प्राचीन इतिहास वैदिक काल
वैदिक सभ्यता
इस सभ्यता की जानकारी वेद से होती है इसलिए इसका नाम ‘वैदिक सभ्यता’ रखा गया। वैदिक सभ्यता के प्रर्वतक को ‘आर्यजन’ का नाम दिया गया है। आर्यजन भारत के ही मूल निवासी थे। वैदिक काल को ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.) तथा उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई.पू.) में विभक्त किया गया है।
ऋग्वैदिक काल:
ऋग्वैदिक काल में आर्यजन सात नदियों वाले सप्त सिंधु क्षेत्रा में रहते थे। यह वर्तमान में पंजाब व हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में स्थित हैं। कुरूक्षेत्रा के आस-पास के क्षत्रों को उन्होंने ब्रह्मवर्त का नाम दिया। इसके बाद गंगा-यमुना के मैदानी प्रदेश तक बढ़ आये और इस क्षेत्रा को ‘ब्रहर्षि देश’ कहा। इसके उपरान्त वे हिमालय के दक्षिण एवं नर्मदा नदी के उत्तर (विन्ध्याचल के उत्तर) के मध्य के कुछ प्रदेशों तक बढ़ आये और उस प्रदेश को ‘मध्य प्रदेश’ का नाम दिया। जब उन्होंने वर्तमान के बिहार, बंगाल के आस-पास तक पहुंच गये तब समस्त उत्तरी भारत के क्षेत्रा को ‘आर्यावर्त’ अर्थात् आर्यो के रहने का स्थान कहकर संबोधित किया। उनके भौगोलिक क्षेत्रा के अंतर्गत गोमती का मैदान, द. जम्मू-कश्मीर, दक्षिणी अफगानिस्तान भी आते हैं। ‘भौगोलिक ज्ञान’ ऋग्वेद काल में आर्यो का निवास स्थान मुख्य रूप से पंजाब तथा सरस्वती से लगा अम्बाला तथा आस-पास का क्षेत्रा था। ऋग्वेद में 40 नदियों का उल्लेख है। सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सर्वाधिक उल्लेखित नदी सरस्वती है। दूसरी महत्त्वपूर्ण नदी सिन्धु है। सरस्वती नदी का नदीतमा (नदियों में अग्रवर्ती) तथा सरयु का उल्लेख तीन बार तथा गंगा का उल्लेख एक बार हुआ है। नदी स्तुति में अंतिम नदी गोमती (गोमल) है। ऋग्वेद में चार समुद्रों का उल्लेख है। ‘पर्वत’ तीन पर्वतों का उल्लेख मिलता है- हिमवन्त (हिमालय), मंूजवंत पर्वत (हिन्दूकुश पर्वत), त्रिकोटा पर्वत। आर्यों का मादक पेय ‘सोम’ मूजवंत पर्वत से आता था। रावी नदी के तट पर प्रसिद्ध वैदिक दाशराज्ञ युद्ध (सुदास एवं दिवोदास के बीच) हुआ था। आर्यों को धन्व (मरुस्थलो) का भी ज्ञान था।
आर्थिक व्यवस्था
प्रारंभिक वैदिक समाज की अर्थव्यवस्था का आधार पशुपालन था। गाय ही आर्योें के विनिमय का प्रमुख साधन था। ज्यादा पशु रखने वाले को ‘गोमत’ कहा जाता था। राजा को नियमित कर देने या भू-राजस्व देने की पद्धति विकसित नहीं हुई थी। दूरी को गवयुती और समय को मापने के लिए गोधुली शब्द का, पुत्राी के लिए दुहिता, युद्धों के लिए गविष्ट जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। लोग सोना व चांदी से परिचित थे। अग्नि को पथ निर्माता (पथिकृत) कहा गया है। उस काल में कृत्रिम सिंचाई की व्यवस्था भी थी। काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा हल खीचें जाने का उल्लेख है। सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मण में कृषि की समस्त प्रक्रियाओं का उल्लेख मिलता है। ‘उद्योग’ वस्त्रा-निर्माण, बर्तन निर्माण, चर्म-कार्य तथा लकड़ी व धातु उद्योग थे। बढ़ई और धातुकार का कार्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। उद्योग-धंधे व्यक्तिगत स्तर पर किये जाते थे। व्यापार हेतु सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भ्रमण करने वाले व्यक्ति को ‘पणि’ कहा जाता था।
