बैरिस्टर जॉन सेंग



चित्र-: बैरिस्टर सेंग
साभार-:  नई दुनिया पोस्ट



मसूरी की खूबसूरत वादी में कैमिल्स बैंक रोड स्थित कब्रिस्तान में चिरनिंद्रा में लीन बैरिस्टर जॉन लेंग जिन्होंने झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत से मान्यता दिलाने का मुकदमा जॉन लेंग ने ही लड़ा था।

जॉन का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा और उन्होंने यहीं विवाह किया और जीवन बिताया। मेरठ से शुरू किए गए अखबार "मफसिलाइट" को वह अंतिम समय तक मसूरी से भी प्रकाशित करते रहे। 19 दिसंबर 1816 को सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) में जन्मे जॉन के पिता का नाम वाल्टर लेंग और माता का नाम एलिजाबेथ था। उनकी शिक्षा दीक्षा सिडनी कॉलेज में हुई।

1830 में सिडनी विद्रोह में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें देश निकाला दे दिया गया। वह इंग्लैड चले आए और 1837 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से बैरिस्टर की पढ़ाई की। फिर कुछ दिन ऑस्ट्रेलिया में बिताने के बाद वह भारत आ गए। इतिहासकार जय प्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि 1841-1845 के बीच जॉन ने कई गरीब भारतीयों के मुकदमे लड़े। 1845 में मेरठ से मफसिलाइट अखबार का प्रकाशन किया, जिसमें ब्रिटिश राज के अत्याचारों का विरोध किया गया।

उत्तराखंडी ने बताया कि नि:संतान शासकों का राज्य हड़पने के लिए भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की निगाहें झांसी पर भी टिकी थीं। 1856 में रानी लक्ष्मी बाई ने जॉन लेंग को अपना मुकदमा लड़ने के लिए नियुक्त किया। ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ कलकत्ता हाई कोर्ट में चले इस मुकदमे को लेंग हार गए। गदर की असफलता के बाद 1858 में वह मसूरी चले आए और कुलड़ी में द एक्सचेंज बिल्डिंग परिसर में "मफसिलाइट" प्रिंटिंग प्रेस स्थापित कर अखबार निकालने लगे।

उन्होंने जीवन पर्यंत भारतीय जनता की गुलामी व उत्पीड़न के खिलाफ मुहिम चलाई। वर्ष 1861 में उन्होंने मसूरी में ही माग्रेट वैटर से विवाह किया। 20 अगस्त 1864 को 48 साल की अल्पायु में संदेहास्पद परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई। हालांकि उनकी हत्या की रिपोर्ट 22 अगस्त 1864 को मसूरी पुलिस चौकी में लिखाई गई, जिसकी जांच को दबा दिया गया था।






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