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अस्कोट-आराकोट अभियान सम्पूर्ण विवरण

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अस्कोट-आराकोट अभियान उत्तराखंड की एक ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण पदयात्रा है, जो हिमालयी समाज, पर्यावरण और संस्कृति को गहराई से समझने का प्रयास करती है।  यह अभियान हर दस वर्षों में आयोजित होता है और 2024 में इसकी छठी यात्रा का आयोजन हुआ, जो इस अभियान की 50वीं वर्षगांठ भी थी।  अस्कोट-आराकोट अभियान: बिंदुवार विवरण 1. उत्पत्ति और प्रेरणा इस अभियान की शुरुआत 25 मई 1974 को श्रीदेव सुमन की जयंती पर हुई थी। गांधीवादी पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा से इस यात्रा की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसमें कुमाऊँ और गढ़वाल विश्वविद्यालयों के छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों ने भाग लिया।  2. यात्रा मार्ग और विस्तार अभियान की शुरुआत पिथौरागढ़ जिले के पांगू-अस्कोट से होती है और यह उत्तरकाशी जिले के आराकोट में समाप्त होता है। यह यात्रा लगभग 1150 किलोमीटर लंबी होती है और उत्तराखंड के 7 जिलों—पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून—के लगभग 350 गांवों से होकर गुजरती है। यात्रा के दौरान पदयात्री 35 नदियों, 16 बुग्यालों, 20 खरकों...

वस्त्र-आभूषण सम्बन्धी शब्दावली (बुक्सा जनजाति)

अंगूठी- मुंदरिया ओवर कोट-बरंडी कोट कंगन-करधनी कड़ा, खड़आ- करधनी, टैंगनी कुंडल-बुन्दा घाघरा-चूड़ी जेवर-गुनिया, घाघरो चुरिया-चीज पहुँची-पाँची पाजेब- चेन पट्टी पायजामा- पैजामा, पतलून फ्रॉक-झुगली बिछुए-बिछिया नाक की बाली- लौंग, फुल्ली सतलड़ी माला-हलेम हँसली-हँसलिया सोना-सोनो कर्णफूल- झुमका/पखरे लिहाफ- खतरी कलाई में पहने जाने वाले चाँदी के आभूषण- खडुआ, परिबंध, पहुँची बाँह में पहने जाने वाले चाँदी के आभूषण- खैला, बात्वक