कुछ स्थानीय चीजें जिन्हें जाना जाना चाहिए।

मुठ्ठी- मापन में स्थानीय क्षेत्र में मापन की सबसे छोटी इकाई मुठ्ठी होती है। अभिलेखीय साक्ष्यों में राजा बाजबहादुर चन्द का शाके 1556 का ताम्रपत्र अतिमहत्वपूर्ण है। जिसमें मुठ्ठी शब्द का स्पष्ट उल्लेख है। स्थानीय कहावत भी है ‘‘मुठ्ठी खाई उठी, मान खाई धाना।’’ आज भी क्षेत्रीय तौर पर मापन अनभिज्ञता के बावजूद भी मापन के लिए स्थानीय लोग मुठ्ठी का प्रयोग करते है। 

माना- माप की छोटी इकाई के बाद माना या माणा का उपयोग जनता द्वारा किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मुठ्ठी और माना का उपयोग प्रतिदिन ही किया जाता है। 

बैकर- एक समय के पूर्ण भोजन योग्य अनाज को बैकर के रूप में जाना जाता है। बैकर एक सामाजिक कर है। इसे स्थानीय भाषा में निश्रो भी कहा जाता है। बैकर का औसत वनज 700 ग्राम होता है। 

नाली- मुठ्ठी व माना के बाद की मापन इकाई नाली कहलाती है। यह व्यापारिक दृष्टि से आधारभूत मापक इकाई है। 

सूपा- यह बास एवं निगाल का बनाया जाता है। यह कृषि कार्य में अनाज की साफ-सफाई में काम आता है। 

छापरी- यह पात्र रोटी रखने हेतु प्रयुक्त पात्र है। यह निंगाल अथवा रिंगाल एवं बांस के बनाये जाते है। इनकी माप मुख्यतः 4 से 10 नाली तक होती है। 

उड़ेला- यह पात्र छापरी से बड़ा होता है। यह बांस अथवा रिंगाल का बनाया जाता है। इसमें 2 से 5 सूपा तक अनाज स्टोर किया जा सकता है। 

पुतका- सूपा, उड़ेला, छापरी की तरह निंगाल का बनता है, इसके बाहर से गोबर अथवा मिट्टी से पुताई की जाती है। 

डोका- यह बांस एवं निंगाल का बनाया जाता है जिसका बहुउद्देशीय प्रयोग किया जा सकता है। यथा घास लाने से लेकर इसका प्रयोग अनाज अथवा मक्के इत्यादि को लाने तथा गोबर की ढुलाई के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। 

पुसौलिया- यह भी डोके जैसा पात्र होता है। इसका मुख्य कार्य तो गोबर इत्यादि की ढुलाई हेतु किया जाता है किन्तु इसका अन्य कार्य अनाज का भण्डारण हेतु भी किया जाता है।  

मोस्टा/मोठो- निंगाल की बनी विभिन्न वस्तुओं में मोस्टा भी कृषक के लिए अति महत्वपूर्ण है। यद्यपि यह अनाज सुखाये जाने का सबसे बड़ा पात्र है। इसकी माप विभिन्न होती है। 

                   मोस्टा बुनता एक स्थानीय व्यक्ति

भकार- अन्न रखने वाले छोटे और बड़े लकड़ी के पात्रों को भकार कहा जाता है। 

करवच- उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्राचीन काल से ही 20वीं शती ई0 के 5 या 6 दशक पूर्व तक अपनी भेड़ों व याक आदि के द्वारा तिब्बत से नमक, सोहागा आदि भारत लाया व यहां से सामान तिब्बत ले जाया जाता था। इसके लिए इन जानवरों की पीठ पर माल ढोने के लिए करवच का प्रयोग किया जाता है। 


   

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