खलंगा का युद्ध व ब्रिटिश अधिकार (24 अक्टूबर 1814 से 30 नवम्बर, 1814)

 

        ‘खलंगा’ नेपाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ छावनी होता है। अंग्रेज इतिहासकारों ने अपनी भाषिक समझ के हिसाब से इसे किला कहा जबकि यह एक सुदृढ़ किला नहीं था। 


    ब्रिटिश कम्पनी ने 29 मई 1814 में खलंगा किले पर घेराबंदी करने की योजना बनाई। ब्रिटिश फौज के मेजर जनरल गिलेस्पी के नेतृत्व में मोर्चा संभाला लेकिन उन्हें विफलता हासिल हुई, जबकि उस समय सेनापति अमर सिंह थापा श्रीनगर का, उनका पुत्र रणजोर सिंह नाहन का राज-काज देख रहे थे और खलंगा (नालापानी किला) उनके पोते बलबहादुर सिंह थापा के जिम्मे था। 24 अक्टूबर 1814 को कर्नल मौबी द्वारा किले पर धावा बोला गया लेकिन सेना उसे भेद न पाई। सेना ने खलंगा किले के लगभग 500 मीटर दूरी नालापानी में डेरा डालकर किले की रैकी शुरू कर दी। 26 अक्टूबर, 1814 में मेजर जनरल जिलेस्पी नालापानी पहुँचा तथा किले के अंदर के सैनिकों की गुप्त सूचना जुटाई। मेजर जनरल जिलेस्पी ने किलेबंदी के लिए किले को चारों ओर से घेरने के लिए पांच दल बनाए जिनमें पहले दल का नेतृत्व जौन फास्ट, दूसरी टुकड़ी मेजर कैली, तीसरी टुकड़ी कैप्टन जौन कैम्पबेल, चैथी टुकड़ी लेफ्टिनेंट कर्नल कारपेंटर तथा अंतिम टुकड़ी मेजर लडलो के नेतृत्व में एक साथ किले पर आक्रमण करने हेतु तैयार किया। 31 अक्टूबर, 1814 को जिलेस्पी युद्ध में मारा गया। किले में तीन बार असफल आक्रमण के बाद अंतिम और चैथे आक्रमण के बारे में दो पृथक मत है। एक मत में कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह 30 नम्वबर 1814 में हुआ जबकि कुछ इसे 4 दिसम्बर, 1814 भी बताते हैं किन्तु अधिक मतैक्य 30 नवम्बर, 1814 पर हैं

        कुमाऊँ पर ब्रिटिश अधिकार

    14 दिसम्बर, 1814 को मुरादाबाद से एडवर्ड गार्डरन को कुमाऊँ अभियान के लिए भेजे जाने की घोषणा हुई। जनवरी, 1815 में गार्डनर ने हर्षदेव जोशी के सहयोग से काशीपुर में कार्यालय स्थापित किया। यहीं से रुदरफोर्ड की अध्यक्षता में गुप्तचर विभाग की स्थापना की गई। मार्च, 1815 के अन्तिम सप्ताह में गार्डनर कटारमल पहुँच गया था। 27 अप्रैल, 1815 गार्डनर तथा चैतरा बमशाह के मध्य कुमाऊँ का समझौता हुआ। इसी दिन से अल्मोड़ा में ब्रिटिश सेना का कब्जा हो गया।

               सुगौली की सन्धि

    28 मई, 1815 को नेपाल के राजा की मुंहर लगे अधिकार पत्र के साथ गजराज मिश्र और चन्द्रशेखर उपाध्याय सुगौली में ब्रौडशो से मिले। 2 दिसम्बर, 1815 को यह सन्धि हस्ताक्षरित कर ब्रौडशौ ने चन्द्रशेखर उपाध्याय को दिया था। 4 मार्च, 1816 को ईस्ट इंडिया कम्पनी और नेपाल के राजा ने सुगौली, चम्पारण बिहार में सन्धि को अनुमोदित किया। 


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