GST वस्तु एवं सेवा कर

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)

वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विस टैक्स-जीएसटी) कर का वह प्रकार है जो मूल्यवर्द्धन के प्रत्येक स्तर पर अनिवार्य रूप से लगाया जाता है। हर चरण में किसी भी आपूर्तिकर्ता को टैक्स क्रेडिट सिस्टम के माध्यम से इसकी भरपाई करने की अनुमति होती है। वस्तुओं और सेवाओं की खरीद पर भुगतान किए जाने वाले जीएसटी की भरपाई वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर भुगतान किए जाने वाले जीएसटी से की जाती है।

अंत में ग्राहक को केवल आपूर्ति श्रृंखला के आखिरी व्यापारी पर लगाए गए जीएसटी का भार वहन करना पड़ता है और भरपाई की प्रक्रिया की वजह से वह सभी पिछले चरणों के कर के भुगतान से बच जाता है। अन्य प्रमुख केंद्रीय और राज्य स्तर के करों को भी जीएसटी में सम्मिलित किया जाएगा और केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) को समाप्त कर दिया जाएगा। इस प्रकार वस्तुओं पर लगने वाले कर के कुल भार में जीएसटी के तहत सामान्य रूप से गिरावट होगी।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाभ: सभी प्रमुख केंद्रीय और राज्य स्तर के करों के जीएसटी के अंतर्गत आने की  वजह से वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले कर की पूरी और व्यापक भरपाई हो जाएगी और केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) को बाहर किए जाने की वजह से स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं और सेवाओं की लागत में कमी होगी। यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की प्रतिस्पर्धात्मकता और भारतीय निर्यात को बढ़ावा देगा। देशभर में कर की दरों और प्रक्रियाओं में आने वाली एकरूपता भी लंबी अवधि में लागत को कम करेगी।

शामिल होने वाले कर: जीएसटी उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिश के अनुसार शुरुआत में केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, औषधीय एवं प्रसाधन निर्माण अधिनियम के तहत लगाया जाने वाला उत्पाद शुल्क, सेवा कर, अतिरिक्त सीमा शुल्क, सीमा शुल्क के साथ लगने वाला विशेष अतिरिक्त शुल्क (एसएडी), अधिभार और उपकर जैसे केंद्रीय करों को जीएसटी के तहत सम्मिलित करना चाहिए।

शुरुआत में वैट, बिक्री कर, मनोरंजन कर (अगर यह स्थानीय निकायों द्वारा नहीं लगाया गया हो), विलासिता कर, लॉटरी, सट्टेबाजी व जुए पर कर, वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित राज्य उपकर और अधिभार, प्रवेश कर (चुंगी के बदले नहीं) जैसे राज्यों के कर एवं लेवियों को जीएसटी में शामिल किया जा सकता है।

उद्योग जगत के अनुसार, चूंकि कर भरपाई की श्रृंखला बिल्कुल पारदर्शी और संपूर्ण होगी इसलिए इसकी वजह से कर से प्राप्त होने वाले राजस्व में वृद्धि होगी और कर के अनुपालन में भी सुधार होगा। इसकी वजह से राजस्व में वृद्धि हो सकती है। इसके फलस्वरूप औसत कर के भार को कम किए जाने की संभावना बनेगी।

बेशक, जीएसटी को अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अच्छा माना जा रहा हो, लेकिन राज्यों की तात्कालिक चिंताओं के चलते इसे लागू करने की राह में तमाम बाधाएं आ रही हैं। केंद्र सरकार की ओर से तमाम प्रयासों के बावजूद  गतिरोध खत्म नहीं हो पा रहा है।

राज्यों में कर हमेशा से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहे हैं और ऐसे में पूरे देश में एक समान कर जैसे प्रावधान से पडऩे वाले राजनीतिक प्रभाव को कोई भी दल अनदेखा नहीं कर सकता है। जीएसटी के दायरे में अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किए जाने के प्रस्ताव के बाद से ही राज्य सरकारें राजस्व के नुकसान के नाम पर कुछ बिंदुओं का विरोध कर रही हैं।

राजस्व के नुकसान की आशंका: करों और कर राजस्व के मामले में हर राज्य की अपनी तस्वीर है। जहां कुछ राज्य पर्यटन पर निर्भर हैं तो कुछ आबकारी से मिलने वाले कर से अपना राजकोष भरते हैं। हर राज्य के लिए उसके राजस्व की निर्भरता अलग है।

ऐसे में राज्यों का कहना है कि जीएसटी के लागू होने से उनके राजस्व में नुकसान होगा। राज्य राजस्व के इस नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र की ओर से स्पष्ट प्रावधान की मांग कर रहे हैं। अधिकार प्राप्त समिति ने केंद्र से कहा है कि संविधान संशोधन विधेयक में इस बात का स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए कि जीएसटी के लागू होने से राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र करेगा।

वित्तीय मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने भी जीएसटी की क्षतिपूर्ति के लिए अलग से कोष बनाने का सुझाव दिया था। लेकिन केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन विधेयक में इसे शामिल नहीं किया है। नुकसान की भरपाई का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं होने के कारण राज्यों की सहमति नहीं बन रही है।

पेट्रोलियम और अल्कोहल पर अड़चन: विरोध का सबसे बड़ा बिंदु इस समय पेट्रोलियम पदार्थों और अल्कोहल (शराब) को जीएसटी के दायरे में शामिल किए जाने का केंद्र सरकार का प्रस्ताव है। राज्यों ने सर्वसम्मति से पेट्रोलियम पदार्थों और शराब को जीएसटी के दायरे में रखने से  स्पष्ट इनकार कर दिया है जबकि केंद्र लगातार इन्हें जीएसटी के दायरे में रखने पर जोर दे रहा था।

राज्यों का कहना है कि अपनी वित्तीय स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए ही किसी तरह का निर्णय लिया जाएगा। एक ओर जहां राज्य सरकारों ने प्रवेश कर को बनाए रखने और पेट्रोलियम पदार्थों और शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने का समर्थन किया है वहीं केंद्र सरकार का रुख इससे विपरीत है।

जीएसटी के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष जम्मू कश्मीर के वित्त मंत्री अब्दुल रहीम राथेर का कहना है कि इस बात पर पूरी तरह से आम सहमति है कि पेट्रोलियम व अल्कोहल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। ये राज्यों के लिए आय के मुख्य स्रोत हैं और यदि इन्हें जीएसटी में शामिल किया जाता है तो राज्यों को राजस्व का बड़ा नुकसान होगा।

अधिकार अतिक्रमण की चिंता: कर राज्यों का अंदरूनी मुद्दा रहे हैं। ऐसे में करों के एकीकृत ढांचे से राज्य अपने अधिकार क्षेत्र में दखल का अंदेशा भी जता रहे हैं।  राज्यों के बीच आम सहमति बनी है कि चूंकि हमारा देश एक संघीय व्यवस्था वाला देश है, इसलिए विधेयक में ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए जिससे इस संघीय ढांचे को क्षति पहुंचे। समिति का कहना है कि घोषित वस्तुओं के बारे में 'पुनर्व्यवस्था' नहीं होनी चाहिए और कुछ वस्तुओं को 'विशेष महत्व वाली वस्तुएं' घोषित करने का अधिकार केंद्र के पास नहीं होना चाहिए।

इस समय तमाम सर्विसेज अर्थात सेवाओं पर लगभग 10-12 प्रतिशत कर लग रहा है। गुड्स अर्थात  वस्तुओं पर सभी करों की औसत दर 20 प्रतिशत के आसपास है। संभावना है कि जीएसटी लागू होने पर कर की औसत दर 12 से 14 प्रतिशत के बीच हो सकती है। हालांकि स्लैब के आधार पर कुछ वस्तुओं व सेवाओं पर कर की दर अधिक और कुछ पर कम हो सकती है। लेकिन पूरे देश में किसी वस्तु या सेवा पर कर की दर समान होगी।

सरकार राज्य और केंद्र के स्तर पर लगने वाले अधिकांश करों को इसमें शामिल करने का प्रयास कर रही है। इन सभी करों को मिलाकर स्लैब के आधार पर पूरे देश में एक समान दर लागू होगी। हालांकि केंद्रीय जीएसटी और प्रांतीय जीएसटी अलग-अलग होंगे। लेकिन समग्र जीएसटी की दर तय करके उसमें से केंद्र और राज्य की दर तय की जाएगी। जीएसटी मौजूदा वैट की तरह ही लागू होगा।

कच्चा माल विक्रेता विक्रय के समय टैक्स काटकर सरकार को जमा करेगा। इसके बाद निर्माता, थोक विक्रेता और फुटकर विक्रेता अपने-अपने विक्रय मूल्य पर टैक्स काटकर जमा करेंगे। लेकिन उन्हें पहले जमा हो चुके टैक्स का रिफंड मिलेगा। इस तरह केवल मूल्य संवर्धन (वैल्यू एडीशन) पर ही टैक्स देय होगा। दोहरे कराधान  पर जीएसटी से पूरी तरह रोक लग जाएगी।

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