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जोशियाणी कांड

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सन् 1780 में जोशियों के द्वारा प्रद्युम्न को उपर्युक्त रूप से अल्मोड़ा के सिंहासन पर आरोपित कर दिये जाने के बाद उसका भाई पराक्रमसाह भी वहां पहुंच गया। 3-4 साल तक वहां पर रहने के बाद जोशियों ने सन् 1785 में उसमें गढ़वाल का राजा बनने की महत्वाकांक्षा का उभारकर उनके ज्येष्ठ आता जयकृतसाह को गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर करने की दृष्टि से उसके साथ विजयराम नेगी के नेतृत्व में एक सेना भेजकर श्रीनगर पर घेरा डलवा दिया। किन्तु जयकृतसाह के मित्र सिरमौर के राजा जगतप्रकाश ने उसकी रक्षा के लिए अपनी सेना भेजकर कपरोली नामक स्थान पर कुमाउंनी सेना को पराजित करके श्रीनगर में राजा जयकृतसाह को उनके घेरे से मुक्त करा लिया। इस पर प्रद्युम्न तथा पराक्रम दोनों पराजित होकर अल्मोड़ा लौट आये । इसके बाद राजा के मित्र जगतप्रकाश के सिरमौर लौट आने पर षड़यंत्रकारी गढ़मंत्रियों ने प्रद्युम्न-पराक्रम को सूचना भिजवायी कि 'राजा जगतप्रकाश वापस चला गया है और इधर राजा जयकृतसाह आगामी नवरात्रों में राजेश्वरी की पूजा हेतु देवलगढ़ में रहेगा। उस समय वहां पर उसके साथ केवल थोड़े से ही सैनिक रहेंगे। यह आक्रमण के लिए अति ...