राजतंत्रा
आरंभिक वैदिक समाज में राजा का निर्वाचन युद्ध में नेतृत्व करने के लिए किया जाता था। वह किसी क्षेत्रा विशेष का प्रधान नहीं बल्कि वह किसी जन-विशेष का प्रधान होता था। वंशानुगत राज की अवधारणा नहीं थी। राजा को गोमत कहा जाता था। पुरोहित राजा की सहायता करता था। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार अभिषेक होने पर राजा महान बन जाता था। राजसूय यज्ञ करने वालों की उपाधि राजा थी तथा वाजपेय यज्ञ करने वाले की सम्राट। राजा की सहायता हेतु सेनानी, ग्रामाीण तथा पुरोहित आदि 12 रत्निनों के घर जाता था। राजा की सेना में व्रात, गण, ग्राम एवं शर्ध नामक कबीलाई सैनिक होते थे।
वैदिक देवतागण
देवताओं में इन्द्र, अग्नि और वरुण को सबसे अधिक महत्व प्राप्त है। इन्द्र वीरता तथा शक्ति, बादल तथा तड़ित का देवता था। उसे बज्रबाहू भी कहा जाता था। अग्नि की उपाधि धूमकेतु थी। उसे देवताओं का मुख, धौस, दुर्ग का भेदक, अतिथि तथ दुर्गों का भेदक बताया गया है।
वरूण का संबंध वायु जल से था। वह ऋतुओं का नियामक एवं नैतिक व्यवस्था बनाए रखने वाला देवता था।
सोम देवता का उल्लेख ऋग्वेद के नवें मंडल में 114 सूक्तों में किया गया है। सोम का संबंध चन्द्रमा एवं वनस्पति देवता से था।
इड़ा (दुर्गा) देवी अन्नपूर्णा और समृद्धि की देवी थीं। रूद्र देवता नैतिकता की रक्षा करने वाला तथा महामारी का प्रकोप से बचाने वाला अति क्रोधी देवता था। अर्धदेव के अन्तर्गत मनु, ऋभु, गंधर्व तथा अप्सरा आदि आते थे। मूर्तिपूजा और मंदिर पूजा का प्रचलन नहीं था। ‘यज्ञ’ श्रोत यज्ञों का संबंध सोम पूजा से था। सोम यज्ञों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अश्वमेघ तथा राजसूय यज्ञ थे। ऋग्वेद में ‘ब्रह्मा’ का अर्थ यज्ञ से है। ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में निर्गुण ब्रह्मा का उल्लेख है। यजुर्वेद एवं ऐतरेय में रूद्र को जनसाधारण का देवता बताया गया है। ‘दसराज्ञ युद्ध’ रावी के तट पर भरतवंश के राजा सुदास एवं अन्य दसजनों के बीच यह युद्ध हुआ था। इसमें पुरोहित विशिष्ट के यजमान राजा सुदास की विजय हुई थी। राजसूय यज्ञ से राजा को दिव्यशक्ति मिल जाती थी। वाजपेय यज्ञ में रथदौड़ आयोजित होता था।
1. वैदिक संस्कृति क्या है ?
आर्यों के द्वारा निर्मित सामाजिक-सांस्कृतिक तथा आर्थिक व्यवस्था वैदिक संस्कृति के रूप में जानी जाती है।
2. वैदिक काल कब से कब तक माना जाता है ?
1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक
3. वेदों की संख्या कितनी है ?
चार (ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद)
4. आर्य कहां से आए थे ?
भारतीय क्षेत्र में आर्यों के आगमन के कई मत हैं । लेकिन अधिकांश मतों के अनुसार आर्य यूरोप के कैस्पियन सागरीय क्षेत्र के मूल निवासी थे। आर्य खैबर दर्रे के मार्ग से भारत आए और सबसे पहले पश्चिमोत्तर भारत को अपना निवास स्थान बनाया ।
5. भारत आकर आर्य जिस क्षेत्र में बसे उसे क्य कहा जाता है ?
