इस प्रथा का सम्बंध टिहरी रियासत (सम्प्रति उत्तरकाशी जनपद के रवांई-जौनपूर) की एक पुरानी परम्परागत प्रथा के साथ है। अचिर पूर्व तक इसका प्रचलन था। इसके अनुसार प्राप्त:काल पा...
1. कुली बेगार की जांच हेतु गठित समिति- विंढम समिति , 1918 (कुमाऊँ परिषद ने 24/25 दिसंबर, 1918 में दूसरे अधिवेशन, हल्द्वानी में , तारादत्त गैरोला की अध्यक्षता में इसकी मांग की थी।) 2. मोती ला...
चित्र-: बैरिस्टर सेंग साभार-: नई दुनिया पोस्ट मसूरी की खूबसूरत वादी में कैमिल्स बैंक रोड स्थित कब्रिस्तान में चिरनिंद्रा में लीन बैरिस्टर जॉन लेंग जिन्होंने झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत से मान्यता दिलाने का मुकदमा जॉन लेंग ने ही लड़ा था। जॉन का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा और उन्होंने यहीं विवाह किया और जीवन बिताया। मेरठ से शुरू किए गए अखबार "मफसिलाइट" को वह अंतिम समय तक मसूरी से भी प्रकाशित करते रहे। 19 दिसंबर 1816 को सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) में जन्मे जॉन के पिता का नाम वाल्टर लेंग और माता का नाम एलिजाबेथ था। उनकी शिक्षा दीक्षा सिडनी कॉलेज में हुई। 1830 में सिडनी विद्रोह में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें देश निकाला दे दिया गया। वह इंग्लैड चले आए और 1837 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से बैरिस्टर की पढ़ाई की। फिर कुछ दिन ऑस्ट्रेलिया में बिताने के बाद वह भारत आ गए। इतिहासकार जय प्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि 1841-1845 के बीच जॉन ने कई गरीब भारतीयों के मुकदमे लड़े। 1845 में मेरठ से मफसिलाइट अ...