उत्तराखंड से विशेष 3 प्रश्न
1. गोरखा सेनापति जिसे मौलाराम द्वारा दानवीर कर्ण की उपाधि से विभूषित किया गया- रणजोर सिंह थापा
★ रणजोर सिंह विद्वानों और कलाविदों का सम्मान करता था।
★ शासन व्यवस्था हेतु सभा मण्डली का गठन किया था।
★ मोकर, डांकर, मझारी, सलामी, सोन्याफागुन एवं घोकर लगाए।
★ प्रद्युम्न शाह की मृत्यु के बाद दून उपत्यका के रणजोर सिंह ने अपना आतंक शुरू कर दिया। तत्कालीन गुरु मन्दिर के महंत श्री हरिसेवक पर कढ़ाई दीप के अनुसार दण्डित किया।
2. 'फतेह भूषण' नामक एक अलंकार का ग्रंथ की रचना- रतन कवि
★ इस पुस्तक में लक्षणा, व्यंजना, काव्यभेद, ध्वनि, रस, दोष आदि का विस्तृत वर्णन है।
★ ये रीति काल के कवि थे।
★ रतन कवि का जीवन वृत्त कुछ ज्ञात नहीं है।
★ शिवसिंह ने इनका जन्म काल संवत 1798 लिखा है।
★ इनका कविता काल संवत 1830 के आसपास माना जा सकता है।
★ यह श्रीनगर, गढ़वाल के 'राजा फ़तहसिंह' के यहाँ रहते थे।
★ इन्होंने शृंगार के ही पद्य न रखकर अपने राजा की प्रशंसा के कवित्त बहुत रखे हैं।
★ संवत 1827 में इन्होंने 'अलंकार दर्पण' लिखा।
★ इनका निरूपण भी विशद है और उदाहरण भी बहुत मनोहर और सरस है।
★ यह एक उत्तम श्रेणी के कुशल कवि थे।
3. जौनसार क्षेत्र का प्रमुख मेला जो मछली पकड़ने सम्बन्धी है- मौण मेला
★ मछली मारने का यह लोकोत्सव उत्तराखण्ड के पाली-पछांऊ तथा जौनसार एवं रर्वाई-जौनपुर के क्षेत्रों में मनाया जाता है।
★ मौण का शाब्दिक अर्थ विष होता है। यह तिमूर अथवा अटाल(एक वनस्पति) की छाल को सुखाने के बाद उसका चूर्ण बनाकर तैयार किया जाता है। इस चूर्ण को खल्टों (बकरी की खाल से बनाये गये थैलों) में भर कर इस अवसर के लिए रख दिया जाता है। और मेले के दिन नदी के मुहाने पर डाल
दिया जाता है। नदी के संकरे मार्ग पर पत्थरों की दीवार बना कर उसके प्रवाह को दूसरी ओर मोड़ दिया जाता है। जिससे मछली वाले गढढों के रूके हुए पानी मे मौण का गहन प्रवाह हो सके। जिससे रूके हुए पानी की मछलियांं अचेतन होकर पानी के उपर आ जाती है और लोग उन्हें बटोरनेमें लग जाते हैं।
★ मौण का उत्सव तीन रूपों में मनाया जाता था पहला माछीमौण, दूसरा जातरामौण, तीसरा ओदीमौण ।
इनमें प्रथम दो का आयोजन अभी भी किया जाता है, किन्तु तीसरा ओदीमौण जो सामन्तो व जमींदारों के शक्ति पदर्शन के साथ हुआ करता था अब
अतीत का विषय बन गया है। जातरमौण का आयोजन 12 वर्षों के अन्तराल से हुआ करता है।
★ कुमाऊँ में भी मौण मेले का आयोजन होता है जिसे स्थानीय तौर पर डहौ उठाना कहते हैं। (यह रामगंगा के किनारे गेवाड़ घाटी में लगता है।)
nice article sir . knowledge ful article.
जवाब देंहटाएंIndependence day speech
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं