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चौखुटिया

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चौखुटिया शब्द उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित एक कस्बे का नाम है। यह कस्बा रामगंगा नदी के तट पर बसा हुआ है। उत्पत्ति: यह शब्द कुमाऊंनी भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है:  * चौ (chau): जिसका अर्थ है "चार"।  * खुट (khut): जिसका अर्थ है "पैर"। इस प्रकार, "चौखुट" का शाब्दिक अर्थ "चार पैर" होता है। चौखुटिया के संदर्भ में, इन "चार पैरों" का अर्थ है चार रास्ते या दिशाएँ जो इस स्थान से विभिन्न ओर जाती हैं। ये चार मार्ग चौखुटिया को रामनगर, कर्णप्रयाग, रानीखेत और तड़ाग ताल से जोड़ते हैं। स्थानीय रूप से "चौखुटिया" शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से इस कस्बे और इसके आसपास के क्षेत्र के लिए किया जाता है।   इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोक साहित्य और संस्कृति में भी इस शब्द का प्रयोग मिलता है, जैसे कि चौखुटिया-गेवाड़ क्षेत्र में प्रचलित झोड़ा नामक लोकगीत में। संक्षेप में, "चौखुटिया" एक स्थान का नाम है जिसकी उत्पत्ति कुमाऊंनी भाषा के "चार पैर" अर्थ वाले शब्दों से हुई है, जो यहाँ से निकलने वाले चार महत्वपूर्ण रास्तों को इंगित करता...

रवाँई का एक अनूठा लोकानुष्ठान 'खोदाईं'- श्री महावीर रखाँल्टा

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रवाँई क्षेत्र में एक कहावत प्रसिद्ध है कि 'डूम कू जागरु अर खसिया अनिंदरु' यानि हरिजन का जागर और खसिया राजपूत जागे। यह कहावत यूँ ही प्रचलित नहीं है। बल्कि इस क्षेत्र के हरिजनों में ऐसे 'जागर' की परम्परा भी है जिसमें भागीदारी हरिजन परिवारों की होती है और श्रवण के लिए गाँव और आसपास के सारे लोग आते हैं। सामान्यतः तीसरे या पाँचवें वर्ष रात्रि जागरण एवं स्तुति का यह अनुष्ठान किसी एक हरिजन परिवार में होता है, लेकिन सक्रिय सारे हरिजन परिवार रहते हैं। स्थानीय वासियों में यह अनुष्ठान 'खोदाई' के नाम से ख्यात है। 'खोदाई' को सम्पन्न कराने के लिए एक विशिष्ट व्यक्ति 'जग' को आमंत्रित किया जाता है तथा उसके साथ दो-तीन व्यक्ति और होते हैं।                 पुस्तक जिससे यह लेख लिया गया है। तीन रात्रियों में सम्पन्न होने वाली खोदाई में जगऱ्या की प्रमुख भूमिका होती है। वह गाते हुए अनुष्ठान हो आगे बढ़ाता है और बाकी लोग उसी को दोहराते हुए उसका साथ देते हैं। खोदाई के लिए पहले मकान की छत उखाड़नी पड़ती थी और वहीं बैठकर सवर्ण लोग पूरी रात खोदाईं देखते थे। खोदाई क...