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लूंगला उत्सव

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कृषि प्रधान क्षेत्रों में अपने कठिन कार्यों के बीच यहां के लोग किसी न किसी तरह अपने कुछ पल मनोरंजन व खुशी के लिए निकाल देते हैं। ज्येष्ठ-आषाढ़ में उत्तरकाशी के रवांई क्षेत्र में धान की रोपाई का काम जोरों पर होता है जिसको वे त्यौहार के रूप में मनाते हैं। इस त्यौहार को 'लूंगला' नाम से जाना जाता है। क्षेत्र के लोग आज भी रोपाई का कार्य शुरू करने के लिए शुभदिन-शुभ मुहूर्त निकालते हैं। ढोल बाजों के साथ रोपाई का कार्य आरंभ किया जाता है। किसी दिन एक परिवार के खेतों की रोपाई की जाती है तो दूसरे दिन सभी मिलकर दूसरे परिवार की रोपाई पूरी करते हैं। इस परंपरा को 'पडयाला' या 'सटेर' कहा जाता है। इस अवसर पर यह प्रयास रहता है कि एक परिवार की रोपाई एक ही दिन में पूरी हो जाए। इसलिए आवश्यकतानुसार गांव की महिलाओं व पुरुषों को रोपाई के लिए बुला लिया जाता है। जिससे खेतों में रौनक बढ़ जाती है। बाजगी लोग खेतों की मेड़ पर बैठकर ढोल वादन करते हैं। महिलाएं रोपाई करती हुई लायण, छोड़े, पंवाड़े व बाजूबंद गाती हैं। रोपाई के अवसर पर घरों में पकवान के रूप में स्वाले-पकोड़े, हलुवा-पूरी...

क्यूंसर का मेला

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जनपद के जौनपुर विकास खंड का यह एक लोकमान्य देवता है। इसका मंदिर पालीगाड़ पट्टी में बगसील गांव के अन्तर्गत देवलसारी नामक स्थान पर स्थित है। जहां इसकी पूजा नागराज के रूप में की जाती है। इस स्थान पर आश्विन मास की संक्रांति को एक उत्सव का आयोजन किया जाता है। लोक कथा प्रचलित है कि एक बार इस गांव में एक साधु आया। उसे देवलसारी सेरा बहुत पसंद आया किन्तु यहां के सयाणें ने उसकी प्रताड़ना करके उसे भगा दिया। क्रुद्ध होकर साधु ने श्राप दे दिया कि तुम्हारे इस सेरे में धान की जगह देवदारु के वृक्ष उग जायेंगे, ऐसा ही हुआ। लोगों ने देखा कि खेतों में धान की जगह देवदारु उग आए हैं और जिस स्थान पर साधु बैठा हुआ था, वहां पर एक नाग कुंडली मारे बैठा हुआ है। तब भयभीत होकर गांव के लोगों ने दूध, दही, पुष्प-फल लाकर उसकी पूजा की। पश्चात् उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कर दिया गया। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग के निकट जलकुंडी है। इसके जल के सम्बन्ध में लोगों का कहना है कि आश्विन मास की संक्रांति के दिन जब पुजारी उस जलकुंडी के समक्ष शंख ध्वनि करता है तो जलकुंडी से जल स्वतः ही बाहर की ओर प्रवाहित होने लगता ...