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बाईस जतकाव

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बाइस जतकाव माने 22 बार सन्तान उत्पत्ति होना। उत्तराखण्डी समाज में कुछ विचित्र की सामाजिक प्रथाएँ भी देखने को मिलती हैं, जैसे - यदि किसी महिला की एक ही पति से 22 संतानें (बाईस जतकाव) पैदा होती हैं तो उस महिला का अपने पति के साथ मकान के छत की धुरी (दोनों ओर की ढालू छत का मिलन बिन्दु) में उनका पुनर्विवाह किया जाता था। जोहार की भोटिया जनजाति में यह पुनर्विवाह 20 संतानोत्पत्ति के बाद होता था। इसी तरह यदि किसी व्यक्ति को मृत समझकर उसकी वैतरणी (कालदान) कर दी गई हो और वह चेतनावस्था में लौटकर पुनः जीवित हो जाय या किसी की मृत्यु की सूचना के आधार पर उसका अंत्येष्टि संस्कार सम्पन्न कर दिया गया हो, लेकिन वह पुनः प्रकट हो जाय तो ऐसे व्यक्ति के नामकरण से लेकर विवाह तक के सभी संस्कार पुनः सम्पन्न करने पड़ते हैं, तभी उसे घर-परिवार के सदस्यों में सम्मिलित किया जा सकता है। डॉ. शेर सिंह बिष्ट जी की पुस्तक कुमाऊँ हिमालय समाज एवं संस्कृति का एक अंश.

राईं गढ़ के नाम पर पड़ा रवाँई

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रवाँई घाटी का पूर्व नाम 'रांई गढ़' था। जो अब हिमाचल प्रदेश का भाग है। यही राई कालान्तर में रवाँई पुकारा जाने लगा। भारत की आजादी के पश्चात गढ़वाल रियासत का 2 अगस्त 1949 को भारतीय संघ में विलय हो गया। और 1960 में टिहरी से उत्तरकाशी को अलगकर सीमान्त जिले का गठन कर दिया गया। इसकी यमुना घाटी में ही रवाँई का विस्तार है। यहां की धार्मिक व सांस्कृतिक परम्पराएं काफी समृद्ध है। रवाँई-जौनपुर व जौनसार-बावर की संरचना, संस्कृति व रीतिरिवाजों में साम्य है इसीलिए अलग-अलग जिलों में फैले इन क्षेत्रों को 'त्रिगुट' यानी एक प्राण, तीन शरीर एक कहा जाता है। मध्य हिमालय क्षेत्र के रवाँई-जौनपुर व जौनसार बावर में आज भी संयुक्त पारिवारिक परम्परा बेहद समृद्ध है, यहां महिलाओं को परिवार में प्रथम दर्जा दिया जाता है जिस कारण इस क्षेत्र में दहेज जैसी कुप्रथा आज तक घुस भी नहीं पाई है। इसीलिए यहां के राजस्व पुलिस व पुलिस थानों में दहेज प्रताड़तना व हत्या के एक घटना ढूंढे नहीं मिलती।    ai निर्मित प्रतीकात्मक फोटो अपनी अनुपम व अद्वितीय छटा के लिए रवाँई-जौनपुर प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। रा...