उत्तराखंड से द्वितीय पदम् श्री लक्ष्मण सिंह जंगपांगी

25 जनवरी 1959 को लक्ष्मण सिंह जंगपांगी, जो पश्चिमी तिब्बत के गरतोक नामक स्थान पर भारतीय व्यापार प्रतिनिधि थे, अलमोड़ा में छुट्टी मना रहे थे। इसी दिन विदेश मंत्रालय द्वारा उनकी ढूंढ हो रही थी ताकि उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से नवाजे जाने की सूचना दी जा सके। उसी दिन शाम को जब पद्म पुरस्कारों की घोषणा हुई तो जंगपांगी जी के दोस्त उनकी खोज सिक्किम के राजनीतिक कार्यालय से लेने लगे। अगले दिन तो तार और पत्रों से बधाइयां आने लगीं। तत्कालीन विदेश सचिव ने जंगपांगी को मिली पदमश्री को कठिन परिस्थितियों और निःस्वार्थ सेवा का सम्मान बताया था। जे. एस. मेहता जो विदेश मंत्रालय में निदेशक (चीन मामले) थे, ने भी इसे सराहा। श्री एस.के. राय जो फ्रंटियर सेवा में विशेष अधिकारी थे, 1956 में श्री जंगपांगी के साथ पश्चिमी तिब्बत की ताकलाकोट, दारचिन, ग्यानिमा तथा गरतोक जैसी मंडियों का दौरा कर चुके थे। वह पहले वरिष्ठ अधिकारी थे जो वहां गये। उन्होंने वहाँ की स्थितियों का प्रत्यक्ष अध्ययन किया। जब श्री राय सिप्की दरें से भारत लौटे तो विदाई के समय उन्होंने व्यापार प्रतिनिधि तथा उनके स्टाफ को अतिमानव कहा था। तिब्...