कैप्टन राम सिंह: राष्ट्रगान के धुन निर्माता
आजाद हिन्द फौज के सिपाही और संगीतकार रहे कै० राम सिंह ठाकुर ने ही भारत के राष्ट्र गान “जन गन मन” की धुन बनाई थी। वे मूलतः पिथौरागढ़ जनपद के मूनाकोट गांव के मूल निवासी थे, उनके दादा जमनी चंद जी 1890 के आस-पास हिमाचल प्रदेश में जाकर बस गये थे।
15 अगस्त 1914 को वहीं उनका जन्म हुआ और वह बचपने से ही संगीत प्रेमी थे। 14 वर्ष की आयु में ही वे गोरखा ब्वाय कम्पनी में भर्ती हो गये। पश्चिमोत्तर प्रांत में उन्होंने अपनी वीरता प्रदर्शित कर किंग जार्ज-5 मेडल प्राप्त किया। अगस्त 1941 में वे बिट्रिश सिपाही के रुप में इपोह भेजे गये, पर्ल हार्बर पर जापानी हमले के दौरान उन्हें जापानियों द्वारा बन्दी बना लिया गया। जुलाई 1942 में इन्हीं युद्ध बन्दियों से बनी आजाद हिन्द फौज में यह भी सिपाही के रुप में नियुक्त हो गये। बचपने में जानवर के सींग से सुर निकालने वाले राम सिंह अपनी संगीत कला के कारण सभी युद्ध बन्दियों में काफी लोकप्रिय थे। 3 जुलाई, 1943 को जब नेताजी सिंगापुर पहुंचे तो राम सिंह ने उनके स्वागत के लिये एक गीत तैयार किया-
“सुभाष जी, सुभाष जी, वो जाने हिन्द आ गये
है नाज जिसपै हिन्द को वो जाने हिन्द आ गये”
अपनी पहली ही मुलाकात में राम सिंह जी ने नेताजी का दिल जीत लिया, जिसका प्रतिफल उन्हें मिला सुभाष जी की वायलिन के रुप में, {इस वायलिन को वह हमेशा अपने साथ रखते थे} और उन्हें आजाद हिन्द फौज में बहादुरी और जोश भरा ओजस्वी गीत-संगीत तैयार करने की जिम्मेदारी भी। यहां से उनका गीत-संगीत के साथ-साथ सैनिक कार्य का सफर शुरु हुआ और “कदम-कदम बढ़ाये जा-खुशी के गीत गाये जा” जैसे सैकड़ों ओजस्वी गीतों की धुनों की रचना उन्होंने की। वर्ष 1945 में उन्हें अंग्रेजी सेना द्वारा रंगून में गिरफ्तार कर लिया गया। 11 अप्रैल, 1946 को उनकी रिहाई मुल्तान में हुई।
20 जून, 1946 को बाल्मीकि भवन में महात्मा गांधी के समक्ष “शुभ सुख चैन की बरखा बरसे” गीत गाकर उन्हें भी अपनी मुरीद बना लिया। 15 अगस्त, 1947 को राम सिंह के नेतृत्व में आई०एन०ए० के आर्केस्ट्रा ने लाल किले पर “शुभ-सुख चैन की बरखा बरसे” गीत की धुन बजाई। यह गीत रवीन्द्र नाथ टैगोर जी के “जन-गण-मन” का हिन्दी अनुवाद था और इसे कुछ संशोधनों के साथ नेताजी के खास सलाहकारों के साथ नेता जी ने ही लिखा था और इसकी धुन बनाई थी कै० राम सिंह ठाकुर ने। “कौमी तराना” नाम से यह गीत आजाद हिन्द फौज का राष्ट्रीय गीत बना, इस गीत की ही धुन को बाद में “जन-गण-मन” की धुन के रुप में प्रयोग किया गया। इस तरह से हमारे राष्ट्र गान की धुन राम सिंह जी द्वारा ही बनाई गई है।
अगस्त, 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु के अनुरोध पर वह उत्तर प्रदेश पी०ए०सी० में सब इंस्पेक्टर के रुप में लखनऊ आये और पी०ए०सी० के बैण्ड मास्टर बन गये। 30 जून, 1974 को वे सेवानिवृत्त हो गये और उन्हें “आजीवन पी०ए०सी० के संगीतकार” का मानद पद दिया गया। 15 अप्रैल, 2002 को इस महान संगीतकार का देहावसान हो गया।
कै० राम सिंह जी को कई पुरस्कार मिले और अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वे लखनऊ की पी०ए०सी० कालोनी में रहते थे, वायरलेस चौराहे से सुबह शाम गुजरते वायलिन पर मार्मिक धुनें अक्सर सुनाई देती थी। उनके द्वारा कई पहाड़ी धुनें भी बनाई गईं, जैसे- “नैनीताला-नैनीताला…घुमी आयो रैला”। नेताजी द्वारा भेंट किया गया वायलिन उन्हें बहुत प्रिय था, वे कहते थे “बहुत जी लिया, अब तो यही इच्छा है कि जब मरुं यह वायलिन ही मेरे हाथ में हो” अनेक सम्मानों से पुरुस्कृत राम सिंह जी कहा करते थे कि “जिस छाती पर नेता जी के हाथों से तमगा लगा हो, उस छाती पर और मेडल फीके ही हैं”
उनको निम्न पुरस्कार मिले-
किंग जार्ज-5 मेडल, 1937
नेताजी गोल्ड मेडल, 1943
उ०प्र० राज्यपाल गोल्ड मेडल (प्रथम), 1956
ताम्र पत्र,1972
राष्ट्रपति पुलिस पदक, 1972
उ०प्र० संगीत नाटक अकादमी एवार्ड,1979
सिक्किम सरकार का प्रथम मित्रसेन पुरस्कार,1993
पश्चिम बंगाल सरकार का प्रथम आई०एन०ए० पुरस्कार, 1996
aap ne sir bahoot mahetvapurn jankari uplabdh karai he jiske liye me apka tahe dil se dhaniywad karta hu
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