उत्तराखंड में भाषा/बोली का विकास

राज्य में बोली जाने वाली भाषा समूह को सामान्यतः पर्वतीय, पहाड़ी या उत्तरांचल कहा जाता है।

उत्तराखंड की भाषाओं को तीन भागों में बांटा जाता है-

1. पूर्वी पहाड़ी
2. मध्य पहाड़ी
3. पश्चिमी पहाड़ी

★ J.A. गियर्सन ने टोंस और काली के मध्य बोली जाने वाली भाषा को हिंदी की उपभाषा के रूप में मध्य पहाड़ी नाम दिया है।

उत्तराखंड में दो प्रकार के भाषा समूह है-
1. आर्य परिवार की भाषाएँ- बोक्सा, कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी, थारू।
2. आर्येत्तर परिवार की भाषाएँ- मार्च्छा, तोल्छा, रं(भोटिया) इत्यादि।

© डॉ. धीरेंद्र वर्मा के अनुसार उत्तराखंड की भाषाओं का सम्बन्ध शौरसेनी अपभ्रंश से है।
© कुमाऊनी और गढ़वाली दोनों ही देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।

कुमाउँनी भाषा- कुमाउँनी भाषा का पहला नमूना 989 ई0 के सुई ताम्रलेख, चम्पावत से प्राप्त थोहरचन्द के लेख से प्राप्त होता है।

√ कुमाउँनी भाषा के विकास के तीन युग-

1. प्रारम्भिक युग- 1000 से1400
2. मध्य युग- 1400 से 1900
3. आधुनिक युग- 1900 के बाद

मध्य युगीन कुमाउँनी-
√ चन्दो की राजभाषा मध्य युगीन कुमाउँनी थी।
√ 1700 के बाद कुमाउँनी से संस्कृत का प्रभाव समाप्त हुआ।

√ साहित्यिक दृष्टि से कुमाऊनी की प्रथम रचना 1728 में रामभद्र त्रिपाठी द्वारा अनुवादित- चाणक्यनीति का गद्यानुवाद (कुमाउँनी) मानी जा सकता है।

इस अनुवाद में संस्कृतनिष्ट कुमाउँनी का प्रयोग किया है। आश्चर्य की बात है कि पूरी पुस्तक में केवल 2 विदेशी शब्दों जवाब और माफ़िक़ का प्रयोग हुआ है।

√ लोकरन्त पन्त 'गुमानी' कुमाउनी के आदि कवि माने जाते है।

√ कुमाउँनी में शिल्प और कथ्य का प्रारम्भ- शेर सिंह बिष्ट 'अनपढ़'

√ कुमाउँनी भाषा का सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन 1814 में गंगा दत्त उप्रेती ने पर्वतीय भाषा प्रकाश नामक पुस्तक में किया। (इन्होंने जातीय आधार पर 16 बोलियाँ बताईं है।)

√ मुख्य रूप से कुमाउँनी को दो हिस्सों में बांटा गया है- पूर्वी और पश्चिमी।

पश्चिमी कुमाउंनी क्षेत्र-इसके अन्तर्गत आने वाली बोलियां-

1. खसपर्जिया- केन्द्रीय बोली के तौर पर खसपर्जिया को माना जाता है। यह बोली अल्मोड़ा शहर एवं इसके आस-पास बोली जाती है। इसे लिखित साहित्य की मानक कुमाउंनी भी कहा जाता है। चन्द शासन काल में यह बारह मंडलों (पट्टियों) में बोेली जाती थी। इन क्षेत्र में चन्दों द्वारा खास कर्मचारियों की नियुक्ति दी गई थी। खास वर्ग क्षेत्र की बोली होने के कारण इसे खसपर्जिया कहा जाता है। 

