संदेश

2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा

चित्र
राजनेता,  उत्तर प्रदेश   के   मुख्यमंत्री   रह चुके है। हेमवती नंदन बहुगुणा 25 अप्रैल , 1919 को तत्कालीन पौड़ी जिले के चलणस्यूँ पट्टी के बुधाणी गांव में हेमवती नंदन का जन्म हुआ था. हिमालय पुत्र उपनाम से प्रसिद्ध . इनकी आत्मकथा है इण्यिनाइज हम जो इन्होंने स्वयं लिखी थी। माता - दीपा देवी पिता - रेवती नन्दन बहुगुणा पत्नी - धनेश्वरी देवी तथा कमला देवी सन्तानें - रीता बहुगुणा जोशी(पुत्री) विजय बहुगुणा व शेखर बहुगुणा (पुत्र) राजनीति             1936 से 1942 तक हेमवती नंदन छात्र आंदोलनों में शामिल रहे थे. वो वक्त ही ऐसा था कि जिससे जितना हो   सकता था , वो करता था. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हेमवती के काम ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी. अंग्रेजों ने हेमवती को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 5 हजार का इनाम रखा था. आखिरकार 1 फरवरी 1943 को दिल्ली के जामा मस्जिद के पास हेमवती गिरफ्तार हुए थे. उसके बाद हेमवती यूपी की राजनीति में सक्रिय हो गए. ·         वर्ष 1952 में सर्वप्रथम विधान सभा सदस्य निर्वाचित। पुनः वर्ष 1957 से लगातार 1969 तक और 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश

विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं प्रोटेम स्पीकर

राज्य विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 178 में किया गया है। आज हम उत्तराखंड राज्य विधान सभाबके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, प्रोटेम स्पीकर इत्यादि का अध्ययन करते है:- 1. विधान सभा अध्यक्ष/स्पीकर-  राज्य के प्रथम अध्यक्ष  -  प्रकाश पन्त (2000-02)            2nd अध्यक्ष -  यशपाल आर्य (2002-07)            3rd अध्यक्ष  -  हरबंस कपूर (2007-12)            4th अध्यक्ष  -  गोविंद सिंह कुंजवाल (2012-17)            5th अध्यक्ष  -  प्रेमचंद अग्रवाल (2017 से वर्तमान) 2. विधान सभा उपाध्यक्ष-  राज्य के प्रथम उपाध्यक्ष  -  विजया बर्थवाल (20 दिसम्बर, 2008 से 27 जून 2009 तक)         2nd उपाध्यक्ष -  अनुसूया प्रसाद मैखुरी (2012-17)         3rd उपाध्यक्ष  -  रघुनाथ सिंह चौहान (2017 से वर्तमान) 3. प्रोटेम स्पीकर-  अनुच्छेद 180(1) के तहत राज्यपाल नियुक्त करता है, अनुच्छेद 188 के तहत ये सदस्यों को शपथ दिलाता है।             राज्य के प्रथम प्रोटेम स्पीकर- काजी मुहम्मद मुहीउद्दीन (2000)             2nd प्रोटेम स्पीकर  -  हरबंस कपूर (2002)            3rd प्रोटेम स्पीकर   -  हर

