गुमानी पन्त जी "कुमाऊँ के प्रथम कवि"

कवि गुमानी पन्त जी का जन्म विक्रत संवत्  1857, कुमांर्क गते 27, बुधवार, फरवरी 1790 को काशीपुर में हुआ था, इनका पैतृक निवास स्थान ग्राम-उपराड़ा, गंगोलीहाट, पिथौरागढ़ था। इनका मूल नाम लोकनाथ पन्त था। कहते हैं कि काशीपुर के महाराजा गुमान सिंह की सभा में राजकवि रहने के कारण इनका नाम लोकरत्न “गुमानी” पड़ा और कालान्तर में ये इसी नाम से प्रसिद्ध हुये। गुमानी जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने चाचा श्री राधाकृष्ण पन्त तथा बाद में कल्यूं(धौलछीना) अल्मोड़ा के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी पण्डित हरिदत्त पन्त से शिक्षा ग्रहण की, इसके अतिरिक्त आपने चार वर्ष तक प्रयाग में शिक्षा ग्रहण की। ज्ञान की खोज में आप वर्षों तक देवप्रयाग और हरिद्वार सहित हिमालयी क्षेत्रों में भ्रमण करते रहे, इस दौरान आपने साधु वेश में गुफाओं में वास किया। कहा जाता है कि देवप्रयाग क्षेत्र में किसी गुफा में साधनारत गुमानी जी को भगवान राम के दर्शन हो गये और भगवान श्री राम ने गुमानी जी से प्रसन्न होकर सात पीढियों तक का आध्यात्मिक ज्ञान और विद्या का वरदान दिया। अपने जीवनकाल में गुमानी जी कोई महाकाव्य तो नहीं लिखा, किन्तु समकालीन परिस्थितियों पर बहुत कुछ लिखा। गुमानी जी मुख्यतः संस्कृत के कवि और रचनाकार थे। किन्तु खड़ी बोली और कुमाऊंनी में भी आपने बहुत कुछ लिखा है। संस्कृत में श्लोक और भावपूर्ण कविता रचने में इन्हें विलक्षण प्रतिभा प्राप्त थी।

गुमानी जी को खड़ी बोली का पहला कवि कहा जाता है (यद्यपि हिन्दी साहित्य में ऐसा कहीं उल्लेख प्राप्त नहीं है), ऐसा संभवतः इसलिये कि प्रख्याल हिन्दी नाटककार और कवि काशी के भारतेन्दु हरिशचन्द्र, जिन्हें हिन्दी साहित्य जगत में खडी बोली का पहला कवि होने का सम्मान प्राप्त है, का जन्म गुमानी जी के निधन (1846) के चार वर्ष बाद हुआ था।

         काशीपुर के राजा गुमान सिंह के दरबार में इनका बड़ा मान-सम्मान था, कुछ समय तक गुमानी जी टिहरी नरेश सुदर्शन शाह के दरबार में भी रहे। इनकी विद्वता की ख्याति पड़ोसी रियासतों- कांगड़ा, अलवर, नाहन, सिरमौर, ग्वालियर, पटियाला, टिहरी और नेपाल तक फ़ैली थी।

गुमानी विरचित साहित्यिक कृतियां-
रामनामपंचपंचाशिका, राम महिमा, गंगा शतक, जगन्नाथश्टक, कृष्णाष्टक, रामसहस्त्रगणदण्डक, चित्रपछावली, कालिकाष्टक, तत्वविछोतिनी-पंचपंचाशिका, रामविनय, वि्ज्ञप्तिसार, नीतिशतक, शतोपदेश, ज्ञानभैषज्यमंजरी।

उच्च कोटि की उक्त कृतियों के अलावा हिन्दी, कुमाऊंनी और नेपाली में कवि गुमानी की कई और कवितायें है- दुर्जन दूषण, संद्रजाष्टकम, गंजझाक्रीड़ा पद्धति, समस्यापूर्ति, लोकोक्ति अवधूत वर्णनम, अंग्रेजी राज्य वर्णनम, राजांगरेजस्य राज्य वर्णनम, रामाष्टपदी, देवतास्तोत्राणि।

