अल्मोड़ा की हिप्पी हिल सनकी चोटी तथा हिप्पी आन्दोलन का इतिहास




     काषय (कश्यप पर्वत) पर स्थित कसार देवी गुफा मंदिर जो देवी कात्यायनी रूप में पूजित है के आस-पास हिन्दू संस्कृति एवं प्राकृतिक छटा हेतु प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह प्रसिद्ध है हिप्पी आन्दोलन एवं सनकी चोटी के रूप में-

      क्रैंक रिज या सनकी रिज- यह चुम्बकीय क्षेत्र है, जिसे Van Alen Belt  भी कहा जाता है। कसार देवी के आस-पास नारायण तिवाड़ी देवाल से दीनापानी तक। क्षेत्र में सनकी मनोवैज्ञानिक तिमोथी लेरी अचानक पहाड़ी पर दौड़ते नजर आते थे। जिसके कारण इस क्षेत्र का नाम क्रैंक रिज पड़ा क्रैंक का अर्थ सनक से ही लगाया जाता है। (ज्ञातव्य हो कि रिज का हिन्दी अर्थ चोटी होता है, मुख्यतः रिज शब्द समुद्र के भीतर की चोटियों हेतु प्रयोग किया जाता है।)

हिप्पी  हिल- 1960-70 के दशक में इस क्षेत्र में भी हिप्पी आन्दोलन चला था। इस क्षेत्र में हिप्पी विचारधारा के लोगों के बसने के कारण इस क्षेत्र को हिप्पी हिल कहा जाता है।  जिसका विस्तार में निम्नांकित विवरण है-
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       हिप्पी आन्दोलन- 1960 में शुरू यह एक सांस्कृतिक आन्दोलन था। हिप्पी शब्द एक अपमानजनक रूप में प्रयुक्त होता था। यह सामाजिक विद्रोहियों हेतु प्रयुक्त होता था।  यह लोकप्रियता और आकार में बढ़ने के साथ एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सामूहिक बन गया।

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हिप्पी लोगों द्वारा की गई यात्रा प्रदर्शित करता मानचित्र

वर्तमान में शब्द हिप्पी अक्सर अपमानजनक रूप में प्रयोग किया जाता है और यह एक जटिल शब्द है जिसे अक्सर विभिन्न वाम झुकाव वाले दलों या समूहों के लिए प्रयोग किया जाता है। देखा जाये तो यह एक नकली आंदोलन था जिसने अमेरिकी जीवन के मुख्य धारा को अस्वीकार कर दिया था। यह आंदोलन संयुक्त राज्य अमेरिका में कॉलेज परिसरों में उत्पन्न हुआ, हालांकि यह कनाडा और ब्रिटेन सहित अन्य देशों में फैल गया। हिप्पी आंदोलन कैसे शुरू हुआ और कुछ प्रमुख घटनाओं और लोगों को समझाता है जिन्होंने अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन को विस्तारित करने में मदद की।
1950 के दशक के विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के प्रत्यक्ष परिणाम यानि कि शीत युद्ध जैसे हालातों के परिणाम के रूप में देखा जाता है। क्योंकि इसी के परिणाम से आयुध निर्माण, हाइड्रोजन बम परीक्षण तथा तकनीकि रूप से विस्तारीकरण को इस आन्दोलन के जनक के रूप में देखा जा सकता है। जैसे- सोवियत संघ ने उपग्रह स्पुतनिक प्रथम को 1957 में अंतरिक्ष, 1958 के असफल हंगरी विद्रोह, 1959 की क्यूबा क्रांति, अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन लगभग इन सभी आन्दोलनों का 1960 से पूर्व एक साथ घटित होना हिप्पी आन्दोलन का जन्म देने के पर्याप्त कारण थे। फिर भी वियतनाम युद्ध (1955-75) में अमेरिका की भागीदारी के विरोध के रूप में आंदोलन उग्र रूप से प्रसारित हुआ। 1960 के दशक के हिप्पी आंदोलन के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है। बीट जनरेशन जो कि मुख्य रूप से युवा लेखकों का एक समूह था, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अजीब सांस्कृतिक बदलावों की खोज की थी। बीट जनरेशन अमेरिका के पहले काउंटर-संस्कृति आंदोलनों में से एक था और उनके लेखन और कार्यों में नशीली दवाओं के उपयोग, उदार कामुकता और अश्लीलता को गले लगा लिया गया था। यद्यपि बीट जनरेशन ज्यादातर साहित्यिक आंदोलन था, लेकिन लंबे समय से इस आंदोलन के रूप में अध्ययन किया गया है जो संगीत रूप से हिप्पी आंदोलन को बहुत प्रभावित करता है। उन्होंने भौतिकवाद और दमन के रूप में देखा और उन्होंने अपनी विशिष्ट जीवन शैली विकसित की। हिप्पी ने अहिंसा और प्रेम की वकालत की, एक लोकप्रिय वाक्यांश प्रेम बनाओ, युद्ध नहीं बहुत प्रचलित है।

1970 के दशक के मध्य तक आंदोलन कम हो गया था। हिप्पी ने व्यापक संस्कृति पर प्रभाव जारी रखा है। चूंकि यह मौज-मस्ती समर्थक आन्दोलन था। अतः भारत में भी इसका प्रभाव जोंगू सिक्किम, वरनाला केरल, गोकर्णा हम्पी कर्नाटक, कसोल हिमाचल प्रदेश, गोवा, तथा उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा ऋषिकेश में देखने मिलता है। उत्तराखण्ड जैसे देवभूमि के गढ़ में इस तरह के आन्दोलनों और उसके प्रसार होने बाद भी उसकी प्रासंगिकता पर कभी सवाल क्यों नहीं किया गया?

प्रथम बार ये पढ़ने पर मेरे रोंगटे खड़े हो रहे थे कि इस प्रकार के आन्दोलन और लोगों का प्रसार के लिए उत्तराखण्ड जब इतने सालों पूर्व से ही उपयुक्त क्षेत्र था और लोगों ने इसे बढ़ने, फैलने का सुअवसर दिया तो फिर हम किस आधार पर देवभूमि और सांस्कृतिक पहल करने की ढींगें हांकते है?  सवाल बहुत है पर जवाब नहीं मिलते।
साभार-इंटरनेट

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