संदेश

2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सेना का जनरल बकरा 'बैजू'

आज़ादी से पहले की बात है जब गढ़वाल राइफल्स का ट्रेनिंग कैम्प लैंसडौन था। उस समय लैंसडौन नगर में एक बकरा जो निडर विचरण करता हुआ नजर आ जाता था वो ऐसा वैसा बकरा नहीं था बल्कि सेना का जनरल था जिसका नाम था जनरल बैजू। बात 1919 के एंग्लो-अफगान युद्ध में मोर्चे पर रॉयल अंग्रेजी सेना का हिस्सा रही गढ़वाल राइफल की एक टुकड़ी की है जब वह अफगानिस्तान के चित्राल क्षेत्र में भटक गए थे। यह सैन्य टुकड़ी दिन भर शत्रुओं के कारण झाड़ी में रही तथा रात को बाहर निकलती थी। एक रात थके-भटके भूखे सिपाही अपना मार्ग ढूंढ रहे थे तभी सामने झाड़ी हिलते हुई प्रतीत हुई, उन्हें लगा शत्रुओं ने घेर लिया है और भटकी हुई टुकड़ी ने अपने बचे-कुचे अस्त्र सम्भाल कर चौकन्ने हो गए। थोड़ी देर में झाड़ी से एक भीमकाय बकरा बाहर निकला तब सैनिकों की जान में जान आई। वह बकरा निर्भय सैनिकों को निहार रहा था। लम्बी दाड़ी वाले उस बकरे ने सिपाहियों से डरे बिना उनके नजदीक आने का इंतज़ार किया और फिर धीरे-धीरे उल्टे पाँव ही चलते हुए सिपाहियों को रास्ता दिखाने लगा। काफी दूर जाने पर बकरा एक चौड़े खेत में रुक गया, सैनिकों ने उसे घेर रखा था कि बकरे ने बिना डरे

राज्य के विविध दिवस

1. राज्य जल दिवस- 25 मई 2. हरियाली दिवस- 5 जुलाई 3. वृक्षोरोपण दिवस- 25 जुलाई  (श्रीदेव सुमन की स्मृति में) 4. राज्य में प्रेरणा दिवस- 12 अगस्त  (नरेन्द्र नेगी जन्मदिवस) 5. कुमाऊंनी भाषा दिवस- 1 सितम्बर (2018 से शुरु) 6. गढ़वाली भाषा दिवस- 2 सितम्बर (2018 से शुरु) 7. हिमालय दिवस - 9 सितम्बर (2014 से शुरु)          8. उत्तराखण्ड गौरव दिवस -10 सितम्बर (गोविन्दबल्लभ पंत जन्मदिवस) 9. जागर संरक्षण दिवस- 17 सितम्बर (प्रीतम भरतवाण जन्मदिवस) 10.उत्तराखण्ड साहित्य दिवस- 19 सितम्बर ( हरिदत्त भट्ट पुण्यतिथि) 11. लोक संस्कृति दिवस- 24 दिसम्बर (इन्द्रमणि बड़ौनी जन्मदिवस) 12. राज्य में मत्स्य दिवस- 10 जुलाई उत्तराखण्ड ज्ञानकोष जनपद दर्पण से उद्धरित

थारू जनजाति Part-1

थारू जनजाति की विशेषता – थारू जनजाति को सन 1967 में भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था. थारू जनजाति के अंतर्गत 7 उपसमूह आते हैं राणा(थारू),बुक्सा, गडौरा, गिरनामा, जुगिया दुगौरा, सौसा, एवं पसिया. इन जनजातीय समुदायों के 12 गाँव उधमसिंह नगर जिले में हैं. थारू जनजाति के लोग स्वयं को थार भूमि का मूल निवासी मानते हैं. थारू जनजातीय लोगों ने उधमसिंह नगर जिले में अपने राजाओं के नाम से 12 गांवों को बसाया था. जिनमें से प्रमुख हैं सिसौदिया राजा के नाम से सिसौना गाँव, रतन सिंह के नाम से रतनपुर इसी प्रकार से पूरनपुर, प्रतापपुर, वीरपुर आदि गाँव इन जनजातीय लोगों ने बसाए. आजादी से पूर्व जनसमाज में थारु के स्थान पर और सन 1950-55 तक इनके लिए थरूआ शब्द का प्रयोग होता था। स्वयं थारू भी अपने लिए थरूआ और थरूनिया शब्द का प्रयोग करते थे। इन पंक्तियों का लेखक स्वयं इस क्षेत्र में 1950 से लगातार रह रहा है और इस जनजाति के जो भारतीय क्षेत्र में रहती है, के बहुत सन्निकट रहा है। चूंकि नेपाल भी सीमावर्ती क्षेत्र है, इसलिए उस क्षेत्र के थारूओं से भी निकट का परिचय स्वाभाविक है। इस लिए किसी अन्

सीमांत की अनोखी बैशाखी जो बिच्छू घास लगाकर आयोजित होती है।

      ले गुड़ खा, साल भर सांप-कीड़े नहीं दिखेंगे कहकर सुबह ही ईजा देशान(बिस्तर) में गुड़ दे दिया करती थी, और मैं बड़ी उत्सुक्तावस गुड़ खाते हुए उठता था कि आज कहाँ धमाका होने वाला है. धमाका दरअसल हर बैशाखी को हमारे क्षेत्र मे होता था, हम तो छोटे थे पर दीदी, ददा, और भाभियाँ आज के दिन बहुत सतर्क रहती थी क्योंकि आज का दिन सच में हंगामे और धमाके का होता था। हमारे सीमांत में होली तो नहीं मनाई जाती पर ये त्यौहार किसी होली से कम नहीं होता, हालांकि सब अपनी दिनचर्या में व्यस्त पर सजग होते थे आज के दिन न जाने कब कहाँ से भाभी, देवर, ननद, साली, जीजा कोई भी आ जाये और सिन्ने से हमला कर दे। जी हाँ सिन्ने से वही सिन्ना जिसे आप बिच्छू घास या कंडाली के नाम से जानते हैं।           तब जब हम बच्चे थे एक खुशी ये भी होती थी कि आज के दिन हमारे मासाब घर से बाहर नहीं निकलेंगे, क्योंकि हर वर्ष की तरह इस बार भी बड़ी दीदी लोगों ने मासाब को सिन्ना लगाके बेहाल करना है। गाँव में चूंकि एक ही बिरादरी के अधिकतर लोग थे, और जिनके मज़ाक के रिश्ते नहीं होते थे उनके लिए मासाब आसान शिकार थे, क्योंकि वो बाहर के थे उनसे कोई रिश्ता गा

फोर्ट मोयरा तथा लाउडन फोर्ट के सम्बंध में।

पिथौरागढ़ के लाउडन फोर्ट तथा अल्मोड़ा के फोर्ट मोयरा के नामकरण के सम्बन्ध में। सर्वप्रथम अपनी पूर्व पोस्ट के लिए खेद प्रकट करता हूँ   और अवगत कराना चाहता हूँ कि वो तथ्य आंशिक रूप से सत्य थे   जो पिथौरागढ़ किले के नामकरण पर पूर्व में लिखे गये थे।            1815  में गोरखों को पराजित कर अंग्रेजी शासन की नींव उत्तराखण्ड में रख दी गई। आंग्ल-ब्रिटिश युद्ध 1814-1816 के मध्य चला तथा इस युद्ध के समय भारत के गवर्नर जनरल फ्रैंसिस रॉडन हेस्टिंग्स था जो इस पद पर 1813 से 1823  तक रहा। हेस्टिंग्स  द्वितीय अर्ल  ऑफ     मोयरा   (Earl Of Moira)  था। अतः हेस्टिंग्स को प्रसन्न करने के लिए ही अल्मोड़ा के लाल मण्डी किले का नाम फोर्ट मोयरा रखा गया। जबकि हेस्टिंग्स की पत्नी फ्लोरा म्यूर कैम्पबेल  काउन्टेस  ऑफ   लाउडन   (Earl Of Loudoun) थी। क्योंकि पांचवे अर्ल ऑफ   लाउडन aकी एकमात्र सन्तान फ्लोरा थी अतः उसे लाउडन की काउंटेस बनाया गया। इस कारण लॉर्ड   हेस्टिंग्स दोनों ही क्षेत्रों के अर्ल बन गये थे। अतः पिथौरागढ़ के किले का नाम भी फोर्ट लाउडन रखा गया।        मोयरा आयरलैण्ड में एक पैरिश है। जबकि

