उत्तराखण्ड भाषा का विकास भाग-02 गढ़वाली भाषा

गढ़वाली बोली- ग्रियर्सन ने भारतीय भाषाओं का वर्गीकरण करते हुए पहाड़ी समुदाय में केन्द्रीय उपशाखा के अन्तर्गत गढ़वाली को भी शामिल किया गया है। मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक साइन्स आफ लैंग्वेज में गढ़वाली को प्राकृतिक भाषा का एक रूप माना है। सम्भवतः गढ़वाली भाषा का प्रथम नमूना पंवार शासक जगतपाल के देवप्रयाग ताम्रपत्र(1455ई0) में मिलता है। पंवार युग में गढ़वाली राजभाषा थी। 1750 तक गढ़वाली अभिलेखों एवं दस्तावेजों की ही भाषा मानी जाती है। साहित्यिक रूप में 1780 ई0 में समैणा और 1792 में उखेल नामक पुस्तकें गद्य में लिखी गई है।

 गढ़वाली की विविध बोलियां- गढ़वाली भाषा की आठ बोलियाँ मानी जाती है-

1. श्रीनगरी- श्रीनगर, पौड़ी, देवल क्षेत्रों में बोली जाती है।  

2. नागपुरिया- यह बोली चमोली जनपद की नागपुर पट्टी और उसके उत्तर पश्चिमी समीपवर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है।

3. दसौल्या- दसौली पट्टी, चमोली जनपद और उसके आस-पास के क्षेत्रों में है।

4. बधाणी- चमोली जनपद का नंनाकिनी और पिंडर नदियों के मध्यवर्ती क्षेत्र बधाण कहलाता है।

5. राठी- कुमाऊँ का पौड़ी गढ़वाली का सीमान्त क्षेत्र राठ कहलाता है। इसमें दूधातोली, बिनसर, थलीसैण देवलगढ़ इत्यादि क्षेत्र सम्मिलित हैै।

6. मँझकुमय्याँ- मझ का अर्थ होता है मध्य अतः गढ़वाली एवं कुमाऊँनी की मिली-जुली मिश्रित बोली है।

7. सलाणी- गंगा का पूर्वी तटवर्ती यमकेश्वर परगना और उसका निकटवर्ती क्षेत्र सलाण कहा जाता है।

8. टिहरी- टिहर्याली नाम से ही स्पष्ट है टिहरी जनपद में बोली जाती है। इस बोली को भी गंगापार क्षेत्र में गंगपारी या गंगाड़ी बोली भी कहा जाता है। सेम-मुखेम परिक्षेत्र में इसे रमोली तथा बड़ियारगड़, नैनीडांडा, जैहरिखाल, रिखणीखाल क्षेत्र में बडियारगड़ी कहा जाता है। उत्तरकाशी सीमा पर जौनपुरी, तथा उत्तरकाशी में टकनौरी भी कहा जाता है। इसी बोली को रवाईं क्षेत्र में रवाल्टी कहा जाता है।

टिप्पणियाँ

  1. Sir ek question hai ye nainidanda rikhnikhal jehrikhal ye to sab pauri k chetra Hain to Tehri boli waale chetra mein Kahan se aa gye ye
    Badiyargarh Tak to theek hai but ye baaki last k teen ka koi logic hi nhi hai

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