बन्दूक की नोक पर अंग्रेज ने लिया नैनीताल।

नैनीताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। यह नैनीताल जिले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है। देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। 'नैनी' शब्द का अर्थ है आँखें और 'ताल' का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है। बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है। इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है।
सन् 1839 ई. में एक अंग्रेज़ व्यापारी पी. बैरून था। वह रोज, ज़िला शाहजहाँपुर में चीनी का व्यापार करता था। इसी पी. बैरून नाम के अंग्रेज़ को पर्वतीय अंचल में घूमने का अत्यन्त शौक़ था। केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा करने के बाद यह उत्साही युवक अंग्रेज़ कुमाऊँ की मखमली धरती की ओर बढ़ता चला गया। एक बार खैरना नाम के स्थान पर यह अंग्रेज़ युवक अपने मित्र कैप्टन ठेलर के साथ ठहरा हुआ था। प्राकृतिक दृश्यों को देखने का इन्हें बहुत शौक़ था। उन्होंने एक स्थानीय व्यक्ति से जब 'शेर का डाण्डा' इलाक़े की जानकारी प्राप्त की तो उन्हें बताया गया कि सामने जो पर्वत है, उसको ही 'शेर का डाण्डा' कहते हैं और वहीं पर्वत के पीछे एक सुन्दर ताल भी है। बैरून ने उस व्यक्ति से ताल तक पहुँचने का रास्ता पूछा, परन्तु घनघोर जंगल होने के कारण और जंगली पशुओं के डर से वह व्यक्ति तैयार न हुआ। परन्तु, विकट पर्वतारोही बैरून पीछे हटने वाले व्यक्ति नहीं थे। गाँव के कुछ लोगों की सहायता से पी. बैरून ने 'शेर का डाण्डा' (2360 मीटर) को पार कर नैनीताल की झील तक पहुँचने का सफल प्रयास किया। इस क्षेत्र में पहुँचकर और यहाँ की सुन्दरता देखकर पी. बैरून मन्त्रमुग्ध हो गये। उन्होंने उसी दिन तय कर ड़ाला कि वे अब रोज, शाहजहाँपुर की गर्मी को छोड़कर नैनीताल की इन आबादियों को ही आबाद करेंगे।
पी. बैरून 'पिलग्रिम' के नाम से अपने यात्रा-विवरण अनेक अख़बारों को भेजते रहते थे। बद्रीनाथकेदारनाथ की यात्रा का वर्णन भी उन्होंने बहुत सुन्दर शब्दों में लिखा था। सन् 1841 की 24 नवम्बर को, कलकत्ता के 'इंगलिश मैन' नामक अख़बार में पहले-पहले नैनीताल के ताल की खोज ख़बर छपी थी। बाद में आगरा अख़बार में भी इस बारे में पूरी जानकारी दी गयी थी। सन् 1844 में किताब के रूप में इस स्थान का विवरण पहली बार प्रकाश में आया था। बैरून साहब नैनीताल के इस अंचल के सौन्दर्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सारे इलाक़े को ख़रीदने का निश्चय कर लिया। पी. बैरून ने उस इलाक़े के थोकदार से स्वयं बातचीत की कि वे इस सारे इलाक़े को उन्हें बेच दें।
पहले तो थोकदार नरसिंह तैयार हो गये थे, परन्तु बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया। बैरून इस अंचल से इतने प्रभावित थे कि वह हर क़ीमत पर नैनीताल के इस सारे इलाक़े को अपने क़ब्ज़े में कर, एक सुन्दर नगर बसाने की योजना बना चुके थे। जब थोकदार नरसिंह इस इलाक़े को बेचने से मना करने लगे तो एक दिन बैरून साहब अपनी किश्ती में बिठाकर नरसिंह को नैनीताल के ताल में घुमाने के लिए ले गये और बीच ताल में ले जाकर उन्होंने नरसिंह से कहा कि तुम इस सारे क्षेत्र को बेचने के लिए जितना रुपया चाहो, ले लो, परन्तु यदि तुमने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया तो मैं तुमको इसी ताल में डूबो दूँगा। बैरून साहब ख़ुद अपने विवरण में लिखते हैं कि डूबने के भय से नरसिंह ने स्टाम्प पेपर पर दस्तख़त कर दिये और बाद में बैरून की कल्पना का नगर नैनीताल बस गया। सन् 1842 ई. में सबसे पहले मजिस्ट्रेट बेटल से बैरून ने आग्रह किया था कि उन्हें किसी ठेकेदार से परिचय करा दें ताकि वे इसी वर्ष 12 बंगले नैनीताल में बनवा सकें। सन् 1842 में बैरून ने सबसे पहले पिलग्रिम नाम के कॉटेज को बनवाया था। बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस सारे क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया। सन् 1842 ई. के बाद से ही नैनीताल एक ऐसा नगर बना कि सम्पूर्ण देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी सुन्दरता की धाक जम गयी। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन निवास नैनीताल मेंं ही हुआ करता था। छः मास के लिए उत्तर प्रदेश के सभी सचिवालय नैनीताल जाते थे।
