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गढ़वाल क्षेत्र में धान का कटोरा कहा जाता है रामा सिराईं

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        रवाईं क्षेत्र उत्तरकाशी में स्थित   रामा सिराईं को गढ़वाल का धान का कटोरा   कहा जा सकता है। नामकरण का कारण है इस क्षेत्र में उपजने वाला लाल चावल जिसके लिए ये जाना जाता है। ज्ञातव्य हो कि   कुमाउं क्षेत्र में धान का कटोरा बोरारौ में स्थित कोसी नदी घाटी   को कहा जाता है। यहां नदी की बात करें तो   कमल नदी घाटी को धान का कटोरा   कहा जाना उचित प्रतीत होता है। यहां उगने वाला लाल चावल   च्वाटूधान तथा च्वार धान   कहलाता है। यह धान यहां हिमाचल की धान घाटी च्वारघाटी से आया था।           बात कमल नदी की करें तो उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के पुरोला विकासखण्ड में बहने वाली कमल नदी का अपना अलग ही महत्त्व है। स्थानीय लोग इस नदी को ‘ कमोल्ड ’ नाम से जानते हैं। कमल नदी यहाँ के लोगों की जीवनरेखा है।           यह नदी कोई ग्लेशियर से निकलने वाली नहीं है , यह तो कमलेश्वर स्थित जंगल के बीच एक प्राकृतिक जलस्रोत से निकलती है। जो सदाबहार जलधारा है। यह जलधारा कमल नदी के रूप में लगभग 30 किमी बहकर नौगाँव के पास यमुना में संगम बनाती है। जो कि क्रमशः कमलेश्वर से रामा , बेष्टी , कण्डियाल गाँव , कुम

10 महत्पवपूर्ण सवाल मिशन UKSSSC सीरीज-16

1- राज्य में जन्तु रक्षक प्रशिक्षण केन्द्र कहां स्थित है?     सही उत्तर है - कालागढ़ 2- सबसे कम कार्यकाल वाले राज्यपाल कौन थे?   सही उत्तर है- बी0एल0 जोशी 3- अन्तर्राष्ट्रीय सीमा बनाने वाले राज्य के जिलों की संख्या कितनी है?  सही उत्तर है-05 4- उत्तराखण्ड में यमुना की सबसे बड़ी सहायक नदी कौन सी है?   सही उत्तर है- टोंस 5- कोटा खर्रा आन्दोलन का सम्बन्ध किससे था?  सही उत्तर है-  तराई में भूमिदान से  6- ऋषिकेश से शुरू किया गया गंगा जागरण अभियान कब प्रारम्भ हुआ था?  सही उत्तर है- उमा भारती द्वारा 28 जून, 2014 7- विषकन्या नामक रचना किसकी है?  सही उत्तर है- गौरा देवी ‘शिवानी’ 8- उत्तराखण्ड राज्य में पदोन्नति में आरक्षण कबसे समाप्त किया गया?  सही उत्तर है- 05 सितम्बर, 2012 9- राज्य का सर्वाधिक उंचाई पर स्थित दर्रा ?  सही उत्तर है- थांगला दर्रा 10- ढेला ईको टूरिज्म जोन कहां स्थित है?  सही उत्तर है- कार्बेट नेशनल पार्क रामनगर

उत्तराखंड की तीजनबाई कबूतरी देवी

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      “आज पनि झौं-झौ, भोल पनि झौं-झौं, पोरखिन त न्है जूंला” और “पहाड़ों को ठण्डो पाणि, कि भलि मीठी बाणी”।   इस आवाज की मालकिन हैं, "उत्तराखण्ड की तीजन बाई" कही जाने वाली श्रीमती कबूतरी देवी जी। कबूतरी देवी मूल रुप से सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के मूनाकोट ब्लाक के क्वीतड़ गांव की निवासी थी।  जहां तक पहुंचने के लिये आज भी अड़किनी से 6 कि०मी० पैदल चलना पड़ता है। इनका जन्म 1945 काली-कुमाऊं (चम्पावत जिले) के लेटी गांव में एक मिरासी (लोक गायक) परिवार् में हुआ था। संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने गांव के देब राम और  देवकी देवी और अपने पिता श्री रामकाली जी से ली, जो उस समय के एक प्रख्यात  लोक गायक थे। लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली। पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग है। विवाह के बाद इनके पति श्री दीवानी राम जी ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थीं। 70 के दशक में इन्