उत्तराखंड के प्रमुख देवी मंदिर..
चम्पी/चम्पावतीदेवी : चम्पावत के पुरातन शासकों के द्वारा अपनी कुलदेवी/इष्टदेवी के रूप में पूजित चम्पादेवी का देवालय चम्पावत के मुख्यालय में वहां के प्रसिद्ध देवालय बालेश्वर के पीछे स्थित है।
झूमादेवी : स्थानीय लोगों द्वारा इष्टदेवी के रूप में पूजित झूमादेवी का देवस्थल चम्पावत जनपद में लोहाघाट से 4-5 किमी० ऊपर की और एक पहाड़ी पर स्थित है।
हिंगला : हिडिम्बा के हिंगोले (झूले) से सम्बन्ध वहां के लोगों के द्वारा पूजित यह देवस्थल चम्पावत मुख्यालय से 4 कि०मी० में वनाच्छादित पहाड़ी के शिखर पर स्थित है।
खिलपतिदेवी : खिलपतिदेवी के नाम से स्थानीय लोगों द्वारा पूजित अखिलतारिणीदेवी का यह देवस्थल चम्पावत मुख्यालय से 12-13 कि०मी० उत्तर में खिलपति नामक स्थान में स्थापित है।
कोटवीदेवी : यह चम्पावत के मुख्यालय से उत्तर-पश्चिम में स्थित सुंई-बिसुंग के लोगों की इष्टदेवी का स्थान कोटा लगढ़ है। यहां के पुरातन शासक असुरराज वाणासुर की माता के रूप में इसकी मान्यता के कारण इसका सम्बन्ध आर्येत्तर वर्गीय देवियों से बनता है।
हिडिम्बा : हिडिम्ब राक्षस की बहिन होने से हिडिम्बादेवी का सम्बन्ध आर्येत्तर जाति राक्षस कुल से जोड़ा जाता है। चम्पावत क्षेत्र के लोगों द्वारा इसे एक देवशक्ति के रूप में पूजा जाता है। यह देवस्थल चम्पावत मुख्यालय से 3 कि०मी० दूर पर स्थित है।
झालीमाली : यह चम्पावत जनपद के अन्र्तगत फुंगरकोट के महर/रौत क्षत्रियों की कुलदेवी है। इसका पूजा स्थल फुंगर पहाड़ी पर बटकू (घटोत्कच) के मंदिर के पास ही है।
कोटगाड़ीदेवी: स्थानीय रूप में इसकी आराधना पिथौरागढ़ जनपद के पट्टी पुंगरांऊ में इसी नाम के स्थान पर की जाती है।
उल्कादेवी : नेपाल के गोखौं द्वारा अपनी कुलदेवी के रूप में स्थापित यह देवस्थल पिथौरागढ़ नगर के मध्य में स्थित है। इसके अतिरिक्त सिटौली अल्मोड़ा में भी इसका एक देवालय है।
यूकेपीडिया (ukpedia)
उन्यारीदेवी: उज्यारीदेवी, जिसे ज्यालादेवी अथवा कीटकांगड़ा की देवी भी कहा जाता है, का देवालय द्वाराहाट में स्थित है। यह वहां के चौधरियों की कुलदेवी है।
घड़देवी/गड़देवी: स्थानीय देवशक्ति के रूप में पूजित इस देवी का प्रभावक्षेत्र मुख्यतः कुमांऊ का पूर्वाचल है। पिथौरागढ़ जनपद के बड़ाऊ एवं बरगाड़ के अत्रियों में तथा अस्कोट एवं गंगोली क्षेत्र में इसे इष्टदेवी के रूप में पूजा जाता है।
गुड़ेलीदेवी : शिशुओं के स्वास्थ्य से सम्बद्ध इस देवी का आवाहन, पूजन मुख्यतः कुमांऊ के उत्तरवर्ती क्षेत्रों में प्रचलित है।
रक्षादेवी: यह भी एक स्थानीय देवी है। इसका पूजास्थल चम्पावत जनपद में ब्यानधूरा तथा देवीघूरा के मध्य गरसाड़ नामक स्थान पर स्थित है। स्थानीय लोगों के द्वारा भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को इसकी पूजा का विशेष आयोजन किया जाता है।
रणचूलादेवी : कार्तिकेयपुर के कत्यूरी शासकों की कुलदेवी के रूप में पूजित रणचूलादेवी का मंदिर बैजनाथ के लगभग 1) कि० मी० पर स्थित रणचूलाकोट की पहाड़ी पर स्थित है।
कोकिलादेवी : पिथौरागढ़ जनपद के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के निवासियों द्वारा मान्य इस देवी का देवस्थल छिपुलाकेदार की यात्रा के मार्ग में पड़ता है।
कठपुड़िया/कठपतिया: शौका जनजाति के पशुचारकों द्वारा मान्य इस
देवशक्ति का आवास पर्वत शिखरों के यात्रा द्वारों पर माना जाता है। इसका न कोई मंदिर होता है और न पूजा विधान। ये लोग अपनी पशुचारण यात्राओं के समय इन दरों पर इनके नाम से एक पाषाणखण्ड या देवदारु की लकड़ी अर्पित करके इसके प्रति अपना श्रद्धाभाव व्यक्त किया करते हैं।