इतिहास
नैनीताल को पी. बेरून नामक व्‍यक्ति द्वारा वर्ष 1841 में स्थापित किया गया था। पी. बेरून पहला यूरोपियन था। नैनीताल अंग्रेज़ों का ग्रीष्‍मकालीन मुख्‍यालय था। 1847 में नैनीताल मशहूर हिल स्टेशन बना, अंग्रेज़ इसे 'समर कैपिटल' भी कहते थे। तब से लेकर आज तक यह अपना आकर्षण बरकरार रखे हुए है। औपनिवेशिक काल में नैनीताल शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा। अपने बच्चों को बेहतर माहौल में पढ़ाने के लिए अंग्रेज़ों को यह जगह काफ़ी पसंद आई थी। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए भी व्यापक इंतज़ाम किए थे। पहाड़ियों से घिरी नैनी झील और इसके आस-पास की तमाम झीलें आकर्षण का केन्द्र बन गयी थीं और प्रत्येक यूरोपियन नागरिक यहाँ बसने की लालसा लेकर आने लगे। बाद में ब्रिटिश-भारतीय सरकार ने नैनीताल को यूनाइटेड प्रोविन्सेज की गर्मियों की राजधानी घोषित कर दिया और इसी दौरान यहाँ तमाम यूरोपीय शैली की इमारतों का निर्माण हुआ, गवर्नर हाऊस और सेन्ट जॉन चर्च इस निर्माण कला के अद्भुत उदाहरण है।
पौराणिक संदर्भ
पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार मानसखंड के अध्याय 40 से 51 तक नैनीताल क्षेत्र के पुण्य स्थलों, नदी, नालों और पर्वत श्रृंखलाओं का 219 श्लोकों में वर्णन मिलता है। मानसखंड में नैनीताल और कोटाबाग़ के बीच के पर्वत को शेषगिरि पर्वत कहा गया है, जिसके एक छोर पर सीतावनी स्थित है। कहा जाता है कि सीतावनी में भगवान राम व सीता ने कुछ समय बिताया है। जनश्रुति है कि सीता सीतावनी में ही अपने पुत्रों लव व कुश के साथ राम द्वारा वनवास दिये जाने के दिनों में रही थीं। सीतावनी के आगे देवकी नदी बताई गई है, जिसे वर्तमान में दाबका नदी कहा जाता है। महाभारत वन पर्व में इसे आपगा नदीकहा गया है। आगे बताया गया है कि गर्गांचल (वर्तमान गागर) पर्वतमाला के आसपास 66 ताल थे। इन्हीं में से एक त्रिऋषि सरोवर (वर्तमान नैनीताल) कहा जाता था, जिसे भद्रवट (चित्रशिला घाट-रानीबाग़) से कैलाश मानसरोवर की ओर जाते समय चढ़ाई चढ़ने में थके अत्रिपुलह व पुलस्त्य नाम के तीन ऋषियों ने मानसरोवर का ध्यान कर उत्पन्न किया था। इस सरोवर में महेंद्र परमेश्वरी (नैना देवी) का वास था। सरोवर के बगल में सुभद्रा नाला (बलिया नाला) बताया गया है। इसी तरह भीमतालके पास के नाले को पुष्पभद्रा नाला कहा गया है, दोनों नाले भद्रवट यानी रानीबाग़ में मिलते थे। कहा गया है कि सुतपा ऋषि के अनुग्रह पर त्रिदेव यानी ब्रह्माविष्णु व महेश चित्रशिला पर आकर बैठ गये और प्रसन्नतापूर्वक ऋषि को विमान में बैठाकर स्वर्ग ले गये। गौला को गार्गी नदी कहा गया है। भीम सरोवर (भीमताल) महाबली भीम के गदा के प्रहार तथा उनके द्वारा अंजलि से भरे गंगा जल से उत्पन्न हुआ था। पास की कोसी नदी को कौशिकी, नौकुचिया ताल को नवकोण सरोवर, गरुड़ताल को सिद्ध सरोवर व नल सरोवर आदि का भी उल्लेख है। क्षेत्र का छखाता या शष्ठिखाता भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है, यहां 60 ताल थे। मानसखंड में कहा गया है कि यह सभी सरोवर कीट-पतंगों, मच्छरों आदि तक को मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। इतिहासकार एवं लोक चित्रकार पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल मानसखंड को पूर्व मान्यताओं के अनुसार स्कंद पुराण का हिस्सा तो नहीं मानते, अलबत्ता मानते हैं कि मानसखंड क़रीब 10वीं-11वीं सदी के आसपास लिखा गया एक धार्मिक ग्रंथ है।

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