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अप्रैल 12, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सीमांत की अनोखी बैशाखी जो बिच्छू घास लगाकर आयोजित होती है।

      ले गुड़ खा, साल भर सांप-कीड़े नहीं दिखेंगे कहकर सुबह ही ईजा देशान(बिस्तर) में गुड़ दे दिया करती थी, और मैं बड़ी उत्सुक्तावस गुड़ खाते हुए उठता था कि आज कहाँ धमाका होने वाला है. धमाका दरअसल हर बैशाखी को हमारे क्षेत्र मे होता था, हम तो छोटे थे पर दीदी, ददा, और भाभियाँ आज के दिन बहुत सतर्क रहती थी क्योंकि आज का दिन सच में हंगामे और धमाके का होता था। हमारे सीमांत में होली तो नहीं मनाई जाती पर ये त्यौहार किसी होली से कम नहीं होता, हालांकि सब अपनी दिनचर्या में व्यस्त पर सजग होते थे आज के दिन न जाने कब कहाँ से भाभी, देवर, ननद, साली, जीजा कोई भी आ जाये और सिन्ने से हमला कर दे। जी हाँ सिन्ने से वही सिन्ना जिसे आप बिच्छू घास या कंडाली के नाम से जानते हैं।           तब जब हम बच्चे थे एक खुशी ये भी होती थी कि आज के दिन हमारे मासाब घर से बाहर नहीं निकलेंगे, क्योंकि हर वर्ष की तरह इस बार भी बड़ी दीदी लोगों ने मासाब को सिन्ना लगाके बेहाल करना है। गाँव में चूंकि एक ही बिरादरी के अधिकतर लोग थे, और जिनके मज़ाक के रिश्ते नहीं होते थे उनके लिए मासाब आसान शिकार थे, क्योंकि वो बाहर के थे उनसे कोई रिश्ता गा