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पंचवर्षीय योजनाएं

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प्रथम पंचवर्षीय योजना  शुरुआत आज़ादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने समाजवादी आर्थिक मॉडल को आगे बढ़ाया। जवाहरलाल नेहरू ने अनेक महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय लिए जिनमें पंचवर्षीय योजना की शुरुआत भी थी। सन् 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना की नींव डाली गई और योजना आयोग का गठन किया। जवाहरलाल नेहरू ने 8 दिसंबर, 1951 को संसद में पहली पंचवर्षीय योजना को पेश किया था और उन्होंने उस समय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लक्ष्य 2.1 फ़ीसदी निर्धारित किया था। इस परियोजना में कृषि क्षेत्र पर विशेष ज़ोर दिया गया क्योंकि उस दौरान खाद्यान्न की कमी गंभीर चिंता का विषय थी। इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान पाँच इस्पात संयंत्रों की नींव रखी गई। अधिकतर पंचवर्षीय योजनाओं में किसी न किसी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई। लक्ष्य पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य थे - 1. शरणार्थियों का पुनर्वास खाद्यान्नों के मामले में कम से कम सम्भव अवधि में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करना। 2. इसके साथ- साथ इस योजना में सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया आरम्भ की गयी, जिससे राष्ट्रीय आय के लगातार  बढ़ने का आश्

उत्तराखण्ड का इतिहास तिथि क्रम

   वर्ष     ऐतिहासिक घटनाएँ 1724 कुमाऊं रेजिमेंट की स्थापना। 1815 पवांर नरेश द्वारा टिहरी की स्थापना। 1816 सिंगोली संधि के अनुसार आधा गढ़वाल                     अंग्रेजों को दिया गया। 1834 अंग्रेज़ अधिकारी ट्रेल ने हल्द्वानी नगर बसाया। 1840 देहरादून में चाय के बाग़ान का प्रारम्भ। 1841 नैनीताल नगर की खोज। 1847 रूढ़की इन्जीनियरिंग कालेज की स्थापना। 1850 नैनीताल में प्रथम मिशनरी स्कूल खुला। 1852 रूढ़की में सैनिक छावनी का निर्माण। 1854 रूढ़की गंग नहर में सिंचाई हेतु जल छोडा             गया। 1857 टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने काशी विश्वनाथ             मंदिर का जीर्णोंद्धार किया गया। 1860 देहरादून में अशोक शिलालेख की खोज।             नैनीताल बनी ग्रीष्मकालीन राजधानी। 1861 देहरादून, सर्वे ऑफ़ इंडिया की स्थापना। 1865 देहरादून में तार सेवा प्रारम्भ। 1874अल्मोड़ा नगर में पेयजल ब्यवस्था का प्रारम्भ। 1877 महाराजा द्वारा प्रतापनगर की स्थापना। 1878 गढ़वाल के वीर सैनिक बलभद्र सिंह को ’आर्डर आफ़ मेरिट’ प्रदान किया गया। 1887 लैन्सडाउन में गढ़वाल राइफ़ल रेजिमेंट का गठन। 1888नैनीताल म

उत्तराखण्ड क्रांति का प्रणेता निर्मल पंडित

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निर्मल पण्डित : उत्तराखण्ड के जनसरोकारों से जुडे क्रान्तिकारी छात्र नेता स्वर्गीय निर्मल जोशी "पण्डित" छोटी उम्र में ही जन-आन्दोलनों की बुलन्द आवाज बन कर उभरे थे. शराब माफिया,खनन माफिया के खिलाफ संघर्ष तो वह पहले से ही कर रहे थे लेकिन 1994 के राज्य आन्दोलन में जब वह सिर पर कफन बांधकर कूदे तो आन्दोलन में नयी क्रान्ति का संचार होने लगा. गंगोलीहाट, पिथौरागढ के पोखरी गांव में श्री ईश्वरी प्रसाद जोशी व श्रीमती प्रेमा जोशी के घर 1970 में जन्मे निर्मल 1991-92 में पहली बार पिथौरागढ महाविद्यालय में छात्रसंघ महासचिव चुने गये. छात्रहितों के प्रति उनके समर्पण का ही परिणाम था कि वह लगातार 3 बार इस पद पर चुनाव जीते. इसके बाद वह पिथौरागढ महाविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष भी चुने गये. 1993 में नशामुक्ति अभियान के तहत उन्होने एक सेमिनार का आयोजन किया. 1994 में उन्हें मिले जनसमर्थन को देखकर प्रशासन व राजनीतिक दल सन्न रह गये. उनके आह्वान पर पिथौरागढ के ही नहीं उत्तराखण्ड के अन्य जिलों की छात्रशक्ति व आम जनता आन्दोलन में कूद पङे। छोटी कद काठी व सामान्य डील-डौल के निर्मल दा का पिथौरागढ में इतन