चम्पावत जिले के प्रमुख मंदिर एवं तीर्थ स्थल

बाराही मंदिर- देवीधुरा, पाटी तहसील में। रक्षाबंधन को असाड़ी कौतिक का आयोजन होता है, जिसे बग्वाल मेला कहा जाता है।  

हरेश्वर मंदिर- मौन-पोखरी नामक स्थान पर न्याय प्राप्ति हेतु प्रसिद्ध शिव को समर्पित मंदिर।

झुमाधुरी का मंदिर- पाटन-पाटनी गांव में 

क्रांतेश्वर महादेव- कुर्म पर्वत शिखर पर स्थित शिव को समर्पित मंदिर, इसे कानदेव भी कहा जाता है।

भागेश्वर महोदव- खेतीखान मार्ग पर 

रमकादित्य मंदिर- रमक गांव, पाटी में स्थित है, साठी का मेला प्रसिद्ध है।

अखिल तारिणी मंदिर- लोहाघाट के निकट, दिगालीचैड़ में है।

कांकर- शारदा नदी के तट पर टनकपुर में। इसे ब्रह्मा की तपस्थली माना जाता है।

हिंगला देवी मंदिर- ललुवापानी के निकट, कानदेव पर्वत पर है। 

घटोत्कच (घटकु) मंदिर- गिड्या नदी के पार फुंगर गांव के समीप स्थित है।          घटकू की बीड़ी नाम से इस मंदिर में एक सुरंग है। लोकमान्यता है कि सूखा या अतिवृष्टि होने पर धर्मशिला नामक स्थान से जल लाकर इसमें वहां मौजूद घड़े से 5 बार पानी डाले जाने पर यदि बीड़ी भर जाये तो शीघ्र वर्षा होगी अन्यथा सैकड़ो घडे़ पानी से भी वह घड़ा नहीं भरता है। इस बीड़ी में दूध डाले जाने पर दूध 2 किमी दूर स्थित हिडिम्बा मंदिर में पहुंचता है। इस मंदिर के नीचे से उत्तर वाहिनी गंडकी नदी का उद्गम होता है।

लड़ीधुरा मंदिर- बाराकोट में स्थित मां भगवती का मंदिर, इसे पद्मादेवी के नाम से भी जाना जाता है।

श्री कालचक्र नौमाना- मोष्टा देवता के अन्य रूप में प्रसिद्ध। मंगरौड़ी गांव में स्थित है।

बालेश्वर मंदिर- देशटदेव, उद्यानचन्द (1423), क्राचल्लदेव(1223), ज्ञानचन्द(1410) इत्यादि के लेख उत्कीर्ण है।            1420 में उद्यान चन्द ने जीर्णोद्धार करवाया। शिखर शैली में निर्मित है।

मानेश्वर मंदिर- मानसखण्ड में इसे मानसरोवर हर/ मानेश्वर नाम से सम्बोधित किया गया है। इसके निकट ही बावड़ी है। मान्यता है कि युधिष्ठिर ने तीर से इसमें पानी निकाला था। 1208 में निर्भयचन्द ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। पशुओं हेतु प्रसिद्ध मेला लगता है।

खेतीखान सूर्य मंदिर- 11वीं सदी से पूर्व निर्मित मंदिर। दीपावली के समय यहां मेले का आयोजन होता है जिसे दीपोत्सव के नाम से जाना जाता है।

ऐड़ी फटकषिला मंदिर- गहतोड़ा गांव के ऊपर चोटी पर।       हरे रंग में शिवलिंग है। भानुदेव गहतोड़ी ने इस मंदिर का निर्माण किया। गोरखनाथ धाम- नेपाल से संलग्न मं चनामक कस्बे में। सतयुग में निरंतर धुनी जलने की मान्यता है. गोरखनाथ नाम से गोरखा काल में राजमुद्रा एवं राजमुकुट में गोरखनाथ की चरण पादुका का चिह्न होता था। 

 कैलपालेश्वर- खुर्राधार चोटी पर चम्पावत के समीप।            यहां चन्द राजा ने स्वर्णजड़ित पगड़ी चढ़ाई थी। वर्तमान में भी यहां पगड़ी का कपड़ा (चनेऊ) चढ़ाया जाता है।

पाताल रुद्रेश्वर गुफा- वारसी नामक गांव में। (1993 में खोज) पाँच गुफाऐं हैं- सरोवर गुफा, पंचगुफा, भैरव गुफा, गणेश गुफा (गोठ पड़िया गुफा) एवं रुद्रेश्वर गुफा

बाणासुर का किला- राजा बलि का सबसे बड़ा पुत्र था बाणासुर। लोहाघाट के समीप कर्णकरायत में है। किले के नीचे गुफा है।

अद्वैत आश्रम- विवेकानन्द के शिष्य स्वामी स्वरुपानन्द के सहयोग से 19 मार्च, 1899 को अंग्रेज शिष्य के0जे0एच0 सेवियर एवं उनकी पत्नी ने स्थापित करवाया। 3 जनवरी, 1901 में स्वामी विवेकानन्द यहां आये थे। यहीं से स्वामी जी ने प्रबुद्ध भारत पत्र प्रकाशित किया।

श्यामलाताल- 1914 में विवेकानन्द के शिष्य विराजानन्द के द्वारा इसकी स्थापना सूखीढांग के निकट की। श्याम वर्ण की ताल है, जिसे श्यामला ताल कहते है। इसे विवेकानन्द आश्रम भी कहा जाता है।

ब्यानधुरा ऐड़ी देवता- चम्पावत के प्रत्येक घर में पूजे जाने वाले ऐड़ी देवता। धनुष-बाण लिए ये प्रसिद्ध देवता है। इसे लोक देवताओं की विधानसभा कहा जाता है।

दीपेश्वर- पांडवनी-उत्तरगंड के संगम पर चम्पावत में। पाण्डवों की पनचक्की (घराट) स्थित है।

भीमषिला- बाराही देवी मंदिर के दक्षिण में स्थित है, इसे रणशिला भी कहते है।

मीठा-रीठा साहिब- क्षेत्र का पुराना नाम- चैड़ामेहता।  धधिया एवं रतिया नदियों के संगम पर देपूरी गांव में स्थित है।        नानकदेव व बाला मरदाना यहां आये थे। 1960 में यहां गुरूद्वारे का निर्माण हुआ है। यहां जोड़ मेले का आयोजन होता है।

न्याय के देवता गोरिल- चम्पावत के गोरिल चैड़ मैदान के निकट, गोल्ज्यू का मूल स्थान। 

मचवाल- देवीधुरा में मुचकुन्द ऋषि का प्राचीन आश्रम।

चमदेवल का सूर्य मंदिर

झूठा मंदिर- पूर्णागिरी मार्ग पर स्थित।

पूर्णागिरी- 108 शक्ति पीठों में से एक। यहां माता सती की नाभि की पूजा होती है। यहां उत्तराखण्ड का सबसे लम्बे समय तक चलने वाले मेले का आयोजन होता है। यह मंदिर अन्नपूर्णा पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।

पंचेश्वर- महाभारतकालीन पांँच नदियों का संगम स्थल। चैमू रूप में शिव आराधना होती है।

पंचमुखी महादेव मंदिर- टनकपुर में

कड़ाई देवी मंदिर, लधौनधुरा मंदिर, डिप्टेश्वर मंदिर, ऋषेश्वर महादेव मंदिर, ढेरनाथ मंदिर जिले के प्रमख अन्य मंदिर है।

 


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