सप्त सैंधव प्रदेश
ईरान की पवित्र पुस्तक जेन्दावेस्ता तथा बोगजकोई अभिलेख से स्पष्ट होता है कि आर्य ईरान से होकर भारत आए थे । भारत आकर जिस क्षेत्र में बसे उसे सप्त सैंधव प्रदेश कहा जाता है ।
6. ऋग्वैदिक काल का काल खंड कब तक है ?
1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. तक
7. ऋग्वैदिक काल की जानकारी का स्त्रोत क्या है ?
ऋग्वेद
8. इस काल खंड में वैदिक आर्य किस तरह की जिंदगी व्यतीत करते थे ?
अस्थायी जीवन
9. सप्त सिंधू प्रदेश का मतलब क्या है ?
इस क्षेत्र में प्रमुख सात नदियां प्रवाहित होती थीं । ये नदियां थीं- सिंधू, सतलज, रावी, चिनाब, झेलम, व्यास और सरस्वती ।
10. ऋग्वेद में सप्त सिंधू प्रदेश को क्या कहा गया है ?
ब्रह्मावर्त
11. ऋग्वेद में हिमालय की चोटी को क्या कहा गया है ?
मूजवन्त
12. सीर का मतलब क्या था ?
हल
13. खिल्य शब्द किसके लिए प्रयुक्त होता था ?
चारागाह
14. करीष शब्द का इस्तेमाल किसके लिए किया जाता था ?
गोबर की खाद
15. अवट शब्द का मतलब क्या था ?
कूप
16. ऋग्वेद में सीता किसे कहकर संबोधित किया गया है ?
हल से बनी नालियों के लिए सीता शब्द का प्रयोग होता था ।
17. परिवार के मुखिया को क्या कहा जाता था ?
कुलप
18. इस समय समाज किस तरह का था ?
पितृ प्रधान समाज/कबीलाई समाज भी
नारियों को उचित सम्मान दिया जाता था । महिलाएं अधिक स्वच्छन्द तथा स्वतंत्र जीवन-यापन करती थीं ।
19. ऋग्वैदिक काल में किन विदुषी महिलाओं का उल्लेख है ?
अपरा, घोषा, विश्वतारा और गार्गी ।
20. ऋग्वेद में कहां चार वर्णों(ब्राह्मण,क्षेत्रिय, वैश्य, शुद्र) की जानकारी मिलती है ?
पुरुषसूक्त
पुरुषसूक्त में चार वर्णों- ब्राह्मण, क्षेत्रिय, वैश्य तथा शूद्र की चर्चा मिलती है। किन्तु तब यह विभाजन जन्ममूलक न होकर कर्ममूलक था ।
21. ऋग्वेद में अघन्या किसके लिए उपयोग किया जाने वाला शब्द है।
गाय को अघन्या माना जाता था। इसका अर्थ है न मारने-योग्य ।
22. दास और दस्यु को आर्य किस नाम से पुकारते थे ?
अमानुष
23. लंबे समय तक विवाह नहीं करने वाली कन्याओं को क्या कहा जाता था ?
अमाजू
बहुपत्नी प्रथा अनुपस्थित थी । बाल-विवाह की प्रथा नहीं थी । समाज में सती-प्रथा का कोई अस्तित्व नहीं था। विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति थी ।
24. ऋग्वैदिक समाज में किसको अधिक महत्व दिया जाता था ?
संस्कार
25. आर्यों का प्रमुख पेय क्या था ?
सोम रस
सोम रस को विशेष आयोजनों में परोसा जाता था । दूध तथा दूध से बने व्यंजनों की चर्चा भी मिलती है ।
26. आर्यों के परिधान को कितने भागों में बांटा गया है ?
तीन भागों में- वास, अधिवास तथा उष्णीष
27. परिधान के नीच पहने जाने वाले अधोवस्त्र को क्या कहा जाता था ?
