चन्द्रयान की सफलता के बाद जानने योग्य भारत की प्रमुख वैज्ञानिक महिलाएं

टेसी थॉमस

                भारत की अग्निपुत्री

    अग्नि-4 और अग्नि-5 के बारे में तो आप जानते होंगे, किन्तु, शायद ही आपको पता होता कि इनकी सफलता के पीछे टेसी थॉमस थीं। गौर करने वाली बात यह कि वो इसरो के लि‍ए नहीं, बल्कि DRDO के लिए कार्य करती हैं। आज अगर भारत को आईसीबीएमएस के साथ अन्य देशों के खास समूह में जगह मिली तो उसके लिए किसी न किसी रूप से टेली थॉमस ने भी काम किया। टेसी को भारत की अग्निपुत्री भी कहते हैं।

 डॉ. रितु कारिधाल 

भारत की रॉकेट वुमन

    चंद्रयान-3 की लैंडिंग की जिम्मेदारी के पीछे डॉ. रितु कारिधाल ने महत्वपूर्ण रोल निभाया। रितु कारिधाल वरिष्ठ महिला वैज्ञानिक और चंद्रयान-3 की मिशन डायरेक्टर हैं। इससे पहले वो मंगलयान की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर और चंद्रयान-2 की भी मिशन डायरेक्टर रह चुकी हैं। डॉ. ऋतु करिधाल को 'रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया' के नाम से भी जाना जाता है। 


कल्पना कालाहस्ती 

    कल्पना कालाहस्ती चंद्रयान -3 परियोजना की एसोसिएट डायरेक्टर हैं। इससे पहले वो चंद्रयान -2 परियोजना में भी शामिल रही हैं। कल्पना कालाहस्ती चित्तूर जिले की रहने वाली हैं और उन्होंने चेन्नई में बीटेक ईसीई की शिक्षा ली है। कल्पना बचपन से ही इसरो में नौकरी करना चाहती थीं। कल्पना के पिता मद्रास उच्च न्यायालय में काम करते हैं। 


मुथैया वनिता 

    मुथैया वनिता इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियर हैं। हार्डवेयर परीक्षण से लेकर चंद्रयान-2 चंद्र मिशन के परियोजना निदेशक बनने तक, उन्होंने कई अलग-अलग परियोजनाओं में काम किया है। 


मौमिता दत्ता

    मौमिता दत्ता 2006 में अहमदाबाद में मौजूद अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र में शामिल हुईं। तब से वे विभिन्न प्रकार की कुलीन परियोजनाओं, जैसे- चंद्रयान-1, ओशियनसेट, रिसोर्ससैट और हाएसेट का हिस्सा रह चुकी हैं। उन्हें मंगल परियोजनाओं में मीथेन सेंसर के लिए परियोजना के आयोजक के तौर पर चुना गया था और वह ऑप्टिकल प्रणाली के विकास और सूचक के लक्षण वर्णन और अंशांकन के लिए जिम्मेदार थीं। इसरो की विभिन्न परियोजनाओं के लिए विभिन्न बहु-वर्णक्रमीय पेलोड और स्पेक्ट्रोमीटर के विकास में मौमिता दत्ता शामिल हैं। मौमिता दत्ता के अनुसंधान के क्षेत्र हैं- गैस सूचक का लघु रूप तैयार करना, जो कि प्रकाशिकी के क्षेत्र में राज्य के अति-आधुनिक प्रौद्योगिकियों में शामिल है। एक विद्यार्थी के तौर पर मौमिता दत्ता ने चंद्रयान मिशन के बारे में सब कुछ पढ़ा था और अब वह मार्स मिशन के साथ बतौर प्रोजेक्‍ट मैनेजर जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से अप्‍लाइड साइंस में एम टेक किया है और अब वह ऑप्टिकल साइंस में एक टीम को लीड करती हैं। यह टीम 'मेक इन इंडिया' का हिस्‍सा है।


अनुराधा टी.के 

    अनुराधा टी.के सेवानिवृत्त भारतीय वैज्ञानिक इसरो और विशेष संचार उपग्रहों की परियोजना निदेशक थीं। अनुराधा 1982 में अंतरिक्ष एजेंसी में शामिल हुईं और सभी उपग्रह परियोजना निदेशक बनने वाली पहली महिला थीं। अनुराधा टी. के. को 2011 में जीसैट-12 का डॉयरेक्टर बनाया गया था। उन्होंने एक ऐसे 20 सदस्यों वाले समूह का नेतृत्व किया, जो तकनीकी रुप से कई सफलताएं अपने नाम कर चुका है।अनुराधा अपने तार्किक दिमाग के चलते इसरो की दूसरी महिला वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं. उन्हें सुमन शर्मा अवॉर्ड जैसे कई बड़े सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।


एन.वलारमथी

    वलारमथी ने भारत के पहले देशज राडार इमेजिन उपग्रह, रिसेट वन की लांचिंग का प्रतिनिधित्व किया था।भारतीय उपग्रह वैज्ञानिक एन वलारमथी, इसरो के बैंगलोर स्थित परियोजना निदेशक, अरियालुर से हैं, जिनका जन्म तमिलनाडु के जिला अरियालुर में श्री नटराजन, सेवानिवृत्त ब्लॉक विकास अधिकारी और रामसीता के घर हुआ था, जहाँ उन्होंने तमिल में निर्मला गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी। मध्यम। सुश्री वलारमथी ने गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी, कोयम्बटूर और वहाँ से अन्ना यूनिवर्सिटी के गुइंडी परिसर में जाने से पहले, गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज, अरियालुर में अपना प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स पूरा किया। वलारमथी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में उपग्रह परियोजना निदेशक बनने वाली दूसरी महिला हैं, लेकिन रिमोट सेंसिंग उपग्रह परियोजना का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं। वलारमथी के पास डीआरडीओ और इसरो दोनों से प्रस्ताव थे, और उन्होंने बाद वाले को चुना। पिछले कई वर्षों से वह एक दिन में अपने लिए केवल चार से पांच घंटे ही निकाल पाती थीं और उपग्रह के विभिन्न पहलुओं की निगरानी करती रहती थीं। एन. वलारमथी ने 2012 में एक रडार इमेजिंग उपग्रह RISAT-1 के प्रक्षेपण का नेतृत्व किया।


