पूर्व में उत्तराखण्ड में प्रचलित विवाह सम्बन्धी प्रथाएं-


1. अट्टा-सट्टा विवाह- थारू जनजाति में प्रचलित इस प्रथा को आंट-सांट या ग्वरसांट भी कहा जाता है। इसमें दो परिवार एक-दूसरे से बेटी की अदला-बदली कर अपने-अपने परिवार में बहुएं बनाते है। 


2. सरौल या डोली विवाह- इसमें वर के बिना वरपक्ष के कुछ लाग कन्यामूल्य देकर कन्या को डोली में बिठाकर वर के घर ले आते थे। सरौल शब्द का अर्थ होता है स्थानान्तरण। सम्भवतः प्रवास पर गये व्यक्ति एवं अयोग्य वरों हेतु इस प्रकार की विवाह परम्परा प्रचलन में आई होगी। यदि किसी कारणवश यदि विवाह के बाद दुल्हे की मृत्यु हो जाती थी तब ब्याहता के पास पूरे अधिका  र होते थे कि वह दूसरा विवाह कर ले। इस प्रकार के विवाह को टका विवाह कहा जाता था। 


3. दामतारो विवाह- कुछ गरीब परिवारों के लोग कन्या का दाम लेकर उसका विवाह करते थे। वर पक्ष कन्यापक्ष को उसका दाम देकर विवाह कर वधु ले जाता था, इसलिए इसे दामतारो कहा जाता था। इस प्रकार के विवाह का प्रचलन मुख्यतः दूसरा, तीसरा अथवा प्रौढ़ विवाह के रूप में था। 


4. टेकुवा विवाह- किसी विधवा/तलाकशुदा स्त्री द्वारा पति के रूप में परपुरूष को अपने घर में रखा जाता था, तो ऐसे व्यक्ति को टेकुवा कहते थे। इससे उत्पन्न सन्तान भी वैद्य मानी जाती है।


5. ढांटी विवाह- यदि कोई व्यक्ति दूसरे की पत्नी को बिना संस्कारों के घर में पत्नी के रूप में लाता है तो उसे ढांटी विवाह कहा जाता थे। इसमें व्यक्ति को महिला के पूर्व पति को दाम चुकाना पड़ता है।

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