नीवी
28. किस पशु के लिए युद्ध का विवरण ऋग्वेद में मिलता है ?
गाय
29. संपत्ति की गणना किस रूप में की जाती थी ?
रयि यानी मवेशियों के रूप में ।
गाये अतिरिक्त बकरियां(अजा), भेड़(अवि) और घोड़े भी पाले जाते थे ।
30. ऋग्वेद में किस फसल की चर्चा है ?
यव (जौ) और धान
31. ऋग्वेद में किस सिक्के का जिक्र है ?
निष्क
इस समय वस्तु विनिमय प्रणाली थी। लेकिन निष्क नामक सिक्के का भी जिक्र है ।
32. व्यापारियों को किस नाम से जाना जाता था ?
पणि
33. सूदखोर को किस नाम से बुलाया जाता था ?
बेकनाट
34. गायत्री मंत्र कहां से लिया गया है ?
ऋग्वेद
35. सत्यमेव जयते का जिक्र कहां किया गया है ?
मुण्डकोपनिषद
36. असतो मा सद् गमय कहां से लिया गया है ?
ऋग्वेद
37. गांव के प्रधान को क्या कहा जाता था ?
ग्रामणी
38. कई गांव के समूह को क्या कहते थे ?
विश
39. विशों के समूह को क्या कहा जाता था ?
जन
40. जन के अधिपति को क्या कहा जाता था ?
जनपति या राजा
राजा कोई पैतृक शासक नहीं था। इसे सभा तथा समियां चुनती थीं।
41. ऋग्वैदिक काल में कौन-कौन सी जनप्रतिनिधि संस्थाएं थीं ?
सभा, समिति तथा विदथ
समिति समुदाय की आम सभा थी जिसके अध्यक्ष को ईशान कहते थे। समिति की सदस्यता आम लोगों के लिए खुली होती थी ।समिति ही राजा का चयन करती थी । इसमें स्त्रियां भी भाग लेती थीं।
42. रत्निन शब्द का उल्लेख किस संदर्भ में किया गया है ?
अधिकारों के समूह के लिए
43. आर्यों की सबसे प्राचीन संस्था का क्या नाम है ?
विदथ( इसे जनसभा भी कहा जाता था )
44. बलि का मतलब किस चीज से था ?
कर (टैक्स)
45. गुप्तचरों यानी जासूसों को किस शब्द का प्रयोग किया गया है ?
स्पश
46. ऋग्वेद का सबसे महत्वपूर्ण देवता किसे कहा गया है ?
इंद्र
इंद्र को पुरंदर भी कहा गया है ।
47. इंद्र के बाद किस देवता को खास माना गया है ?
अग्नि एवं वरुण
उत्तरवैदिक काल
1. उत्तर वैदिक कालखंड कब से कब तक था ?
1000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक
2. उत्तर वैदिक काल के जानकारी के स्त्रोत क्या हैं ?
यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद
उत्तर वैदिक काल में आर्यों का विस्तार पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व की ओर होने लगा था । आर्य पंजाब के कुरुक्षेत्र यानी गंगा-यमुना दोआब में फैल गए थे । आर्यों ने कबीलाई जीवन छोड़कर स्थायी जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया था । उत्तर वैदिक आर्य जिस विस्तृत क्षेत्र में रहते थे उसे आर्यावर्त का नाम दिया गया ।
3. उत्तर वैदिक काल की विशेषता क्या है ?
चित्रित घूसर, मृदभाण्ड तथा लोहा
4. किस उपनिषद में मनुष्य के जीवन को चार आश्रमों में बाटा गया है ?
छान्दोग्य उपनिषद
5. मनुष्य के जीवन को किन चार आश्रमों में बांटा गया है ?
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास ।
6. नाटकों के मंचन को क्या कहा जाता था ?
शैलूष
7. पांचाल राज्य किस चीज को लेकर विख्यात था ?
दार्शनिक राजाओं और तत्वज्ञानी ब्राह्मणों को लेकर
8. वैदिक काल का सबसे बड़ा और ज्यादा लौह पुंज कहां मिला है ?
अतरंजीखेड़ा
9. धनवान व्यक्ति को क्या कहा जाता था ?