मंगला मणि

    56 वर्षीया मंगला मणि 23 सदस्यों वाले एक जांच दल के साथ साल 2016 में अंटार्कटिका में मौजूद भारतीय रिसर्च स्टेशन भारती के लिए रवाना हुई थीं। वह इस दल में अकेली महिला थीं। वह वहां पहुंचीं, तो परिस्थतियां बिल्कुल विपरीत थी। बावजूद इसके उन्होंने वहां 403 से ज्यादा दिन बिताए। वो अंटार्कटिका में भारतीय रिसर्च स्टेशन पर ध्रुवीय कक्षा में घूम रहे सैटलाइट्स के लिए डेटा को एकत्र करने के लिए गई थीं।


नंदिनी हरिनाथ

    नंदिनी ने बहुत कम उम्र में वैज्ञानिक बनने का सपना देखा। जिसे बड़े होकर उन्होंने पूरा भी किया। दिलचस्प बात तो यह है कि उन्होंने अपने करियर की पहली नौकरी भी इसरो के साथ शुरू की। 'इसरो' में डि‍प्टी डॉयरेक्टर के पद पर रहते हुए नंदिनी 'मंगलयान मिशन' पर सक्रिय रहीं। वे कितनी परिश्रमी हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई बार काम के चक्कर में घर तक नहीं जाती।

मीनल संपथ

    मीनल संपथ को मिनल रोहित के नाम से भी जाना जाता है। यह स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC), अहमदाबाद में एक वैज्ञानिक/ इन्जीनियर के तौर पर काम करती हैं। इन्होंने निरमा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद से इलेक्ट्रॉनिक एवं संचार में बी. टेक. की है। एक विधार्थी के तौर पर पीएसएलवी रॉकेट की निर्दोष उड़ान के सीधे प्रसारण से प्रभावित हो कर उन्होंने 1999 में बेंगलोर में स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान  केंद्र (ISRO) में कार्यभार संभाला। दिलचस्पी की बात तो यह है कि वह डाक्टर बनना चाहतीं थीं, पर दन्त विज्ञान में एक नंबर कम होने के कारण उन्हें दाखिला नहीं मिला और उन्होंने इंजिनियरिंग में दाखिला ले लिया। बैंगलोर से SAC 2004 तबादले के बाकी उन्हें ISRO के अध्यक्ष ई. एस किरण कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला, जो कि सैक, अहमदाबाद में उनके समूह के निर्देशक थे। उनकी वर्तमान गतिविधियों में इनसैट-3 डी एस के लिए मौसमी पेलोड पर काम करना शामिल है जो कि जल्द ही एक वृद्ध इनसैट उपग्रह की जगह ले लेगा और चन्द्रयान-II के कुछ उपकरणों पर काम कर रही हैं। देश के सबसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष परियोजना के सफलतापूर्वक पूरा करने की खातिर, दो साल तक मीनल संपथ ने भारत के मंगल मिशन में एक प्रणाली इंजीनियर के रूप में काम किया, जिसके दौरान वे अक्सर एक दिन में 18 घंटे काम करती थीं। 

कीर्ति फौजदार

    कृति फौजदार का बचपन बिहार के एक प्राचीन गांव वैशाली, में बीता जो कि जैन धर्म की जन्मभूमि और बुद्ध की कर्म भूमि है। पांचवीं कक्षा तक उन्होंने शिक्षा दो स्कूलों से प्राप्त की, जिसमें एक निजी था, क्योंकि वहां शिक्षा की दर सबसे अच्छा था और दूसरा सरकारी स्कूल था, क्योंकि निजी स्कूल को कहीं से भी मान्यता प्राप्त नहीं थे। पांचवीं कक्षा के बाद आगे की शिक्षा उन्होंने मध्य प्रदेश से अपनी मसी के पास रह कर करी। आजकल वे कर्नाटक के शहर हसन में मौजूद इसरो में 2013 से बतौर कंप्यूटर वैज्ञानिक काम करती हैं। वे संस्था में मौजूद मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी (एमसीएफ) में काम करती हैं जिस पर भू-स्थित उप्ग्रिहों जैसे- इनसेट (INSATs), जीसेट (GSATs) और आईआरऐनएसएस (IRNSSs) के पर्यवेक्षण का उपक्रम है। भू-स्थित उपग्रह जमीन से 36000 किमी ऊपर पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। यह उपग्रह पृथ्वी के साथ समकाल में चलते हैं और स्थिर लगते हैं और लंबे समय से स्थिरता बनाए रखने के कारण मौसम और संचार के लिए बहुत अमूल्य साबित होते हैं। मंगल परियोजना में कृति और बाकि  मास्टर कंट्रोल सुविधा टीम ने यह सुनिश्चित करना था कि उपग्रह स्वस्थ  रहे और उस पर सूर्य और चंद्रमा ग्रुत्वकर्षण का कोई बुरा प्रभाव न हो।




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