पूर्व में उत्तराखण्ड में प्रचलित विवाह सम्बन्धी प्रथाएं-

1. अट्टा-सट्टा विवाह- थारू जनजाति में प्रचलित इस प्रथा को आंट-सांट या ग्वरसांट भी कहा जाता है। इसमें दो परिवार एक-दूसरे से बेटी की अदला-बदली कर अपने-अपने परिवार में बहुएं बनाते है।  2. सरौल या डोली विवाह- इसमें वर के बिना वरपक्ष के कुछ लाग कन्यामूल्य देकर कन्या को डोली में बिठाकर वर के घर ले आते थे। सरौल शब्द का अर्थ होता है स्थानान्तरण। सम्भवतः प्रवास पर गये व्यक्ति एवं अयोग्य वरों हेतु इस प्रकार की विवाह परम्परा प्रचलन में आई होगी। यदि किसी कारणवश यदि विवाह के बाद दुल्हे की मृत्यु हो जाती थी तब ब्याहता के पास पूरे अधिका  र होते थे कि वह दूसरा विवाह कर ले। इस प्रकार के विवाह को टका विवाह कहा जाता था।  3. दामतारो विवाह- कुछ गरीब परिवारों के लोग कन्या का दाम लेकर उसका विवाह करते थे। वर पक्ष कन्यापक्ष को उसका दाम देकर विवाह कर वधु ले जाता था, इसलिए इसे दामतारो कहा जाता था। इस प्रकार के विवाह का प्रचलन मुख्यतः दूसरा, तीसरा अथवा प्रौढ़ विवाह के रूप में था।  4. टेकुवा विवाह- किसी विधवा/तलाकशुदा स्त्री द्वारा पति के रूप में परपुरूष को अपने घर में रखा जाता था, तो ऐसे व्यक्त

साहित्यकार गोविन्द बल्लभ पंत

साहित्यकार गोविंद बल्लभ पन्त का जन्म 1898 में हुआ। श्री पंत जी की प्रथम रचना छात्रावस्था में कहानी के रूप में वाराणसी से निकलने वाले पत्र आज में जुलाई , 1922 को प्रकाशित हुई। ज्ञातव्य हो कि 1920 में वे मेरठ में एक नाटक कम्पनी ‘ व्याकुल भारत ’ के सदस्य बन गये थे , वहीं से लेखन की ओर रूख किया असंख्य कहानियां सरस्वती , संगम , धर्मयुग , आज , हिन्दुस्तान जैसे तत्कालीन पत्र - पत्रिकाओं में समय - समय पर प्रकाशित होती रही। वर्ष 1924 में एकादशी तथा 1931 में संध्यादीप नामक शीर्षक से दो कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए। तीस से अधिक निम्न उपन्यासों की उन्होनें रचना की थी इन्हें 1960 से पहले तथा बाद के दो भागों में विभक्त कर प्रस्तुत किया जा रहा हैः - 1960 से पूर्व के उपन्यास - प्रतिमा , मदारी , जूनिया , तारिका , अनुरागिनी , एक सूत्र , अमिताभ , नूरजहा , चक्रकान्त , मुक्ति के बन्धन , प्रगति की राह , यामिनी , नौजवान , जलसमाधि , फारगेट मी नाट , पर्णा , मैत्रेण , तारों के सपने , कागज

श्री मौलाराम तोमर

चित्र
श्री मौलाराम तोमर गढ़वाली चित्र शैली के प्रमुख आचार्य , कुशल राजनीतिज्ञ ,   कवि ,   इतिहासकार मौलाराम का उत्तराखण्ड के इतिहास में अद्वितीय ,   अविश्वमरणीय योगदान है। इनको सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का श्रेय बैरिस्टर मुकुन्दीलाल को जाता है। 1908 में जब मुकुन्दीलाल बनारस हिन्दु कॅालेज (यह भी जान लें कि 1916 में स्थापित बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय की नींव 1904 में पड़ गई थी।) के छात्र थे ,   वहां उनके गुरू डॅा 0 आनन्द के 0 कुमारस्वामी से मिलने के बाद उनके प्रोत्साहन से ही श्री मुकुन्दीलाल ने कला के क्षेत्र में सामग्री एकत्र करना प्रारम्भ किया। 1909 में इन्होनें कुछ चित्र डॅा 0 कुमारस्वामी को दिखाये जिनमें से छः चित्र उन्होनें खरीद लिया , जो वर्तमान में बोस्टन संग्रहालय में है। 1910 में श्री मुकुन्दीलाल ने प्रयाग प्रदर्शनी में मौलाराम के कुछ चित्र लगाये जिनकी तरफ सबका ध्यान आकर्षित हुआ। वर्ष 1910 में ही सर्वप्रथम मुकुन्दीलाल ने कलकत्ते से प्रकाशित होने वाली पत्रिका माडर्न रिव्यू के दो अंकों में मौलाराम पर लेख प्रकाशित करवाया।                 डॅा 0 आनन्द कुमारस्वामी ने अपनी