इभ्य
10. उत्तर वैदिक काल में किन सिक्कों का जिक्र मिलता है ?
निष्क, शतमान तता कृष्णल
11. मिट्टी के एक विशेष प्रकार के बनाए बर्तन को क्या कहा जाता था ?
चित्रित धूसर मृदभाण्ड ( PAINTED GREY WARE-PWG)
12. 24 बैलों द्वारा खींचे जाने वाले हलों का उल्लेख कहां मिलता है ?
काठक
13. किस उपनिषद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है ?
तैत्तिरीय उपनिषद
14. यजुर्वेद में हल को क्या नाम दिया गया है ?
सीर
15. उत्तर वैदिक काल के महत्वपूर्ण देवता थे ?
प्रजापति
देवियों को भी देवकुल में जगह मिली । विष्णु को मनुष्य जाति के दुखों का अंत करने वाला माना गया ।
16. शुद्रों के देवता के रुप कौन प्रचलित थे ?
पूषन
ऋग्वैदिक काल में पूषन पशुओं के देवता थे ।
17. राज्याभिषेक का किस वेद में उल्लेख है ?
अर्थवेद
18. छोटे न्यायालय को क्या कहा जाता था ?
ग्राम्य वादिन
19. उत्तर वैदिक यज्ञ कौन-कौन से थे ?
राजसूय, वाजपेय, अश्वमेघ, अग्निष्टोम
वैदिक साहित्य
ऋग्वेद :-
1-श्रुति साहित्य में वेदों का प्रथम स्थान है। वेद शब्द ‘विद’ घातु से बना है , जिसका अर्थ है ‘जानना’
2-वेदों से आर्यों के जीवन तथा दर्शन का पता चलता है ।
3-वेदों की संख्या चार है। ये हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, समावेद और अर्थवेद ।
4-वेदों को संहिता भी कहा जाता है।
5-वेदों के संकलन का श्रेय महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद-व्यास को है ।
6-ऋग्वेद में 10 मण्डलों में विभाजित है। इसमें देवताओं की स्तुति में 1028 श्लोक हैं। जिसमें 11 बालखिल्य श्लोक हैं ।
7-ऋग्वेद में 10462 मंत्रों का संकलन है।
8-प्रसिद्ध गायत्री मंत्र ऋग्वेद के चौथे मंडल से लिया गया है।
9-ऋग्वेद का पहला ताथा 10वां मंडल क्षेपक माना जाता है ।
10-नौवें मंडल में सोम की चर्चा है।
11-आठवें मंडल में हस्तलिखित ऋचाओं को खिल्य कहा जाता है।
12-ऋग्वेद में पुरुष देवताओं की प्रधानता है । 33 देवताओं का उल्लेख है।
13-ऋग्वेद का पाठ करने वाल ब्राह्मण को होतृ कहा जाता था ।
14-देवताओं में सबसे महत्वपूर्ण इंद्र थे ।
15-ऋग्वेद में दसराज्ञ युद्ध की चर्चा है।
16-उपनिषदों की कुल संख्या 108 है।
17-वेदांग की संख्या 6 है।
18-महापुराणों की संख्या 18 है।
19-आर्यों का प्रसिद्ध कबीला भरत था ।ज
20-जंगल की देवी के रूप में अरण्यानी का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है।
21-बृहस्पति और उसकी पत्नी जुही की चर्चा भी ऋग्वेद में मिलती है।
22-सरस्वती ऋग्वेद में एक पवित्र नदी के रूप में उल्लिखित है। इसके प्रवाह-क्षेत्र को देवकृत योनि कहा गया है।
23-ऋग्वेद में धर्म शब्द का प्रयोग विधि(नियम) के रूप में किया गया है।
24-ऋग्वेद की पांच शाखाएं हैं- वाष्कल, शाकल, आश्वलायन, शंखायन और माण्डुक्य
25-अग्नि को पथिकृत अर्थात् पथ का निर्माता कहा जाता था ।
यजुर्वेद :-
यजुर्वेद में अनुष्ठानों तथा कर्मकांडों में प्रयुक्त होने वाले श्लोकों तथा मंत्रों का संग्रह है।
इसका गायन करने वाले पुरोहित अध्वर्यु कहलाते थे ।
यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है। इसके दो पाठान्तर हैं- 1.कृष्ण यजुर्वेद 2. शुक्ल यजुर्वेद