oneliner

1. पर्यावरण विकास योजना- 11 मार्च, 2006 को देहरादून से पीसीएस अधिकारी हरक सिंह रावत द्वारा शुरू. 2. मजदूर कृषक संघ उत्तराखंड- 19983-84, गणेश सिंह गरीब एवं कुंवर सिंह नेगी कर्मठ द्वारा। 3. फेस ऑफ क्राउड नामक कार्यक्रम दूरदर्शन द्वारा  1992 में शुरू किया गया जो आधारित था- बी मोहन नेगी के भोजपत्र पर कला पर। 4. शक्ति पत्र में सरस्वती एवं माधुरी नामक प्रभावशाली लेख थे- हर्षदेव ओली 5. उंटी बैंक लूट- 28 अप्रैल, 1933 को बच्चूलाल गढ़वाली तथा शम्भूनाथ आज़ाद द्वारा। 6. राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी की कर्मभूमि देहरादून थी किंतु उनका जन्म हुआ था- नारनौल, हरियाणा में। 7. रामबाग का मेला- दिनेशपुर के निकट उधमसिंह नगर में आयोजित होता है। इसका सम्बन्ध बुक्सा जनजाति से है। 8. गुडौल है- त्रिमल चन्द के सेनापति संग्राम कार्की की वीरगाथा जो काली कुमाऊँ(चंपावत) तथा नेपाल में प्रचलित है। 9. 30 मई, 1930 तिलाड़ी कांड के समय गोली चलाने के आदेश चक्रधर जुयाल ने, जुयाल को आंदोलनकारियों की गतिविधियों की सूचना देने वाला व्यक्ति- मोहन सिंह रावत 10. बगड़वाल नृत्य- ऐतिहासिक वीर भड़ जीतू बगड़वाल की स्मृति में किय

उत्तराखंड के प्रथम पदम् श्री सुखदेव पांडेय

चित्र
मदन मोहन मालवीय के प्रिय शिष्य, मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के निवासी, 1893 देहरादून में जन्में। गणित और भौतिकी ज्यामिति की 4400 शब्दों की शब्दावली लिखने और बीज गणित तथा त्रिकोणमिति की पुस्तकों का प्रणयन कर ख्याति पाने वाले सुखदेव पांडेय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर थे। सुखदेव पांडेय 1956 में उत्तराखंड से पदम् श्री पाने वाले प्रथम व्यक्ति हैं। अल्मोड़ा से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर इलाहाबाद के म्योर कॉलेज से 1917 गणित में M. Sc. उत्तीर्ण कर 1918 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गणित के सहायक प्रोफेसर बने। सेवाकाल में ये NCC के कमांडिंग ऑफिसर भी रहे। इन्होंने प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ. गणेश प्रसाद के निर्देशन में शोध कार्य भी किया। सुखदेव पांडेय अपनी प्रतिभा और कर्तव्यनिष्ठा के कारण मदन मोहन मालवीय के बहुत करीब थे। 1929 में बिरला एजुकेशन ट्रस्ट की स्थापना घनश्याम दास बिरला द्वारा शेखावटी, पिलानी, राजस्थान में की गई। इस ट्रस्ट के तहत एक इंटरमीडिएट स्कूल पिलानी में स्थापित करवाया गया था। GD बिरला द्वारा मदन मोहन मालवीय से अनुरोध किया कि वे BHU छोड़कर यहां प्रधानाचार्य बनें, अथवा अपने