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जून 8, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चम्पावत जिले के प्रमुख मंदिर एवं तीर्थ स्थल

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बाराही मंदिर - देवीधुरा , पाटी तहसील में। रक्षाबंधन को असाड़ी कौतिक का आयोजन होता है , जिसे बग्वाल मेला कहा जाता है।    हरेश्वर मंदिर - मौन-पोखरी नामक स्थान पर न्याय प्राप्ति हेतु प्रसिद्ध शिव को समर्पित मंदिर। झुमाधुरी का मंदिर - पाटन-पाटनी गांव में   क्रांतेश्वर महादेव - कुर्म पर्वत शिखर पर स्थित शिव को समर्पित मंदिर , इसे कानदेव भी कहा जाता है। भागेश्वर महोदव - खेतीखान मार्ग पर   रमकादित्य मंदिर - रमक गांव , पाटी में स्थित है , साठी का मेला प्रसिद्ध है। अखिल तारिणी मंदिर - लोहाघाट के निकट , दिगालीचैड़ में है। कांकर - शारदा नदी के तट पर टनकपुर में। इसे ब्रह्मा की तपस्थली माना जाता है। हिंगला देवी मंदिर - ललुवापानी के निकट , कानदेव पर्वत पर है।   घटोत्कच (घटकु) मंदिर - गिड्या नदी के पार फुंगर गांव के समीप स्थित है।           घटकू की बीड़ी नाम से इस मंदिर में एक सुरंग है। लोकमान्यता है कि सूखा या अतिवृष्टि होने पर धर्मशिला नामक स्थान से जल लाकर इसमें वहां मौजूद घड़े से 5 बार पानी डाले जाने पर यदि बीड़ी भर जाये तो शीघ्र वर्षा होगी अन्यथा सैकड़ो घडे़ पानी से भी वह घड़ा नहीं भर

सोहम द हिमालयन संग्रहालय मसूरी

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सोहम विरासत और कला केंद्र मसूरी में एक हिमालयी संग्रहालय है। इसे सोहम द हिमालयन संग्रहालय मसूरी कहा जाता है। इस संग्रहालय में लगभग 4000 वस्तुओं को संरक्षित किया गया है। इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान श्री समीर शुक्ला और उनकी पत्नी कविता शुक्ला रहा है। यहाँ इतिहास के अतिरिक्त उत्तराखंड की संस्कृति का भी संग्रह किया गया है। यहाँ ऐपण, रंगोली, कलाकृतियां, पुराने चित्रों का संग्रह इत्यादि चीजें दर्शनीय है।   ”सोहम म्यूज़ियम के लिए रिर्सच और डाटा कलेक्शन का काम 1997 में शुरु हो चुका था लेकिन इसकी औपचारिक शुरुआत 2014 में हुई”। 

रानीखेत परीक्षा के दृष्टिगत सभी तथ्य

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रानीखेत            1869 में आधुनिक रानीखेत (छावनी) की स्थापना हुई। कत्यूरी राजा सुधारदेव की रानी पद्मिनी का रमणीय स्थल जिसके नाम पर रानीखेत का नामकरण हुआ। भौगौलिक आधार पर ताड़ीखेत एवं चैबटिया दो हिल स्टेशनों के रुप में बंटा है। तीड़ीखेत जलप्रपात भी प्रसिद्ध है। रानीखेत का प्राचीन नाम झूलादेव था। कुमाऊं रेजीमेंट का मुख्यालय व संग्रहालय(1970) है।  इसे पर्यटकों की नगरी के नाम से जाना जाता है। जानकारी हो कि इसे प्रारम्भ में शिमला की जगह भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया जाना तय किया गया था पर यह सम्भव न हो सका। रानीखेत में जरूरी बाजार है जो इसका ये विचित्र नाम ब्रिटिशकाल में मिला।   स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 के अनुसार रानीखेत दिल्ली और अल्मोड़ा छावनियों के बाद भारत की तीसरी सबसे स्वच्छ छावनी है। रानीखेत जिला आंदोलन                     भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही अल्मोड़ा जिले को बांटकर अलग रानीखेत जिला बनाने की मांग उठती रही है। 1960 के दशक से ही रानीखेत जिले के लिए आंदोलन शुरू हो गए थे. 1987 में उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के अध्यक्ष वैंकट रमानी की समिति ने जिले की संस्तुति की और फिर इसके 2