मल्लिका : अस्कोट के मल्लिकार्जुन (शिव) की पत्नी के रूप में मान्य मल्लिकादेवी का देवस्थल अल्मोड़ा जनपद में गणनाथ अधिक उन्नत पर्वत शिखर पर स्थित है।गुहा मंदिर के पूर्वोत्तर में 7000 फीट से भी इसके अतिरिक्त गैथान (पट्टी महर), माला (पट्टी-बोरारी) में भी इसके पूजा स्थल हैं।
जाखनदेवी : (यक्षिणीदेवी) यक्षपूजा से सम्बद्ध जाखनदेवी का प्रभाव क्षेत्र अल्मोड़ा जनपद का मुख्यालय अल्मोड़ा तथा उसका आसपास का क्षेत्र है।
यूकेपीडिया (ukpedia)
नैथाणदेवी : नैथाणदेवी के नाम से विख्यात यह देवस्थल अल्मोड़ा जनपद में मासी के निकट पाली ग्राम के निकटस्थ क्षेत्र में एक पहाड़ी पर स्थित है। इसका प्रभाव क्षेत्र मासी के आसपास के गांवों तक ही सीमित है।
शीतलादेवी : छोटी माता (चेचक) की देवी के रूप में पूजित शीतला माता से भिन्न शिवशक्ति के रूप में मान्य यह देवस्थल नैनीताल जनपद में प्यूड़ा एंव मुक्तेश्वर के बीच एक घने वनखण्ड में स्थित है। इसका प्रभाव क्षेत्र भी स्थानीय लोगों तक ही सीमित है।
नगरासिणी : दुर्गा की अन्यतम शक्ति के रूप में पूजित यह देवस्थल श्रीनगर (गढ़वाल) में सुमाड़ी गांव के ऊपर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसके विषय में कहा जाता है कि जब गढ़नरेश चांदपुरगढ़ी से इसे लेकर आ रहे थे तो मार्ग में उसे यह स्थल इतना भाया कि यह यही पर 'आसीन' (स्थित) हो गयी। इसी से इसका नाम नगरासिणी (नगर, श्रीनगर आसिनी) पड़ गया। इसे गढ़राजय वंश ही कुलदेवी माना जाता है।
रेणुकादेवी : रेणुकादेवी का पूजास्थल गढ़वाल मंडल के उ० का० जनपद के नाकुरी गांव में स्थित है।
आकाशभाजिनी: नेपाल की तान्त्रिकदेवी 'आकाशयोगिनी' से प्रभावित देवी का यह देवस्थल पिथौरागढ़ जनपद में सोन पट्टी के मड़ नामक ग्राम में स्थित है।
उफर्णी : अकिंसन (11 2:793) के अनुसार नौटी आदि में निम्न जाति के लोगों में देवी नन्दा का पूंजन उफर्णी (उ-पर्णी) के नाम से किया जाता है। इसका न तो कोई मंदिर होता है और न मूर्ति, केवल एक पाषाण प्रतीक मात्र होता है। हमारे विचार से उफर्णी की व्युत्पत्ति उमा+अपर्णा से की जा सकती है।
इसके अतिरिक्त और भी अनेक स्थानीय देवियां हैं जो अपने-अपने क्षेत्रों में विविध नामों से पूजी जाती है, यथा- उग्यारी/उग्रा (इडिया-गेवाड़, श्यामा (उच्यूर), वृन्दा/बानणी (तिखून), नैनी (कौलाग-कत्यूर),
स्याही/स्याई : इसके संस्कृतीकृत नाम श्यामादेवी का देवालय अल्मोड़ा से पश्चिम में पैदल मार्ग से 16 कि०मी० पर एक सघन बनावली में परिवोष्टित पहाड़ी पर स्थित है।
राजराजेश्वरी : यह गढ़वाल के राजपरिवारों द्वारा बहुमान्य देवी है। इसका प्रमुख देवालय श्रीनगर के निकट देवगढ़ में स्थापित है जहां पर चैत्र तथा कार्तिक मास के नवरात्रों में तथा दोनों फसलों के काटे जाने पर इसकी विशेष रूप से सामूहिक पूजा की जाती है।
सन्तोषीदेवी : उत्तराखण्ड की देवी शक्तियों की सूची में इसे आधुनिकतम कहा जा सकता है। अभी कतिपय दशक पूर्व तक यह अज्ञात थी। यह कब और कैसे अस्तित्व में आयी इसका कोई उपबन्ध नहीं है। इसका उल्लेख न तो कहीं किसी पुराण ग्रन्थ में मिलता है और न अन्यत्र ही। किन्तु अब यहां पर इनके अनेक देवालय भी बन गये हैं और स्त्रियां शुक्रवार को इसका व्रत रखकर गुड़ और चने का प्रसाद चढ़ाती हैं और अलवण भोजन करती हैं।
बताइये इनमें से आप किसे पूजते हैं कौन आपकी आराध्य है..?
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें