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जून 24, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निजी क्षेत्र की जल विद्युत परियोजनाएं

उत्तराखण्ड में राज्य गठन के बाद 29 जनवरी , 2008 को ऊर्जा नीति बनायी गयी। उत्तराखण्ड में तीन प्रकार की जल विद्युत परियोजनाएं संचालित है- 1. केन्द्र द्वारा वित्त पोषित योजनाएं 2. राज्य द्वारा वित्त पोषित योजनाएं 3. निजी क्षेत्र की परियोजनाएं   आज हम लोग तीसरे प्रकार की परियोजनाओं को पढ़ने वाले हैं। निजी क्षेत्र की कार्यरत परियोजनायें विष्णुप्रयाग परियोजना- 400 मेगावाट की यह परियोजना जय प्रकाश वेन्चर एसोसिएट कंपनी द्वारा विष्णुप्रयाग में इस परियोजना का निर्माण किया गया है। श्रीनगर परियोजना- 330 मेगावाट क्षमता वाली यह परियोजना अलकनन्दा नदी पर श्रीनगर के निकट निर्मित की गई है। यह परियोजना 1985 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वीकृत की गई थी। यह परियोजना मई , 2006 में हैदराबाद की जीवीके पाॅवर एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी द्वारा शुरू की गई। इस परियोजना से 12 प्रतिशत उत्तराखण्ड जबकि उत्तर प्रदेश को 88 प्रतिशत बिजली का लाभ होगा। इसी बांध में धारी देवी का मंदिर भी निर्मित किया गया है। बद्रीनाथ परियोजना- 140 मेगावाट की यह जल विद्युत परियोजना चमोली में बद्रीनाथ के निकट ज

10 महत्पवपूर्ण सवाल मिशन UKSSSC सीरीज-9

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1. उत्तराखण्ड सरकार की अभिनव योजना किस क्षेत्र से सम्बन्धित है ? ( A ) शिक्षा      ( B ) चिकित्सा ✓ ( C ) सिनेमा     ( D ) साहित्य 2. उत्तराखण्ड राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्धन अधिनियम किस वर्ष लागू हुआ ? ( A ) वर्ष 2001 ( B ) वर्ष 2003 ( C ) वर्ष 2005 ✓ ( D ) वर्ष 2007 3. राज्य के तीसरे राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष हैं। ( A ) श्री इन्दुकुमार पाण्डेय ✓       ( B ) विशाख शर्मा ( C ) चन्द्रप्रभा वर्मा               ( D ) इनमें से कोई नहीं 4. उत्तराखण्ड का प्रथम विधानसभा चुनाव कब हुआ ? ( A ) 14 फरवरी , 2000                  ( B ) 20 फरवरी , 2001 ( C ) 14 फरवरी , 2002  ✓           ( D ) 20 फरवरी , 2003 5. कुमाऊँ का रणचण्डी मन्दिर स्थित है। ( A ) अल्मोड़ा   ✓                  ( B ) पिथौरागढ़ ( C ) हल्द्वानी             ( D ) चम्पावत 6. उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी व्यापारिक मण्डी स्थित है। ( A ) चम्पावत              ( B ) हल्द्वानी ✓ ( C ) ऋषिकेश               ( D ) नैनीताल 7. राज्य में पौराणिक काल के ताम्र-संचय संस्कृति के उपकरण प्राप्त हुए ह

Uttrakhand oneliner Top-20

1. पंचकोशी पर्व- चेत्र मास में उत्तरकाशी में (इसे वारुणी यात्रा भी कहते है।) 2. राज्य में बागवानी फसलों की कृषि शुरू करने का श्रेय- फ्रेडरिक विल्सन 3. उत्तरांचल परिषद का सृजन- 07 जून, 1972 4. वामन गुफा- देवप्रयाग 5. द्वाराहाट शैलचित्रों का सर्वप्रथम वर्णन- 1877, रेवेट-कारनक द्वारा 6. नौला-जैलन गांव के शवधानों की खोज- Dr. यशोधर मठपाल 7. कुमाऊँ वाटर रूल्स पारित हुआ- 1917 (1930 में संशोधित) 8. रानीबाग बसाने का श्रेय- कत्यूरी रानी मौला देवी (जियारानी) 9. ज्योलिकोट में कुमाऊँ सरकारी गार्डन की स्थापना- 1909 10. चौबटिया सरकारी उद्यान की स्थापना- 1860 11. गेरुए रंग की सभ्यता का नगर - हरिद्वार 12. भाँटा-सांटा- मनोरंजक गीत 13. लामण गीत- प्रणय गीत 14. रोम्बा भाषा - जाड़ भोटिया 15. तुबेरा, बाज्यू, तिमली लोकगीत- भोटिया 16. राज्य को सौर ऊर्जा हेतु पुरस्कार- नवम्बर, 2007 17. उत्तराखंड संस्कृति पत्रिका का प्रकाशन- पौड़ी से 18. चाला रस्म का सम्बंध- थारू जनजाति से 19. हारदूज का मेला - भटवाड़ी, उत्तरकाशी में नागदेवता का मेला 20. राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड का गठन- 1984, देहरादून।

