भ्रातृजाया प्रथा तथा ओलुक प्रथा
ओलुक प्रथा:-कुमाउनी समाज में पहले सयानों, बूढ़ों, थोकदार व पधानों का वर्चस्व था। वे अपने दल-बल के साथ जिस इलाके में भी जाते थे. उनके सम्मान में प्रीति-भोज के रूप में बकरा काटने की प्रथा प्रचलित थी। इधर-उधर के गांव के लोगों द्वारा इनके यहाँ सम्मान स्वरूप ओलुक (भेंट स्वरूप दही की ठेकी, केले व पालक) ले जाने की परंपरा भी थी। ओलुक लाने वाले को प्रतिदान-स्वरूप पशुधन या जमीन-जायदाद का कुछ हिस्सा अथवा द्रव्यादि भी इनके द्वारा दिया जाता था। "ओलुक" की प्रथा आज भी गांवों में विद्यमान है। लड़की की शादी के साल भर बाद, उसके ससुरालियों द्वारा लड़की के मायके वालों को 'ओलुक' (ओउक) अवश्यमेव दिया जाता है। बदले में मायके वालों द्वारा ससुरालियों को भेंट स्वरूप भैंस, परात, फॉला (ताँबे का गगरा) अथवा दृव्यादि भेंट - स्वरूप प्रदान किया जाता है।
भ्रातृजाया प्रथा:- भ्रातृजाया का अभिप्राय है छोटे भाई की पत्नी। समाज में पारिवारिक स्तर पर कई तरह की प्रथाएँ प्रचलित हैं, जैसे भ्रातृजाया (भाई की पत्नी) और जेठ (पति का बड़ा भाई) एक-दूसरे का स्पर्श नहीं कर सकते। दोनों का स्पर्श वर्जित होने से भ्रातृजाया अपने जेठ को दूर से प्रणाम करती है, इस संदर्भ में एक कुमाउँनी कहावत भी प्रचलित है कि-
'ब्वारि जै गाड़ बगन लागी भै तौ, को जेठि को ब्वारि
अर्थात्
'यदि भ्रातृजाया (भाई की पत्नी) नदी में बह रही हो तो आपद धर्म के रूप में जेठ को बहू का हाथ पकड़कर उसे डूबने से बचा लेना चाहिए। हालांकि यह परम्परा विलोपित होने की कगार पर है। इसी सामाजिक वर्जना के कारण बड़ा भाई अपने छोटे भाई की विधवा से विवाह नहीं कर सकता, जबकि छोटा भाई अपनी विधवा भाभी से उसकी सहमति होने पर विवाह कर सकता है। इसी तरह पत्नी के निधन होने पर साली से विवाह हो सकता है किंतु जेठासु यानि पत्नी की बड़ी बहन से विवाह नहीं हो सकता।
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