2. चैगर्खिया- काली कुमाऊँ परगने के पश्चिमी भाग से लगा क्षेत्र चैगर्खा कहलाता है। गर्खा समुदाय विशेष के लोगों के समूह को कहा जाता  है। चैगर्खा से अभिप्राय चार समुदायों से सम्भव है। सीमान्त क्षेत्र में गर्खा शब्द का प्रयोग सामुदायिक समूह हेतु ही होता है। चार गाँवों के समूह के लिए भी चैगर्खा शब्द प्रयुक्त होता है। 

3. गगोई/गंगोली- सरयू व रामगंगा का दक्षिणवर्ती भाग गंगोली या गंगावली कहलाता है। यह बोली गंगोलहाट क्षेत्र में बोली जाती है। 

4. दनपुरिया- दानपुर क्षेत्र जिसमें बागेश्वर के दानुपर, कत्यूर, कमस्यार, नाकुरी तथा रीठागाड़ क्षेत्र आते हैं। मल्ला दानपुर इस बोली का केन्द्र है।

5. पछाई- रामगंगा के ऊपर नैथाना पर्वत के निचले भू-भाग पर पाली नामक कस्बा स्थित है, जिसके नाम पर कुमाऊँ का पश्चिमी भू-भाग पाली पछाऊँ कहलाता है। इस क्षेत्र में इस भाषा का विस्तार है।

6. रौ चैबंेसी- नैनीताल जिले के रौ और चैभेंसी नाम पट्टियों में बोली जाती है। रामगढ़, छखाता, भीमताल, खैरना इत्यादि क्षेत्र इसके अन्तर्गत आते हैं।         

पूर्वी कुमाउंनी क्षेत्र- इसके अन्तर्गत आने वाली बोलियां- 

1. कुमय्याँ(कुमाई)- यह काली कुमाऊँ क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली है। काली नदी के तट पर स्थित इस क्षेत्र को काली कुमाऊँ नाम से जाना जाता है जिसमें चम्पावत जिला आता है। 

2. सोर्याली- वर्तमान पिथौरागढ़ शहर क्षेत्र एवं आस-पास बोली जाने वाली बोली। 

3. सीराली- डीडीहाट, पिथौरागढ़ को पूर्व में सीरा क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। इस क्षेत्र की बोली को अभी भी सीराली भाषा कहा जाता है। 

4. अस्कोटी- पिथौरागढ़ जनपद के सीमान्त क्षेत्र में अस्कोट से लेकर नेपाली सीमावर्ती ग्रामों में बोली जाने वाली बोली को अस्कोटी कहा जाता है। 

जोहारी भाषा- जोेहार घाटी, मुनस्यारी में बोली जाती है। यह भी दो प्रकार की है -   A. भोटिया जोहारी B. कुमाउँनी जौहारी

11. खसपर्जिया-
         √ बारामंडल, अल्मोड़ा में बोली जाने वाली।
         √ पश्चिमी कुमाउँनी की प्रतिनिधि बोली।
         √ लिखित साहित्य की मानक भाषा।
         √ गौरी दत्त पांडेय 'गौर्दा' स्वयं को खस भाषा के       
             कवि कहते थे।



इस कड़ी को आगे बढ़ाया जाए या नहीं आपके कमेंट तय करेंगे।

टिप्पणियाँ

  1. आजकल भाषा से भी प्रशन देखे जा रहे है तो इशे आगे भी जारी रखे सर

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  2. सर इस सीरीज को और आगे बढ़ाया जाय 🙏

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  3. सर दिंगास अभिलेख को कुमाऊनी भाषा का प्रथम अभिलेख मानते है और उसकी तिथि ११०० के आस पास की है।।।।लेकिन आपने सुई ताम्रपत्र को पहला बताया है।।। कृपया समझने के कोशिश करे

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  4. समझाने की कोशिश करे।।। धन्यवाद्।।।उप्पर गलती से समझने हो गया था।

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    1. वो 1100 के आस-पास का है आप खुद कह रहे हैं जबकि ये ताम्रपत्र 3 जून, 989 का है।

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  5. धन्यवाद सर इस सीरीज को आगे बढ़ाएं

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