अल्मोड़ा जेल एक छोटी झलक

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    अंगे्रजों के आगमन के साथ ही कानून व्यवस्था का नवसृजन कुमाऊँ क्षेत्र में देखने को मिलती है। जिसका प्रथम उदाहरण है 1816 में स्थापित अल्मोड़ा जेल , जो वर्तमान जिला चिकित्सालय परिसर में थी। 1822 में इसे हिराडुंगरी स्थानान्तरित किया गया। जगह कम पड़ने के कारण 1855 में दूसरी जेल बनाई गई। वर्तमान स्थान पर जो जेल है उसे 1872 में बनाया गया। इसी जेल में नेहरु ने डिस्कवरी आफ इण्डिया लिखना प्रारम्भ किया था।      अल्मोड़ा की जिला जेल आजादी के इतिहास से जुडी हुई है, यह अंग्रेज़ो के ज़ुल्म की गवाह रही है, यहाँ आज़ादी के दीवानों में जननायक पं. जवाहर लाल नेहरू, भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत, फ्रन्टियर गांधी खान अब्दुल गप्फार खान, हर गोविन्द्र पंत, विक्टर मोहन जोशी,बद्रीदत्त पांडये,प. हरगोबिन्द पंत,सुश्री सरला बहन,आचार्य नरेंद्र देव,चन्द्र सिंह गढ़वाली,कामरेड पूर्ण चंद जोशी,  गोबिंद चरणकर, मोहन लाल साह,दुर्गा सिंह रावत सहित अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने इस ऐतिहासिक जेल की काल कोठरियों में गुज़ारे है। यहाँ महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी रखा गया था। इस जेल में निम्न महापुरुष रखे गए है- पंडि

उत्तराखंड में भाषा/बोली का विकास

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राज्य में बोली जाने वाली भाषा समूह को सामान्यतः पर्वतीय, पहाड़ी या उत्तरांचल कहा जाता है। उत्तराखंड की भाषाओं को तीन भागों में बांटा जाता है- 1. पूर्वी पहाड़ी 2. मध्य पहाड़ी 3. पश्चिमी पहाड़ी ★ J.A. गियर्सन ने टोंस और काली के मध्य बोली जाने वाली भाषा को हिंदी की उपभाषा के रूप में मध्य पहाड़ी नाम दिया है। उत्तराखंड में दो प्रकार के भाषा समूह है- 1. आर्य परिवार की भाषाएँ- बोक्सा, कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी, थारू। 2. आर्येत्तर परिवार की भाषाएँ- मार्च्छा, तोल्छा, रं(भोटिया) इत्यादि। © डॉ. धीरेंद्र वर्मा के अनुसार उत्तराखंड की भाषाओं का सम्बन्ध शौरसेनी अपभ्रंश से है। © कुमाऊनी और गढ़वाली दोनों ही देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। कुमाउँनी भाषा- कुमाउँनी भाषा का पहला नमूना 989 ई0 के सुई ताम्रलेख, चम्पावत से प्राप्त थोहरचन्द के लेख से प्राप्त होता है। √ कुमाउँनी भाषा के विकास के तीन युग- 1. प्रारम्भिक युग- 1000 से1400 2. मध्य युग- 1400 से 1900 3. आधुनिक युग- 1900 के बाद मध्य युगीन कुमाउँनी- √ चन्दो की राजभाषा मध्य युगीन कुमाउँनी थी। √ 1700 के बाद कुमाउँनी से संस्कृत का प्रभाव समाप्