानिवृत्त सैनिकों को समान पेंशन प्रदान करने की नीति है।

इस नीति में यह संज्ञान में नहीं लेना है कि समान पद से सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों की सेवानिवृत्ति तिथि अलग-अलग है।

उदाहरण के लिए वर्ष 1980 एवं 2015 में कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हुए दो अलग-अलग सैन्य कर्मियों को समान पेंशन प्रदान करना ही वन रैंक वन पेंशन की नीति है।

वन रैंक वन पेंशन की मांग विगत 42 वर्षों से लंबित है।
वर्ष 1973 तक वन रैंक वन पेंशन की नीति लागू थी किंतु इसी वर्ष इंदिरा गांधी की तत्कालीन सरकार ने इसे निरस्त कर दिया था।

वन रैंक वन पेंशन का निर्धारण वर्ष 2013 होगा।
वर्ष 2013 में न्यूनतम तथा अधिकतम पेंशन के औसत के अनुसार समान पद तथा सेवा की समान अवधि के आधार पर सभी पेंशन धारकों की पेंशन का पुनर्निर्धारण किया जाएगा।

औसत से अधिक पेंशन प्राप्त कर रहे पेंशनरों को संरक्षण प्रदान किया जाएगा।

पेंशन निर्धारण के पश्चात वर्तमान पेंशन से अधिक की राशि अर्थात लाभ 1 जुलाई, 2014 से देय होगा।
जिस माह से बढ़ी हुई पेंशन प्राप्त होगी उससे पहले की संपूर्ण बढ़ी हुई राशि (जुलाई, 2014 से प्रारंभ कर) अर्थात एरियर का भुगतान 4 अर्धवार्षिक किस्तों में किया जाएगा।

सभी विधवाओं को एरियर की राशि एक किस्त में ही दी जाएगी।

लगभग 22 लाख पूर्व सैनिकों और 6 लाख विधवाओं को यह राशि प्राप्त होगी।

भविष्य में प्रत्येक 5 वर्ष पर पेंशन का पुनर्निर्धारण किया जाएगा।

पूर्व सैनिक प्रतिवर्ष पुनर्निर्धारण की मांग कर रहे हैं।
5 सितंबर की घोषणा में स्पष्ट कहा गया था कि स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हुए सैनिकों को OROP का लाभ नहीं मिलेगा किंतु बाद में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि सेना में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति नहीं होती है। यहां समय पूर्व सेवानिवृत्ति (PMR-Premature Retirement) होती है। अतः OROP का लाभ सभी सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों को मिलेगा।

वन रैंक वन पेंशन के क्रियान्वयन में पेंशन समायोजन तथा एरियर राशि हेतु लगभग 16 हजार करोड़ रु. और प्रति वर्ष 8-10 हजार करोड़ का व्यय अनुमानित है।
OROP 60 से वित्त वर्ष 2015-16 में GDP के 0.1 प्रतिशत का बोझ खजाने पर संभावित है।

वन रैंक वन पेंशन लागू करने के लिए अलग अवधि तथा अलग पदों से सेवानिवृत्त हुए सैनिकों के हितों का गहन अध्ययन करना जरूरी है।

तीनों सेनाओं के अंतर सेवा मामलों (Inter services issues) पर भी विचार की जरूरत है।

इसके लिए एक सदस्यीय न्यायिक समिति गठित की जाएगी जो 6 महीने में अपनी रिपोर्ट देगी।

पूर्व सैनिक इस हेतु 5 सदस्यीय समिति की मांग कर रहे हैं।

वन रैंक वन पेंशन पर 2010-11 में एक 10 सदस्यीय संसदीय समिति का गठन किया गया था।

समिति के अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी के सांसद ‘भगत सिंह कोशियारी’ बनाए गए थे।

कोशियारी समिति ने OROP के पक्ष में अनुशंसा की थी।
कोशियारी समिति ने दिसंबर, 2011 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

जैसी कि आशंका थी 24 सितंबर, 2015 को ‘अर्ध सैनिक बलों’ के पेंशनरों ने भी वन रैंक वन पेंशन की मांग रख दी है।

अर्ध सैनिक बलों के पेंशनरों ने 2 नवंबर से जंतर-मंतर पर धरना पर बैठने की घोषणा की है।

नागरिक सेवाओं के पेंशनर भी वन रैंक वन पेंशन की मांग के प्रति मुखर हो रहे हैं।

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