हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा
राजनेता, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है।
हेमवती नंदन बहुगुणा
25 अप्रैल,
1919 को
तत्कालीन पौड़ी जिले के चलणस्यूँ पट्टी के बुधाणी गांव में हेमवती नंदन का जन्म हुआ था. हिमालय पुत्र उपनाम से प्रसिद्ध. इनकी आत्मकथा है इण्यिनाइज हम जो इन्होंने स्वयं
लिखी थी।
माता- दीपा देवी
पिता- रेवती नन्दन
बहुगुणा
पत्नी- धनेश्वरी देवी
तथा कमला देवी
सन्तानें- रीता बहुगुणा जोशी(पुत्री) विजय बहुगुणा व शेखर बहुगुणा (पुत्र)
सन्तानें- रीता बहुगुणा जोशी(पुत्री) विजय बहुगुणा व शेखर बहुगुणा (पुत्र)
राजनीति
1936 से 1942
तक
हेमवती नंदन छात्र आंदोलनों में शामिल रहे थे. वो वक्त ही ऐसा था कि जिससे जितना
हो सकता था, वो
करता था. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हेमवती के काम ने उन्हें लोकप्रियता दिला
दी. अंग्रेजों ने हेमवती को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 5 हजार का इनाम रखा
था. आखिरकार 1 फरवरी
1943 को दिल्ली के जामा मस्जिद के पास हेमवती गिरफ्तार हुए थे. उसके बाद
हेमवती यूपी की राजनीति में सक्रिय हो गए.
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वर्ष 1952 में सर्वप्रथम विधान सभा सदस्य
निर्वाचित। पुनः वर्ष 1957 से लगातार 1969 तक और 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य।
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वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति तथा
वर्ष 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति सदस्य।
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अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के
महासचिव।
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वर्ष 1957 में डा0 सम्पूर्णानन्द जी के मंत्रिमण्डल में
सभासचिव।
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डा0 सम्पूर्णानन्द मंत्रिमण्डल में श्रम
तथा समाज कल्याण विभाग के पार्लियामेन्टरी सेक्रेटरी।
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वर्ष 1958 में उद्योग विभाग के उपमंत्री।
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वर्ष 1962 में श्रम विभाग के उपमंत्री।
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वर्ष 1967 में वित्त तथा परिवहन मंत्री।
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वर्ष 1971,1977 तथा 1980 में लोक सभा सदस्य
निर्वाचित।
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दिनांक 2 मई,1971 को केन्द्रीय
मंत्रिमण्डल में संचार राज्य मंत्री।
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पहली बार 8 नवम्बर, 1973 से 4 मार्च, 1974 तथा दूसरी बार 5 मार्च, 1974 से 29 नवम्बर, 1975 तक उत्तर प्रदेश के
मुख्यमंत्री रहे।
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वर्ष 1977 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में
पेट्रोलियम,रसायन तथा उर्वरक मंत्री।
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वर्ष 1979 में केन्द्रीय वित्त मंत्री।
1975 में
इंदिरा गांधी ने सबको सरप्राइज करते हुए देश में इमरजेंसी लगा दी. कांग्रेस के भी
कई नेता इस बात पर चिढ़ गए थे. 1977 में लोकसभा चुनावों
की घोषणा हुई तो बहुगुणा ने पहली बार कांग्रेस से बगावत की. बहुगुणा ने पूर्व
रक्षा मंत्री जगजीवन राम के साथ मिलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी बनाई. उस चुनाव में
इस दल को 28 सीटें मिली, जिसका
बाद में जनता दल में विलय हो गया. इसी पार्टी के बैनर तले बहुगुणा ने आज के
उत्तराखंड की चार लोकसभा सीटें जीती. चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री रहते बहुगुणा
देश के वित्त मंत्री भी रहे. इमरजेंसी के विरोध में जयप्रकाश
नारायण ने इंदिरा के खिलाफ जंग छेड़ दी थी. इसी सिलसिले में वो लखनऊ भी गये.
बहुगुणा ने उनको रोका नहीं. बल्कि रेड कारपेट वेलकम दिया. जयप्रकाश नारायण इतने
प्रभावित हुए कि यूपी सरकार के खिलाफ एक भी प्रदर्शन नहीं किया. वापस हो गये. पर
इंदिरा बहुगुणा से नाराज हो गईं.
कांग्रेस में पुनः शामिल हुए, पर अमिताभ बच्चन ने करियर खत्म कर दिया
जनता पार्टी के
बिखराव के बाद बहुगुणा 1980 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में दोबारा शामिल हो गए. 1980
में
मध्यावधि चुनाव हुए, तो
इंदिरा गांधी ने हेमवती नंदन बहुगुणा को कांग्रेस में आने का निमंत्रण दिया और उनको प्रमुख
महासचिव बनाया. 1980 में मध्यावधि चुनाव में बहुगुणा ने पूरी शक्ति के साथ चुनाव अभियान
को संचालित किया. बहुगुणा गढ़वाल से जीते. चुनाव
के बाद केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई. पर इनको कैबिनेट में जगह नहीं मिली.
इंदिरा का बदला लेने का अनूठा तरीका था. एकदम अपमानित कर देना. छह महीने के अंदर
ही बहुगुणा ने कांग्रेस पार्टी के साथ ही लोकसभा की सदस्यता भी छोड़ दी. 1982
में
इलाहाबाद की इसी सीट पर हुए उपचुनाव में भी जीत हासिल की थी. लेकिन 1984
का
चुनाव उनके लिए काल बनकर आया. राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन को खड़ा कर दिया. पर
बहुगुणा का राजनीतिक कद बहुत बड़ा था. अमिताभ बच्चन ने बहुगुणा को 1 लाख 87 हजार वोट से हराया.
बहुगुणा कांग्रेस छोड़कर लोकदल में आये थे. यहां देवीलाल और शरद यादव ने उन पर
गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिये, जिससे वो अंदर से
टूट गये थे. इस हार के बाद बहुगुणा ने राजनीति से संन्यास ले लिया. पर्यावरण
संरक्षण के कामों में लग गये. 3 साल बाद अमिताभ ने
सीट छोड़ दी, राजनीति
से संन्यास ले लिया. 17 मार्च, 1989 को निधन निधन क्लीवलैण्ड, आहियो, अमेरिका में हुआ।
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