हिमालय के इस महान सपूत व कूर्मांचल गौरव की साहित्य साधना पर अपेक्षाकृत बहुत कम लिखा ग्या है। 1897 में चन्ना गांव, अल्मोड़ा के देवीदत्त पाण्डे जी ने “कुमानी कवि विरचित संस्कृत एवं भाषा काव्य” लिखा है और रेवादत्त उप्रेती ने “गुमानी नीति” नामक पुस्तकों में कवि का साहित्यिक परिचय दिया है। उपराड़ा में गुमानी शोध केन्द्र इन पर व्यापक शोध कर रहा है।

गुमानी जी कुमाऊँनी तथा नेपाली के प्रथम कवि तो थे ही, साथ ही हिन्दी तथा संस्कृत भाषा पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी. यह छन्द देखिये। चार पंक्तियों के छन्द की प्रत्येक पंक्ति में अलग भाषा का प्रयोग है।

बाजे लोक त्रिलोक नाथ शिव की पूजा करें तो करें (हिन्दी)
क्वे-क्वे भक्त गणेश का में बाजा हुनी तो हुनी (कुमाऊँनी)
राम्रो ध्यान भवानी का चरण मा गर्दन कसैले गरन् (नेपाली)
धन्यात्मातुलधाम्नीह रमते रामे गुमानी कवि (संस्कृत)

खड़ी बोली का उद्भव भारतेन्दु युग में माना जाता है, जोकि 1850 के आस-पास शुरू होता है। लेकिन निम्न पद गुमानी जी द्वारा 1816 में रचित है, इसमें खड़ी बोली का प्रयोग स्पष्ट है। इस तरह गुमानी जी को खड़ी बोली का प्रथम कवि माना जाना चाहिये।

विष्णु देवाल उखाड़ा ऊपर बंगला बना खरा
महराज का महल ढहाया बेड़ी खाना वहाँ धरा
मल्ले महल उड़ाई नन्दा बंगलों से वहाँ भरा
अंग्रेजों ने अल्मोड़े का नक्शा औरी और करा

            एक महान आदमी का गुण यह है कि वह अपने मूल से हमेशा लगाव महसूस करता है। अपने पैतृक गांव उपराडा का सुन्दर वर्णन गुमानी जी ने इन शब्दों में किया है-
उत्तर दिशि में वन उपवन हिसालू काफल किल्मोड़ा.
दक्षिण में छन गाड़ गधेरा बैदी बगाड़ नाम पड़ा.
पूरब में छौ ब्रह्म मंडली पश्चिम हाट बाजार बड़ा.
तैका तलि बटि काली मंदिर जगदम्बा को नाम बड़ा.
धन्वन्तरि का सेवक सब छन भेषज कर्म प्रचार बड़ा.
धन्य धन्य यो ग्राम बड़ो छौ थातिन में उत्तम उपराड़ा.

गुमानी जी का जन्म काशीपुर में हुआ और वह काशीपुर के तत्कालीन राजा गुमान सिंह देव के दरबार में कवि रहे। गुमानी जी द्वारा काशीपुर के बारे में लिखे गये अनेक पदों मे से एक यह है 

यहाँ ढेला नद्दी उत बहत गंगा निकट में
यहाँ भोला मोटेश्वर रहत विश्वेश्वर वहाँ
यहाँ सण्डे दण्डे कर धर फिरें शाँडउत ही
फरक क्या है काशीपुर शहर काशी नगर में?

                  सर जार्ज ग्रियर्सन ने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में गुमानी जी की दो रचनाओं- गुमानी नीति और गुमानी काव्य-संग्रह का उल्लेख किया है। गुमानी नीति का संपादन देवीदत्त उप्रेती ने 1894 में किया है। गुमानी काव्य-संग्रह का संकलन और संपादन देवीदत्त शर्मा ने 1837 में किया। इसके अलावा उनका कोई संग्रह प्रकाशित नहीं हो सका। कुछ पत्र-पत्रिकाओं में उनके बारे में लेख अवश्य प्रकाशित हुए। पंडित देवीदत्त शर्मा के अनुसार यदि इनके लिखे हुए खर्रे भी मिल जाते तो इनकी समस्त रचना एक लाख से अधिक पदों में होती। उन्होंने तत्कालीन नरेशों के बारे में भी कई रचनाएँ कीं। हिंदी साहित्य के आधुनिक पितामहों को गुमानी जी को खड़ी बोली का पहला कवि मान लेना चाहिए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड के लेखक और उनकी प्रमुख पुस्तकें- भाग-1

कुमाऊँनी मुहावरे और लोकोक्तियाँ भाग-01

उत्तराखण्ड भाषा का विकास भाग-02 गढ़वाली भाषा