काशीपुर नगर परीक्षोपयोगी तथ्य



1639 में काशीनाथ अधिकारी द्वारा स्थापित नगर। इसे उत्तराखण्ड में उद्योगों का काशी कहा जाता है। काशीनाथ अधिकारी के पुत्र शिवनाथ ने शिवनाथपुर नगर बसाया।  1745 में शिवदेव जोशी ने काशीपुर किला बनवाया। अंग्रेज इसे गोविन्द नगर कहते थे (गोविन्द बल्लभ पंत के नाम पर)  1915 में उदयराज हाईस्कूल व जगतवन्ती हाईस्कूल की स्थापना हुई।  देश के कलस्तर के रूप में चुना गया पहला शहर। राज्य की सबसे पुरानी सूती मिल स्थित है 1819 में स्थापित।  ढेला नदी अथवा स्वर्ण भद्रा नदी बहती है। 1777 में काशीपुर के अधिकारी नंद राम ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था, जिसे 1801 में शिवलाल ने अंग्रेजों के सुपूर्द कर दिया। इन्हीं काशीपुर के राजकवि गुमानी पंत थे। 10 जुलाई, 1837 को काशीपुर मुरादाबाद जिले में शामिल हुआ। 1944 में बाजपुर, काशीपुर, एवं जसपुर नगरों को काशीपुर परगनें के रूप में पुनर्गठित कर संयुक्त प्रान्त आगरा एवं अवध के तराई का मुख्यालय बनाया गया। 1891 में नैनीताल तहसील को कुमाऊं जनपद में स्थानान्तरित कर तराई को नैनीताल में मिला दिया गया।

काशीपुर की नगरीकरण यात्रा- ऐतिहासिक विवरण के अनुसार 1815 में कुमाऊँ पर अंगे्रजों का अधिकार हो जाने के उपरान्त सन् 1844 तक काशीपुर और जसपुर मुरादाबाद जिले के अन्तर्गत अलग-अलग परगने थे। 1844 में मुरादाबाद जिले के परगनों का पुनर्गठन किये जाने पर काशीपुर को परगना बनाए रखा गया जबकि जसपुर को काशीपुर में सम्मिलित कर दिया गया। तत्पश्चात् सन् 1870 में काशीपुर परगने को तराई जिले में सम्मिलित किया गया और 1891 में नैनीताल जिले का गठन होने पर तराई जिला नैनीताल में समाहित होने पर काशीपुर भी नैनीताल जिले के अन्तर्गत आ गया। 1891 से 1994 तक लगभग सौ वर्षों तक नैनीताल जिले के अन्तर्गत रहा। काशीपुर का प्राचीन नाम गोविषाण था।





प्रमुख आकर्षण

गोविषाण का किला- ह्वेनसांग ने इसका जिक्र किया है। गो-विषाण का अर्थ होता है गाय का सींग।  प्राचीन समय में कपड़े धातु एवं बर्तनों का मुख्य बाजार था।  यहां से प्राप्त सिक्कों के अनुसार दूसरी सदी तक ये क्षेत्र कुणिन्द शासकों के अधीन था। यहां से प्रतिहार वंश से सम्बन्धित विष्णु त्रिविक्रम की मूर्ति प्राप्त हुई है जो वर्तमान में नई दिल्ली संग्रहालय में रखी गई है।  इसके निकट ही भीमगड़ा का टीला, वंशीवाला का टीला, खोखरे वाला का टीला, ललता देवी मंदिर टीला, जागीश्वर मंदिर टीला  भी पाये गये है।  

द्रोण सागर- गोविषाण के निकट ही द्रोण सागर है। गुरु द्रोणाचार्य द्वारा अपने शिष्यों के साथ यहां निवासित होना उल्लिखित है।

उज्जैन का किला/बाला सुंदरी मंदिर- द्रोण सागर के किनारे आधुनिक शैली का ज्वालादेवी मंदिर है जिसे उज्जैनी देवी भी कहते है। (उज्जैन गांव में) इसी ज्वाला देवी के मंदिर को बाला सुंदरी का मंदिर भी कहते हैं। जो कि चन्दों की कुल देवी मानी जाती है। यहां चैत्र में मेला लगता है जिसे चैती का मेला कहा जाता है।  इस मंदिर के समीप ही भूतेश्वर, मुक्तेश्वर, नागनाथ एवं जागीश्वर का मंदिर भी है। उक्त मंदिर के निकट ही असाध्य रोगों के उपचारार्थ प्रसिद्ध खुजली देवी का मंदिर भी है।

मोटेश्वर महादेव मंदिर- भीमशंकर महादेव भी कहा जाता है।

गिरी सरोवर- काशीपुर बस अड्डे के निकट ही रामनगर रोड पर स्थित है।

इनके अतिरिक्त ऋषिताल व चामुंडा मंदिर भी प्रसिद्ध है।

भारतीय प्रबन्धन संस्थान- काशीपुर में 29 अप्रैल, 2011 को स्थापित देश का 13वां IIM है।





टिप्पणियाँ

  1. उत्तराखंड पीसीएस में कितनी गहराई से पूछेंगे, क्या लगता है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कभी लेवल आसान रहता है कभी मुश्किल और डीप सवालों को भी पूछ लिया जाता है बस हमें सभी चीजों हेतु तैयार रहना चाहिए।

      हटाएं
    2. कभी लेवल आसान रहता है कभी मुश्किल और डीप सवालों को भी पूछ लिया जाता है बस हमें सभी चीजों हेतु तैयार रहना चाहिए।

      हटाएं
  2. बहुत अच्छा व सराहनीय प्रयास है सर, आप covid के इस विकट समय में भी हम जैसे छात्रों की मदद कर रहे है।आपका बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. सटीक सूचनाएं देने के लिए धन्यवाद। साफ है कि यह स्थान प्राचीन काल से ही एक शहर था जहां बाजार हुआ करता था भले ही नाम भिन्न रहा हो।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड के लेखक और उनकी प्रमुख पुस्तकें- भाग-1

कुमाऊँनी मुहावरे और लोकोक्तियाँ भाग-01

उत्तराखण्ड भाषा का विकास भाग-02 गढ़वाली भाषा