कृष्ण यजुर्वेद गद्य तथा शुक्ल यजुर्वेद पद्य में रचित है।
यजुर्वेद में राजसूय, वाजपेय तथा अश्वमेघ यज्ञ की चर्चा है।
यजुर्वेद में 40 मंडल तता 2000 ऋचाएं(मंत्र) है।
सामवेद :-
1-सामवेद में अधिकांश श्लोक तथा मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।
2-सामवेद का संबंद संगीत से है।
3-इस वेद से संबंधित श्लोक और मंत्रों का गायन करने वाले पुरोहित उद्गातृ कहलाते थे ।
4-इसमें कुल 1549 श्लोक हैं। जिसमें 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं।
5-सामवेद में मंत्रों की संख्या 1810 है।
अथर्ववेद :-
1-अथर्ववेद की ‘रचना’ अर्थवा झषि ने की थी ।
2-अथर्ववेद के अधिकांश मंत्रों का संबंध तंत्र-मंत्र या जादू-टोने से है।
3-रोग निवारण की औषधियों की चर्चा भी इसमें मिलती है।
4-अथर्ववेद के मंत्रों को भारतीय विज्ञान का आधार भी माना जाता है।
5-अथर्ववेद में सभा तथा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है।
6-सर्वोच्च शासक को अथर्ववेद में एकराट् कहा गया है। सम्राट शब्द का भी उल्लेख मिलता है।
7-सूर्य का वर्णन एक ब्राह्मण विद्यार्थी के रूप में किया गया है।
8-उपवेद, वेदों के परिशिष्ट हैं जिनके जरिए वेद की तकनीकी बातों की स्पष्टता मिलती है।
9-वेदों की क्लिष्टता को कम करने के लिए वेदांगों की रचना की गई ।
10-शिक्षा की सबसे प्रामाणिक रचना प्रातिशाख्य सूत्र है ।
11-व्याकरण की सबसे पहल तथा व्यापक रचना पाणिनी की अष्टाध्यायी है।
12-ऋषियों द्वारा जंगलों में रचित ग्रंथों को आरण्यक कहा जाता है।
13-वेदों की दार्शनिक व्याख्या के लिए उपनिषदों की रचना की गई ।
14-उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है।
15-उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है एकान्त में प्राप्त ज्ञान ।
16-यम तथा नचिकेता के बीच प्रसिद्ध संवाद की कथा कठोपनिषद् में वर्णित है।
17-श्वेतकेतु एवं उसके पिता का संवाद छान्दोग्योपनिषद में वर्णित है।
18-भारत का सूत्र वाक्य सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।
स्मृति साहित्य :-
मनु स्मृति सबसे पुरानी स्मृति ग्रंथ है।
हिंदु धर्म में स्मृति ग्रंथों का सर्वाधिक प्रभाव है।
इसमें सामान्य जीवन के आचार-विचार तथा नियमों की चर्चा है।
पुराणों के संकलन का श्रेय वेदव्यास को जाता है। पुराणों की संख्या 18 है।
सबसे प्राचीन पुराण मत्स्य पुराण है जिसमें विष्णु के दस अवतारों की चर्चा है।
रामायण और महाभारत धर्मशास्त्र की श्रेणी में आते हैं।
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी । रामायण 7 काण्डों में विभक्त है।
महाभारत की रचना वदेव्यास ने की थी । इसमें कौरव तथा पांडवों के बीच युद्ध का वर्णन है। महाभारत 18 पर्वों में विभक्त है । इसे जयसंहिता या शतसाहस्त्र संहिता भी कहा जाता है।
श्रीमदभागवत गीता महाभारत के भीष्म पर्व का अंश है।
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जवाब देंहटाएंआर्य बाहर से आये थे इसका किस आधार पर निर्धारण किया गया ।
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