कुमाऊँ में गोरखाली सुब्बा

     राज्यपाल अथवा प्रांतपति को सुब्बा कहा जाता था। इसकी नियुक्ति नेपाल नरेश प्रधानमंत्री की सलाह पर करता था। कुमाऊँ के प्रमुख सुब्बा निम्नवत् थे-

1. जोगामल्ल (1791-93)- यह कुमाऊँ का पहला सुब्बा नियुक्त हुआ। इसने बीसी व्यवस्था को शुरू कर प्रत्येक आबाद जमीन को प्रति बीसी अथवा 20 नाली जमीन पर 1 रु0 टैक्स निर्धारित किया गया.

2. काजी नरशाही (1793-94)- हिमाचल मूल के नगरकोटी राजपूत स्थानीय जनता को गोरखों के विरूद्ध भड़काते थे। जिससे क्रोधित होकर नरशाही ने ढाकचा सैनिकों का गठन कर नगरकोटियों का नरसंहार किया। यह नृषंस हत्याकाण्ड कुमाऊँ के इतिहास में नरशाही का पाला या नरशाही का मंगल तथा मंगल की रात कहलाती है।

3. अजब सिंह खवास (1794-95)- इसके साथ नायब सुब्बा श्रेष्ठ थापा तथा फौजदार जसवंत भण्डारी थे।

4. अमर सिंह थापा (1795-96)- इसके साथ गोविन्द उपाध्याय को कारदार तथा भक्ति थापा को फौजदार बनाया गया था।

5. प्रबल राणा (1796-97)- इसके साथ जैकृष्ण थापा को नायब सुब्बा बनाया गया था।

6. बमशाह (1797-99)- इसके साथ इसी के भाई रुद्रवीर शाह को नायब सुब्बा बनाया गया था। इसे 5 रु0 प्रति ज्यूला के हिसाब से ब्राह्मणों पर कुषही नामक कर लगाया।

7. अजब सिंह खवास पुनः (1799-1800)- श्रेष्ठ थापा को नायब तथा विश्राम खत्री का सरदार बनाकर इसके साथ भेजा गया। यह दूसरी बार कुमाऊँ का सुब्बा बना था। इसने ब्राह्मणों के बोझ ढोने से इनकार करने पर कहा था कि ‘‘ब्राह्मणों के पैर पूजे जाते हैं सिर नहीं, इसलिए बोझ सिर पर रखो।’’ बेगार से आनाकानी करने पर चाबुक से मारा जाता था।

8. धौंकल सिंह बसन्यात (1800-01)- मेजर गणपति उपाध्याय को नायब सुब्बा नियुक्त किया गया। यह उग्र स्वभाव का व्यक्ति था। अपने ही सैनिकों को वेतन देने के मामले में हुए झगड़े के साथ स्वयं भी मारा गया।

9. रुद्रवीर शाह (1802-03)- इसने कुमाऊँ में आकर टनकर नामक कर लगाया जो बुनकरों से लिया जाता था।

10. काजी गजकेसर पाण्डे (1803-04)- कृष्णानन्द को नायब सुब्बा बनाया गया। 1803 गढ़वाल में आये भूकम्प के कारण श्रीनगर राजा का महल इत्यादि टूट जाने की खबरें मिलने पर इसके समय ही अमर सिंह थापा, बमशाह व हस्तिदल चौतरिया ने एक बड़ी सेना के साथ गढ़राज्य पर हमला कर दिया।



कोई शब्द परेशान करे तो बेहिचक कमेंट करके अपनी प्रतिक्रिया जरूर व्यक्त करें।  

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड के लेखक और उनकी प्रमुख पुस्तकें- भाग-1

कुमाऊँनी मुहावरे और लोकोक्तियाँ भाग-01

उत्तराखण्ड भाषा का विकास भाग-02 गढ़वाली भाषा